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आडवाणी को फिर दिखाया मोदी ने ठेंगा, पोल कमेटी में रखे सिर्फ अपने लोग

भीष्म पितामह अपना आखिरी अस्त्र पहले ही खर्च कर चुके हैं और मौजूदा दलनायक ने अब जाकर अपनी पहली चाल चली है. और इसी चाल में नजर आ गया कि बीजेपी का भविष्य अब किसकी आंखों के सपनों से लैस रहेगा. गुजरात के मुख्यमंत्री और बीजेपी की कैंपेन कमेटी के चेयरमैन नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए अपनी टीम का ऐलान कर दिया है.

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Narendra Modi
Narendra Modi

भीष्म पितामह अपना आखिरी अस्त्र पहले ही खर्च कर चुके हैं और मौजूदा दलनायक ने अब जाकर अपनी पहली चाल चली है. और इसी चाल में नजर आ गया कि बीजेपी का भविष्य अब किसकी आंखों के सपनों से लैस रहेगा. गुजरात के मुख्यमंत्री और बीजेपी की कैंपेन कमेटी के चेयरमैन नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए अपनी टीम का ऐलान कर दिया है.

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इस टीम में क्या आडावणी खेमा और क्या दूसरे खेमे, सभी को ठेंगा दिखा दिया गया है. सिर्फ वही जगह बना पाए हैं, जो मोदी के खास हैं या पिछले कुछ महीनों में उनकी गुड बुक में शामिल होने में सफल हुए हैं. संघ कोटे से भी उन्हीं नामों को रखा गया है, जिनके साथ मोदी की सही इक्वेशन है. सुरेश सोनी जैसे संघ प्रतिनिधि जो अपना एजेंडा हाशिए पर नहीं बल्कि सामने लेकर चलते हैं, किनारे लगा दिए गए हैं. पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के इकतरफा समर्थन का ईनाम उनके प्रतिनिध सुधांशु मित्तल को साथ में रख कर दिया गया है.मोदी की यह टीम उनकी चुनावी रणनीति की तरफ भी इशारा करती है. इसमें ज्यादातर वह लोग हैं, जो या तो युवा हैं, फायर ब्रांड हैं या फिर पर्दे के पीछे रहकर बौद्धिक काम करते रहे हैं. इस टीम की पहली मीटिंग 4 जुलाई को होगी.

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इस टीम पर बात करने से पहले, इसके सदस्यों पर एक नजरः नरेंद्र मोदी (चेयरमैन), अमित शाह, वरुण गांधी, राजीव प्रताप रूडी. मुख्तार अब्बास नकवी, धर्मेंद्र प्रधान, सुधांशु मित्तल, मुरलीधर राव और राम लाल.

य़हां भी छाया अमित शाह का जलवा

अब एक एक कर इनकी उपादेयता पर विचार करते हैं. अमित शाह मोदी के प्वाइंट मैन हैं. यह समझने के लिए इस कमेटी में उनका नाम खोजने की जरूरत नहीं थी. गुजरात के गृह राज्य मंत्री रहे अमित शाह के हाथ से सत्ता क्या छूटी, वह संगठन में और ताकतवर होकर उभरे. राजनाथ सिंह की मौजूदा टीम में मोदी मैन के रूप में अमित शाह को सीधे बतौर महासचिव शामिल किया गया. पार्टी इतिहास के जानकार बताते हैं कि पहले कभी किसी को इतना बड़ा प्रमोशन नहीं दिया गया. मगर अगली ही सांस में हमें नितिन गडकरी का नाम भी याद आता है. गडकरी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पहले हमेशा महाराष्ट्र स्तर के नेता रहे थे. मगर तब तर्क दिया गया कि संघ का हाथ हो, तो हस्ती बन ही जाती है. कुछ ही बरसों में नारे ने नया अर्थ और नाम पाया. मोदी का हाथ हो, तो हस्ती बननी अब तय है, कम से कम बीजेपी संगठन में.

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बात करें शाह की, तो वह लाइमलाइट से दूर यूपी के दौरे में व्यस्त हैं.उनका पहला काम है, तकरीबन हर लोकसभा क्षेत्र का जायजा लेना, जहां 1989 से अब तक कभी भी बीजेपी जीती है.उसके बाद पुराने पार्टी कार्यकर्ताओं, विधायकों और दूसरे निष्ठावान नेताओं से बात कर मोदी के लिए फीडबैक तैयार करना. कहा जा रहा है कि इस बार यूपी में टिकट वितरण में न संघ की चलेगी और न राजनाथ की और न ही टंडन, कलराज जैसे हवाई नेताओं की. वैसे सर्वे का जोर पिछली विधानसभा में भी था, मगर आखिर में वह बस शोर ही साबित हुआ और टिकट गुटों के हिसाब से एडजस्ट किए गए. मगर शाह को साफ कहा गया है कि जब मोदी खुद यूपी से चुनाव लड़ रहे हैं, तो सीटें कम से कम तीन गुना होनी चाहिए. इस समय राज्य में बीजेपी के पास महज 10 सीटें हैं.

