नालों का नदी में समाना... घाटों का कूड़ा घरों में तब्दील होना... कुछ यही हकीकत है मोक्षनगरी वाराणसी में गंगा के घाटों की. चार साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के अस्सी घाट से ही नमामि गंगे मिशन की शुरुआत की. मोदी सांसद के नाते लोकसभा में वाराणसी की ही नुमाइंदगी करते हैं.
बीते चार साल में गंगा की सफाई के नाम पर करोड़ों रुपया खर्च किया जा चुका है, लेकिन हकीकत ये है कि यहां गंगा में अब भी जगह-जगह प्लास्टिक, कंकाल और कूड़ा करकट छितराया देखा जा सकता है.
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4 साल में नहीं बदली मैली गंगा
इंडिया टुडे ने ग्राउंड जीरो पर जाकर जायजा लिया कि गंगा बीते चार साल में कितनी स्वच्छ हुई या नहीं हुई. अस्सी घाट के पास गंगा की जो बदहाली दिखी वो शब्दों में बयां करना मुश्किल है. यहां लाखों लीटर सीवेज का पानी हर दिन गंगा से आकर मिलता है. यहां उठने वाली बदबू बर्दाश्त से बाहर है. यहां नाक पर रुमाल रखे बिना थोड़ी देर भी खड़ा नहीं हुआ जा सकता.
अस्सी घाट पर घरों से निकलने वाले कूड़े और गंदगी के ढेर लगे देखे जा सकते हैं. इंडिया टुडे ने स्वच्छ गंगा रिसर्च लेबोरेट्री (SGRL) से जुड़े राकेश पांडे के जरिए गंगा के पानी की गुणवत्ता का टेस्ट करने की कोशिश की. अस्सी घाट से लिए गए गंगा के पानी के नमूने की प्रारंभिक जांच से पता चला कि इसमें मिनरल वॉटर की तुलना में 150 गुणा ज्यादा रोगाणु और बैक्टीरिया की मौजूदगी है.
वाराणसी में स्थिति अभी भी चिंताजनक
वाराणसी के मालवीय ब्रिज के पास एक और नाला शहर के तमाम कूड़े करकट के साथ गंगा में मिलता है. यहां मरे जलजंतु और पशु का तैरता हुआ कंकाल देखना आंखों को बहुत खटकता है.
तेलियानाला घाट पर फर्श और दीवारें धंसी साफ देखी जा सकती है. यहां तत्काल मरम्मत की जरूरत है. घाट का एक बड़ा हिस्सा कूड़ेघर में तब्दील हो चुका है. घाट का इस्तेमाल घरों का कचरा फेंकने के लिए किया जा रहा है. यहां कचरा फेंकने से रोकने के लिए किसी तरह के पुख्ता इंतजाम नहीं है.
'नमामि गंगे मिशन' पर बात करते हुए तेलियानाला घाट के स्थानीय लोगों ने तमाम सवाल उठाए. एक स्थानीय ने इंडिया टुडे से कहा, 'नदी का पानी ज्यादा प्रदूषित और गंदा हो गया है. खुले नाले बड़ी समस्या है. घाटों की सही तरीके से साफ सफाई नहीं की जाती.'
इंडिया टुडे की टीम अस्सी घाट पर उस जगह भी पहुंची जहां से प्रधानमंत्री मोदी ने गंगा की सफाई के अभियान की शुरुआत की थी. अस्सी घाट पर ठीक उसी जगह पर शहर से एक छोटा नाला गंगा में मिलते दिखाई दिया. कूड़े के फैलाव से ये घाट भी अछूता नहीं लगा. यहां लोग फूल, पानी की बोतलें और अन्य सामान गंगा में बहाते दिखे.
जागरुकता को लेकर निष्क्रियता कायम
गंगा की स्थिति पर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रों से इंडिया टुडे ने बात की तो उनकी अलग-अलग राय सामने आई. कुछ छात्रों का कहना था कि गंगा की सफाई के लिए समुचित उपाय नहीं किए गए. वहीं कुछ छात्र ये कहते दिखे कि पिछले कुछ वर्षों में स्थिति पहले से बेहतर हुई है.
बीएचयू के एक छात्र ने कटाक्ष करते हुए कहा, 'अब हम हरी गंगा देख सकते हैं. ये इसलिए है क्योंकि नालों और गंदगी ने पानी का रंग बदल दिया है. घाटों की हालत बदतर होती जा रही है.'
