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नरेंद्र मोदी भी मानते है कृष्‍णा के हाथों में है जादू

नेपाल से लेकर भूटान और श्रीलंका से लेकर अमेरिका तक हर जगह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चर्चा है. मोदी ने कभी सड़क से अपनी पारी शुरू की थी और आज सत्ता के शिखर पर हैं. सफलता की कुछ ऐसी ही बानगी कृष्‍णा की है. वह देश की महिलाओं के लिए प्रेरणा है और उसकी ताकत का लोहा नरेंद्र मोदी से लेकर कृषि वैज्ञानिक तक हर कोई मानता है.

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अपने प्रॉडक्‍ट्स के साथ कृष्‍णा
अपने प्रॉडक्‍ट्स के साथ कृष्‍णा

नेपाल से लेकर भूटान और श्रीलंका से लेकर अमेरिका तक हर जगह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चर्चा है. मोदी ने कभी सड़क से अपनी पारी शुरू की थी और आज सत्ता के शिखर पर हैं. सफलता की कुछ ऐसी ही बानगी कृष्‍णा की है. वह देश की महिलाओं के लिए प्रेरणा है और उसकी ताकत का लोहा नरेंद्र मोदी से लेकर कृषि वैज्ञानिक तक हर कोई मानता है.

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कृष्‍णा ने कभी पढ़ाई नहीं की. लेकिन आज वह एक फैक्‍ट्री की मालकिन है. उसकी हाथों में जादू है. स्‍वाद है. ऐसा स्‍वाद कि प्रधानमंत्री भी उंगलियां चाट जाते हैं. कृष्‍णा अचार, मुरब्‍बा और चटनियां बनाती है. उसकी फैक्‍ट्री में 150 से भी जायदा किस्म के आइटम बनाए जाते हैं, जिनकी डिमांड मॉल से लेकर रेहड़ी बाजार तक हर जगह है. साधारण सी दिखने वाली कृष्णा दो बार मोदी के हाथों अवॉर्ड भी पा चुकी हैं.

मोदी कर्म को सर्वोपरी मानते हैं. कृष्णा के लिए उनका काम ही भगवान है. एक समय था जब वह काम के लिए भटकती थी, लेकिन समय बदला, परिस्थितियां बदलीं और आज वह सैकड़ों महिलाओं को रोजगार मुहैया करवा रही हैं. तभी तो इस महिला शक्ति के मोदी भी मुरीद हो गए हैं.

कृष्‍णा को एनजी रंगा अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है. यूपी से दिल्ली आकर परिवार के साथ गुजर बसर करने वाली कृष्‍णा कभी समाज की सबसे गंभीर बीमारी 'गरीबी' पीड़ि‍त थी. वह पति से साथ काम पाने के लिए दर-दर भटक रही थी. मन में कुछ कर गुजरने की चाह थी और आंखों में कुछ सपने जिसके सामने नींद बेअसर. कृष्‍णा ने दिल्ली कृषि विज्ञान केंद्र का रुख किया और अचार-मुरब्‍बा बनाना सीखा. वह दिन और आज का दिन, कृष्‍णा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

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सड़क, स्‍वाद और तरक्‍की
कृष्‍णा ने सड़क किनारे अचार का स्‍टॉल लगाया. जिसने भी कृष्णा के हाथ का अचार चखा, उंगलियां चाटते रह गए. स्‍टॉल पर भीड़ बढ़ने लगी. अचार से शुरू स्‍वाद की कहानी मुरब्‍बों समेत 150 किस्‍म तक पहुंच गई. आज कृष्णा के बनाए अचार, मुरब्बे, चटनियां और जूस सेना की कैंटीन तक बिकते हैं.

कृषि वैज्ञानिक डॉ. जेपी शर्मा कहते हैं, 'कृष्णा के बारे में जितना भी कहा जाए कम है. उन्‍होंने हमें भी विश्‍वास दिलाया है कि अपनी क्षमताओं और हमारी सीख को कैसे शिखर तक पहुंचाया जाता है.'

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