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बिना UPSC अफसर: मोदी सरकार के फैसले से विपक्ष खफा, खेमका-पनगढ़िया से मिली तारीफ

मोदी सरकार ने लैटरल एंट्री के माध्यम से 10 संयुक्त सचिव (जॉइंट सेक्रेटरी) पद के लिए अधिसूचना जारी करते हुए आवेदन आमंत्रित किए हैं. इस फैसले के बाद अब यूपीएससी की ओर से आयोजित होने वाली सिविल सर्विसेज परीक्षा पास किए बिना भी योग्य उम्मीदवार सरकार में वरिष्ठ अधिकारी बन सकते हैं.

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अरविंद पनगढ़िया और IAS अशोक खेमका (फाइल फोटो)
अरविंद पनगढ़िया और IAS अशोक खेमका (फाइल फोटो)

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मोदी सरकार नौकरशाही में ऐतिहासिक बदलाव करने जा रही है,  जिसमें पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर के टैलेंट को भी महत्व दिया जाएगा, लेकिन इस कवायद की राजनीतिक गलियारे में विपक्ष की ओर से जमकर आलोचना की जा रही है तो वहीं अपनी ईमानदारी के लिए खासे चर्चित रहे आईएएस अशोक खेमका और नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने इस कदम का समर्थन किया है.

मोदी सरकार ने लैटरल एंट्री के माध्यम से 10 संयुक्त सचिव (जॉइंट सेक्रेटरी) पद के लिए अधिसूचना जारी करते हुए आवेदन आमंत्रित किए हैं. सरकार के इस फैसले के बाद अब संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की ओर से आयोजित होने वाली सिविल सर्विसेज परीक्षा पास किए बिना भी योग्य उम्मीदवार सरकार में वरिष्ठ अधिकारी बन सकते हैं.

पुनिया ने की आलोचना

पूर्व आईएएस और कांग्रेस नेता पीएल पुनिया ने सरकार के इस फैसले की कड़ी निंदा की और इसकी मंशा पर सवाल भी उठाया. नियुक्ति के लिए जारी विज्ञापन को लेकर उन्होंने कहा, 'यह गलत है. इसमें इंडियन नेशनल का जिक्र किया गया है, इंडियन सिटीजन नहीं. तो क्या बाहर रहने वालों को भी बनाएंगे.'

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उन्होंने कहा, 'सरकार बीजेपी और संघ के लोगों को बैकडोर से घुसेड़ना चाहती है. सरदार पटेल ने अधिकारियों की इस श्रेणी को स्टील फ्रेम कहा था. उनका मानना था कि नेता और सरकारें आती जाती रहेंगी, लेकिन इस श्रेणी के अधिकारियों पर उसका कोई प्रभाव नहीं होना चाहिए, यह उनके विजन के साथ भी खिलवाड़ है.'

आरजेडी के नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी सरकार के इस कदम की आलोचना की है. उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि यह मनुवादी सरकार यूपीएससी को दरकिनार कर बिना परीक्षा के नीतिगत और संयुक्त सचिव के महत्वपूर्ण पदों पर मनपसंद व्यक्तियों को कैसे नियुक्त कर सकती है? यह संविधान और आरक्षण का घोर उल्लंघन है. कल को ये बिना चुनाव के प्रधानमंत्री और कैबिनेट बना लेंगे. इन्होंने संविधान का मजाक बना दिया है.

हालांकि विख्यात आईएएस अशोक खेमका ने सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हुए ट्वीट किया कि इससे सार्वजनिक सेवाओं में बाहर की प्रतिभाओं के इस्तेमाल किया जा सकेगा.

पनगढ़िया ने भी PM मोदी के कदम को सराहा

नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने भी पीएम मोदी के कदम की सराहना की है. उन्होंने ट्वीट किया, 'पीएम मोदी ने एक और बड़े रिफॉर्म के तहत लेटरल एंट्री के जरिए टॉप सिविल सर्विस में कम्पीटिशन के द्वार खोल दिए हैं. उम्मीद है कि देश के बेस्ट माइंड वाले लोग इस मौके को हाथोंहाथ लेंगे और सेवा करने के लिए आगे आएंगे. ऐसे लोग ही सुधार की सफलता की कुंजी हैं.'

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अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक, सरकार की ओर से जारी की गई अधिसूचना के अनुसार इन पदों के लिए वही आवेदन कर सकते हैं, जिनकी उम्र 1 जुलाई तक 40 साल हो गई है और उम्मीदवार का किसी भी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट होना आवश्यक है.

उम्मीदवार को किसी सरकारी, पब्लिक सेक्टर यूनिट, यूनिवर्सिटी के अलावा किसी निजी कंपनी में 15 साल का अनुभव होना भी जरुरी है. इन पदों पर चयनित होने वाले उम्मीदवारों की नियुक्ति तीन साल तक के लिए की जाएगी. सरकार इस करार को 5 साल तक के लिए बढ़ा भी सकती है.

नौकरशाही में लैटरल ऐंट्री का पहला प्रस्ताव 2005 में ही आया था, जब प्रशासनिक सुधार पर पहली रिपोर्ट आई थी, लेकिन तब इसे सिरे से खारिज कर दिया गया. फिर 2010 में दूसरी प्रशासनिक सुधार रिपोर्ट में भी इसकी अनुशंसा की गई. लेकिन इस संबंध में पहली गंभीर पहल 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद हुई.

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