जमीनी हकीकत जानने के लिए इंडिया टुडे दशाश्वमेध घाट भी पहुंचा. यहां हर दिन हजारों लोग पुण्य कमाने की आस में गंगा में डुबकी लगाने आते हैं. यहां भी गंगा का पानी काफी प्रदूषित दिखाई दिया. यहां भी नदी का इस्तेमाल जगह-जगह कचरा फेंकने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
पूरे दशाश्वमेध घाट पर जिला प्रशासन का कोई भी कर्मचारी साफ सफाई करते नहीं दिखा. ना ही यहां गंगा मिशन टीम से जुड़ा कोई सदस्य लोगों में स्वच्छता के लिए जागरूकता फैलाता दिखा.
नहाने के काबिल नहीं गंगा
नदी के पानी की गुणवत्ता की 22 जून को ली गई रिपोर्ट हैरान करने वाली है. स्वच्छ गंगा रिसर्च लेबोरेट्री (SGRL) की ओर से चार प्रमुख घाटों से गंगा के पानी के नमूने लिए गए. मकसद यह था कि पानी की गुणवत्ता की जांच की जाए कि वो स्नान के लिए कितना उपयुक्त है.
लैब के मुताबिक रिपोर्ट से सामने आया कि फीकल कोलिफॉर्म काउंट (बैक्टीरिया की मौजूदगी) जो कि नदी के पानी में प्रति 100 मिलीलीटर 500 से ज्यादा नहीं होना चाहिए वो अस्सी घाट पर 1,40,000, तुलसी घाट पर 88,000, दशाश्वमेध घाट पर 40,000 और राजघाट पर 34,000 पाया गया.
गंगा के पानी को लेकर बॉयोकैमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) की बात की जाए तो ये प्रति लीटर पानी में 5 मिलीग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए. लेकिन ये BOD अस्सी घाट पर 12.8, तुलसी घाट पर 9.6, दशाश्वमेध घाट पर 6.0 और राजघाट पर 7.0 पाई गई.
सफाई की समुचित योजना नहीं
स्वच्छ गंगा रिसर्च लैब के संचालक प्रोफेसर वीके मिश्रा कहते हैं, 'गंगा नदी और घाटों की सफाई के लिए कोई समुचित योजना नहीं है. नदी को तब तक साफ नहीं किया जा सकता जब तक कि नालों का गंदा पानी इसमें मिलना रोका नहीं जाता.' वाराणसी की मुख्य समस्या ये है कि यहां नाले नदी में मिलते हैं, घाटों को कूड़ाघर बना दिया गया है.
इसी तरह कानपुर में नालों ने गंगा को ही 'नाला' बना दिया है. कभी कानपुर को 'एशिया का मानचेस्टर' कहा जाता था, लेकिन पिछले कुछ साल में इस शहर की आबोहवा और गंगा के पानी की गुणवत्ता काफी नीचे गिरी है. गंगा के पानी को प्रदूषित करने के लिए कानपुर के चमड़ा कारखाने से निकलने वाले कचरे को सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना जाता है.
चमड़े के कारखाने से कानपुर में गंगा हो रही मैली
कानपुर के जाजमऊ क्षेत्र में चमड़े के कई कारखाने बंद कराए गए हैं, लेकिन अब भी शहर में कई चमड़ा कारखाने चल रहे हैं. एक नाले के जरिए लाखों लीटर गंदा पानी हर दिन गंगा में मिलता है. म्युनिसिपल कमिश्नर संतोष कुमार शर्मा के मुताबिक चमड़ा कारखानों का औद्योगिक कचरा और घरों का कूड़ा नाले के जरिए गंगा में मिल रहा है. शर्मा ने कहा, 'दोनों तरह के कचरे को छांटने की प्रक्रिया हमारी ओर से शुरू की गई है जिससे कि उसी के मुताबिक ट्रीट किया जा सके.'
ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च किए जाने के बाद भी कानपुर में गंगा और घाटों को साफ नहीं किया जा सका है. कानपुर के पास ही परमत क्षेत्र में एक नाले का गंदा पानी गंगा में गिरता है. यहां पानी की गुणवत्ता कितनी खराब है, ये इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि पानी को हथेली में लेते ही हथेली में खारिश शुरू हो जाती है.
इंडिया टुडे टीम कैंट क्षेत्र में भी एक घाट पर पहुंची. यहां गंगा तो सूखी दिखाई दी, लेकिन आसपास के क्षेत्र के कचरे को समेटे एक नाले का गंदा पानी जरूर गिरते दिखा.