नोटबंदी की घोषणा के लिए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर का दिन चुना तो शाम तक लोगों को इसकी कानों कान ख़बर नहीं थी. घोषणा के चंद मिनटों पहले ख़बर आई कि प्रधानमंत्री देश को संबोधित करने वाले हैं. कयास लगते रहे कि सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर राजनीति तक कोई अहम बात मोदी कह सकते हैं. लेकिन हुआ इन सबसे उलट. यह घोषणा 500 और 1000 की नोटबंदी की घोषणा थी.
लेकिन भाजपा द्वारा ऐतिहासिक घोषित किए गए इस फैसले को लेकर ही तरह-तरह की शंकाएं सिर उठा रही हैं. घोषणा के समय और मंशा को लेकर संदेह व्यक्त किए जा रहे हैं. ऐसे कथानक सामने हैं जो सरकार द्वारा प्रचारित ब्यौरे को ग़लत बताते हैं या उनकी सत्यता पर सवाल उठाते हैं.
मसलन, ताज़ा रिपोर्टें भारतीय जनता पार्टी द्वारा नोटबंदी से ठीक पहले ज़मीनों की खरीद की है. कुछ समाचार माध्यमों ने इस बात का खुलासा किया है कि भारतीय जनता पार्टी ने नोटबंदी से ठीक पहले बिहार में करोड़ों रुपये की ज़मीन खरीदी है. इतना ही नहीं, बिहार के भाजपा नेताओं ने स्वीकारा भी है कि ज़मीन खरीदने में नकद भुगतान भी किया गया है. यह पैसा लोगों ने पार्टी को चंदे के तौर पर दिया था.
बिहार के ही भाजपा नेताओं की मानें तो पार्टी ने राज्य में ही नहीं बल्कि देशभर में नवंबर के पहले सप्ताह तक कई ज़मीनें ख़रीदी हैं. इनमें से कुछ ज़मीन खरीद के कागज़ात भी सामने आए हैं जिनमें पार्टी के पदाधिकारियों का नाम है और कहीं कहीं पर पार्टी के दिल्ली पते से पार्टी के ही नाम पर ज़मीन खरीदी गई है.
सवाल और भी हैं
इससे पहले यह जानकारी भी सामने आई है कि भारतीय जनता पार्टी की बंगाल इकाई की ओर से आठ नवंबर की घोषणा से ठीक पहले तीन करोड़ रुपये पार्टी के खाते में जमा कराए गए हैं. इस राशि का एक हिस्सा 500 और 1000 के नोटों में था.
इन खबरों के आधार पर संदेह व्यक्त किया जा रहा है कि क्या नोटबंदी की घोषणा से पहले पार्टी के लोगों को इसकी जानकारी मिल गई थी. या क्या पार्टी में नोटबंदी के संकेत दे दिए गए थे.
दूरदर्शन में काम करने वाले एक युवा पत्रकार सत्येंद्र मुरली ने तो गुरुवार को बाकायदा एक प्रेस कांफ्रेंस करके बताया कि प्रधानमंत्री का जो संबोधन आठ नवंबर की रात को आठ बजे से दूरदर्शन पर लाइव बताकर दिखाया गया था, वो दरअसल पहले से रिकॉर्डेड था. इससे सरकार की ओर से नोटबंदी की घोषणा से संबंधित जो जानकारी दी गई है, वो झूठी साबित हो सकती है.
हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि पार्टी सत्ता में है और लगातार कुछ न कुछ चीज़ें पार्टी के हित में खरीदती और बनाती रहती है. ऐसे में एक राष्ट्रीय पार्टी के लिए ये राशियां छोटी हैं और इनसे इतना बड़ा लाभ नहीं होने वाला कि प्रधानमंत्री अपनी सच्चाई को दांव पर लगा दें.
निशाने पर मोदी
लेकिन इन बातों में अगर सत्यता है तो यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक काफी बुरी ख़बर है. वो इसलिए कि इस फैसले के लिए वो खुद ज़िम्मेदार हैं. यह उनका फैसला था, पार्टी का नहीं. पार्टी और मंत्रिमंडल के सदस्यों को तो अंतिम समय तक इसका अंदाज़ा तक नहीं था.
खुद प्रधानमंत्री जब घोषणा करने के लिए लोगों के सामने आए तो न तो उनके साथ वित्तमंत्री अरुण जेटली थे और न ही आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल. यह एक आवाज़ और एक चेहरे के साथ की गई घोषणा थी जिसमें श्रेय केवल एक व्यक्ति को जाना था और वो हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.
लेकिन श्रेय न बंटे तो आरोप भी बंटते नहीं हैं. रह-रहकर जो बातें और जो संदेह सामने आ रहे हैं, वो अगर किसी एक को अपना निशाना बना रहे हैं तो वो हैं नरेंद्र मोदी. और ऐसा इसलिए है क्योंकि यह फैसला मोदी का अपना फैसला है और उन्होंने ही लिया है. सरकार भी यही कहती है और पार्टी भी.
यानी कालेधन पर सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय लेने वाले प्रधानमंत्री की इस घोषणा पर अगर संदेह गहराता गया और तथ्यों में अनियमितता प्रमाणित हो पाई तो इसका सीधा असर मोदी की अपनी छवि पर पड़ेगा.
मोदी और उनकी पार्टी पहले ही इस घोषणा के ज़मीन पर अराजक होते जाने की चिंताओं से चिंतित हैं. लेकिन इस घोषणा के पीछे की मंशा और साक्ष्य अगर दोहरे साबित होते हैं तो मोदी और भी ज़्यादा घिरे और कमज़ोर पड़ जाएंगे. यह मोदी का अपना भाग होगा और इसमें उनकी पार्टी तक हिस्सेदार नहीं हो सकेगी.