बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने यह कहकर इस सवाल को गरमा दिया है कि मेरे आगे-पीछे कौन है, जो मैं भ्रष्टाचार करूंगा. अब शादीशुदा न होना ही ईमान का पैमाना है, तो इस पैमाने पर राहुल गांधी भी आ जाते हैं. जयललिता, ममता, मायावती और नवीन पटनायक भी आ जाते हैं. तो क्या वोट के लिए ब्रह्मचारी वाला जुमला चुनावी सीजन में जोर मारने लगा है?
ईमानदारी का कोई वर्ग नहीं होता. कोई शादीशुदा भी ईमानदार हो सकता है और कोई कुंवारा भी. लेकिन नरेंद्र मोदी ने अपने सिंगल स्टेटस को ईमान से जोड़ दिया. यह दूसरी बात है कि अब उनकी सभा में मंच पर येदियुरप्पा भी होते हैं, जिन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में बीजेपी ने कभी पार्टी से निकाल दिया था.
बीजेपी में तो फिर भी अगर-मगर थी, लेकिन संघ परिवार ने वीटो लगा दी, तो 2014 के चुनावी रण में प्रधान सेनापति बन गए नरेंद्र मोदी. वे सेनापति, जिसने जंग जीत ली, तो बादशाहत उनके ही सिर सजेगी. लेकिन संघ परिवार के इस दुलारे ने एक सवाल उछाल दिया है कि मेरा कौन-सा परिवार है, जो मैं भ्रष्टाचार करूंगा.
अब यह तो मोदी ही बता सकते हैं कि सदाचार के किस ग्रंथ में लिखा है कि शादी नहीं करने वाले भ्रष्टाचारी नहीं होते और ये कहां लिखा है कि जिसने घर-परिवार बसाया हो, वो ईमानदार नहीं हो सकता. 20वीं सदी में इस बेबस-लाचार देश को आजादी दिलाने वाले महात्मा गांधी से बड़ा ईमान वाला कौन हो सकता था. उन्होंने शादी की भी, चार-चार बच्चे भी हुए थे. जिस सरदार पटेल की सबसे बड़ी प्रतिमा बनाने के लिए मोदी लोहा जुटा रहे हैं, वे पटेल भी शादीशुदा और बाल-बच्चेदार थे. लेकिन अब छोड़िए इन बातों को, बीजेपी की जुबान से सुनिएगा तो खाता न बही, जो मोदी जी कहें, वही सही.
25 साल में मोदी के कई रूप सामने आए. 1990 में राम की कसम खाकर अयोध्या में मंदिर बनाने वाले मोदी ने 2002 के दंगों के बाद खुद को पांच करोड़ गुजरातियों तक सीमित कर लिया. लेकिन दस साल बाद अचानक सद्भावना याद आई और फिर देश याद आ गया. देश याद आया, तो यह भी याद आया कि वे पिछड़े वर्ग से आते हैं और बचपन में कभी चाय बेचा करते थे.
अब अगर नरेंद्र मोदी को अपना सिंगल स्टेटस ईमानदारी का सबसे बडा़ सबूत लग रहा है, तो इसके पीछे हैं अरविंद केजरीवाल. रविवार को जब नरेंद्र मोदी हिमाचल प्रदेश के सुजानपुर में रैली करने जा रहे थे, तब गैस के बढ़े दाम पर केजरीवाल ने ट्विटर पर मोदी से सवाल पूछ लिया,
'मोदी को गैस के दाम पर अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए. साथ ही बताना चाहिए कि मुकेश अंबानी और अडानी के साथ उनका और उनकी पार्टी का क्या रिश्ता है.'
सवाल चुभने वाला था और जवाब न जाने कितनी उम्मीदों को छलनी कर जाता. अब मोदी ने भी तो कच्ची गोलियां खेली नहीं है, लिहाजा केजरीवाल के ट्वीट में उठाए सवाल को अपने ईमान से जोड़ दिया. देशभक्ति का रंग-रोगन लगाया, सो अलग से. मोदी ने कहा, 'एक आदमी भ्रष्टाचारियों का हिसाब लेकर घूम रहा है. मैं भ्रष्टाचार किसके लिए करूं, मेरा तो तन-मन देश को समर्पित है.'
मोदी की बूढ़ी मां हैं, लेकिन साथ नहीं रहतीं. तीज-त्योहार के मौके पर मोदी पैर छूकर आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं. भाई भी हैं, लेकिन मोदी के भव्य राजपथ से उनका कोई लेना-देना नहीं. मोदी उन्हें भी याद करते हैं, लेकिन बचपन की गलियों में लौटते हुए.
ईमान की कोई कीमत नहीं होती. ईमान न तो किसी ब्रह्मचारी का गुलाम होता है और न ही किसी घर-परिवार वाले का दुश्मन. बस इसके लिए अच्छी नीयत वाला जिगरा चाहिए. मोदी इसका दावा करते हैं, लेकिन इस दावे के रास्ते में आ जाते हैं येदियुरप्पा. कर्नाटक में बीजेपी के वे मुख्यमंत्री, जिनकी कुर्सी भ्रष्टाचार के आरोप में गई, लेकिन आज मोदी की जुबान पर उनकी तारीफ में फूल बरस रहे हैं. देखते जाइए, क्या पता कि वोट के मेले में एक ठेला ब्रह्मचारियों का भी लग जाए, जहां ईमान का पोस्टर लगा हो.
यह भी दिलचस्प संयोग है कि सोलहवीं लोकसभा में कांग्रेस और बीजेपी, देश की दोनों बड़ी पार्टियों की चुनावी कमान ऐसे नेताओं के हाथों में है, जो सिंगल हैं. मोदी ने तो अपने सिंगल होने को देशभक्ति से जोड़ दिया, लेकिन कांग्रेस इस पर हमलावर है और राहुल-मोदी के विरोधी हैं कि दोनों पर चुटकी ले रहे हैं.
बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का मानना है कि कांग्रेस और भ्रष्टाचार सगी बहनें हैं. तो फिर मोदी के मुताबिक, कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान के मुखिया राहुल गांधी क्या हुए? हालांकि जिस तरह मोदी अपने सिंगल स्टेटस को अपनी ईमानदारी का प्रतीक मानते हैं, उस आधार पर तो राहुल भी ईमानदार ही हुए. यह दूसरी बात है कि राहुल ने कभी शादी से इनकार नहीं किया.
नरेंद्र मोदी 64 के हैं और राहुल गांधी 44 के. मोदी की शादी तो रहस्यों के न जाने कितने पर्दों में छुपी है. राहुल गांधी कब शादी करेंगे, पता नहीं, लेकिन देश की दो सबसे बड़ी पार्टियों को चुनावी बैतरणी पार कराने का दारोमदार इन्हीं दोनों पर है. अब मोदी ने ब्रह्मचारी होने का राग छेड़ा, तो विरोधियों को चुटकी लेने का मौका मिल गया. मोदी पर भी और लगे हाथ राहुल पर भी.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आदर्शों में लिपटी है बीजेपी और संघ परिवार मानता है कि संस्कारों में लिपटा है उसका चरित्र. अब यह तो मोदी जी को भी पता होगा कि शादी को हिंदू धर्म में एक संस्कार माना गया है. ऐसे में देश के लिए जीने-मरने का शादीशुदा या कुंवारा होने से क्या लेना-देना? लेकिन मोदी ने इसे ईमान से जोड़ा, तो कांग्रेस ने मोदी को भ्रष्टाचार से. उनके उड़नखटोले से लेकर गुजरात तक आरोपों के घेरे में आ गए.
कोई कैसे रहे, कैसे जिए, यह उस शख्स का निजी फैसला होता है. लेकिन सार्वजनिक जीवन में जिस राहुल गांधी पर हर रोज करोड़ों नजरें टिकी रहती हैं, उनसे शादी पर सवाल भी होते हैं. राहुल शरमा कर रह जाते हैं, लेकिन काफी पहले उनकी बहन प्रियंका की यह तमन्ना जगजाहिर हुई थी कि भाई के सिर पर सेहरा बंधे.
यह चुनाव का मौसम है. वोट की फसल काटने का, लेकिन मुद्दों की किस जमीन पर वोट लहलहाएगा, ये किसी को पता नहीं. लिहाजा सभी अपने अपने दावों के बीज बो रहे हैं.
अब कौन जानता है कि ईवीएम से निकले नतीजे पर किसकी किस्मत का सिक्का चमकेगा. किसको वोटर सदाचारी मानेंगे, किसे भ्रष्टाचारी और किसे ब्रह्मचारी, लेकिन सवाल वोट का है, तो ऐसे जुमले चुनाव तक उछलते रहेंगे.
नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी दिल्ली के लिए मोर्चा ले रहे हैं, तो राज्यों में नवीन पटनायक, जयललिता, ममता और मायावती जैसे नेता हैं, जो सिंगल स्टेटस वाले हैं. वोट से पहले और वोट के बाद भी इन सियासी ब्रह्मचारियों पर सबकी नजर रहेगी. एक साथ चार-चार मुख्यमंत्री हैं, जो कुंवारे हैं. इनमें मोदी तो बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं, लेकिन ऐलान न होने के बावजूद यह माना जाता है कि दिल्ली के तख्त पर तिरछी नजर तो जयललिता की भी लगी है, नवीन पटनायक की भी और ममता बनर्जी की भी. और हां, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी शादी नहीं की. आय से ज्यादा संपत्ति के मामले में सीबीआई से उन्हें क्लीनचिट भी मिल चुकी है, लेकिन सवाल जरूर है कि क्या कुंवारा होना ईमानदार होने की गारंटी है?
कौन ईमानदार है, किसकी नीयत पर सवाल है, इसका जवाब चुनाव में मिल जाएगा, लेकिन यह भी सही है कि चुनाव के बाद भारतीय राजनीति के इन ब्रह्मचारियों की भूमिका काफी अहम होने की संभावना है.
बीजेपी ने जिस शख्स पर इस बार दांव चला है, उनका दावा है कि उनका कोई घर परिवार नहीं है. लेकिन घर-परिवार तो बीजेपी से बने इकलौते प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का भी नहीं था. वाजपेयी की निजी छवि पर सवाल उठे या न उठे, लेकिन उनकी सरकार पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे.
नरेंद्र मोदी को गुजरात की बागडोर अटल बिहारी वाजपेयी ने ही सौंपी थी. जैसे नरेंद्र मोदी के आगे-पीछे कोई नहीं, वैसे ही अटल बिहारी वाजपेयी ने भी शादी नहीं की. वाजपेयी बीजेपी की सबसे बड़ी धरोहर बने रहे, जिसकी पताका अब नरेंद्र मोदी के हाथ में है. लेकिन सवाल तो साफ-सुथरी छवि के बावजूद वाजपेयी पर भी उठे.
अब नरेंद्र मोदी ने चुनाव से ऐन पहले एक ऐसा मुद्दा उछाल दिया है, जिसकी गूंज लोकसभा चुनावों में सुनाई पड़ेगी. वोट के सिक्के चुनाव के बाजार में उछाले जाएंगे और ब्रह्मचारी बनाम गैर ब्रह्मचारी के बीच उन्हें लूटने की होड़ भी लग सकती है.