यूपी से वरुण और नकवी को मिली जगह

शाह के अलावा यूपी से एक और नेता हैं वरुण गांधी. पीलीभीत से सांसद वरुण गांधी सूबे में अब तक सिर्फ आक्रामक हिंदू नेता की छवि ही बना पाए हैं. ऐसे में जब मोदी अपनी लिबरल छवि पेश करना चाहते हैं, वरुण का दौरा तराई और नेपाल से जुड़ी पूर्वांचल की पट्टी में मुस्लिमों के खिलाफ हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण में काम आएगा. इसके अलावा लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट की तरह भी देखा जा रहा है मोदी की टीम में वरुण को. टीम मोदी को लगता है कि यूपी के मौजूदा नेता चुके हुए हैं और उनमें मायावती और अखिलेश से टक्कर लेने का माद्दा नहीं. ऐसे में जरूरत एक युवा नेतृत्व को विकसित करने की है, जिसके पास पारिवारिक विरासत भी हो और तीखे तेवर भी.

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तेवर के अलावा कलेवर भी राजनीति में खास होता है. इसीलिए कैंपेन कमेटी में रामपुर के नेता मुख्तार अब्बास नकवी को रखा गया है. बीजेपी में सिकंदर बख्त के बाद दो ही मुस्लिम चेहरे उभरे, नकवी और शाहनवाज हुसैन. शुरुआत में नकवी की पतवार झूमी, मगर फिर वह सांसद और पार्टी प्रवक्ता से ऊपर नहीं जा पाए. वहीं शाहनवाज अटल सरकार के दौरान मंत्री पद पाने में भी सफल रहे. बहरहाल हुसैन की गलती यह रही कि उनकी गिनती आडवाणी के प्रिय लोगों में की जाती है. नतीजतन, अल्पसंख्यक मामलों पर बनी कमेटी की सरपरस्ती भी नकवी को दी गई और अब कैंपेन कमेटी में भी उन्हीं से मुस्लिम कोटे की पूर्ति की गई.

युवा कोटे से रूडी और प्रधान भी आए

राजीव प्रताह रूडी छपरा के नेता हैं और चुनावी हार जीत दोनों चख चुके हैं. अटल सरकार में वह नागरिक उड्डयन मंत्री रहे, मगर कुछ खास नहीं कर पाए. पिछले कुछ बरसों से उनका निर्वासन ही चल रहा था. यदा कदा टीवी पर बतौर प्रवक्ता बस बहस करते ही नजर आते. मगर मोदी का प्रभुत्व बढ़ते ही उनके सितारे चमकने लगे हैं. माना जा रहा है कि रणनीति और संख्या की दृष्टि से यूपी के बाद दूसरे सबसे महत्वपूर्ण सूबे बिहार में वही होंगे मोदी मैन. यानी उनकी टीम के फीडबैक के हिसाब से ही प्रत्याशी तय होंगे और चुनावी गणित बनेगी.

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धर्मेंद्र प्रधान उड़ीसा के नेता हैं और उन दिनों में युवा मोर्चा संभालते थे, जब मोदी संगठन के सिपाही थे, गुजरात के सीएम नहीं. उन दिनों का भरोसा अब नतीजे दे रहा है.

राजनाथ कोटे से मित्तल को मिली एंट्री

सुधांशु मित्तल, यह वह शख्स है, जिसके नाम पर राजनाथ सिंह ने पिछले कार्यकाल में अरुण जेटली से रार पाल ली थी. कभी जेटली के खास रहे मित्तल फिर उनके आंख की किरकिरी बन गए. मगर राजनाथ को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. राष्ट्रीय टीम में एंट्री के साथ उन्हें नॉर्थ ईस्ट के राज्यों का प्रभारी भी बनाया गया. फिर गडकरी आए और मित्तल को पर्दे के पीछे जाना पड़ा. मगर राजनाथ के लौटते ही उन्होंने एक बार फिर से वापसी की है. टीम मोदी में मित्तल को राजनाथ कोटे से बताया जा रहा है.

संघ से नहीं लिए गए विवादित नाम

मुरलीधर राव और राम लाल संघ कोटे से आते हैं. राव स्वदेशी जागरण मंच के संयोजक रहे हैं और उनकी गिनती राजनीतिक उठा पटक से ज्यादा रणनीतिक हिस्सेदारियों में रुचि रखने वालों में होती है. वहीं राम लाल बरसों से बीजेपी का काम देख रहे हैं, मगर सुरेश सोनी के मुकाबले कम विवादित रहे हैं.

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