सियासत में चले एक दांव ने नरेंद्र मोदी को 2019 से पहले ही अजेय बना दिया है. बिहार में हार की टीस बीजेपी को बेहद परेशान कर रही थी, नीतीश कुमार विपक्ष की तरफ से एकमात्र चुनौती के तौर पर उभर रहे थे, लेकिन मोदी का मैजिक नीतीश कुमार पर भी चल गया. नीतीश का बीजेपी से हाथ मिलाना, बीजेपी का 2019 से पहले ही मैदान मार लेने जैसा है.
सिर्फ 20 महीने में चाल, ढाल और ताल तीनों बदल गई. नीतीश कुमार की भाव भंगिमा बदल गई, देह की भाषा बदल गई, निष्ठा बदल गई, राजनीति की दिशा बदल गई. कहां नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर देखे और तौले जा रहे थे. विपक्ष को नीतीश में भविष्य की नैया का मांझी दिख रहा था लेकिन नीतीश ने अपनी नाव किनारे की खूंटी से बांध दी और गहरे पानी में उतरने से इनकार कर दिया और मोदी को अपराजेय बना दिया.
नीतीश की जुबां से निकले नए तरानों से विपक्ष घायल है क्योंकि महागठबंधन बनाकर बीजेपी के विजय रथ को रोकने की रणनीति ही टांय-टांय फिस्स हो गई है. आप कह सकते हैं कि मोदी ने 2019 की चुनावी लड़ाई से पहले ही विपक्ष को धराशायी कर दिया है. आप ये भी कह सकते हैं कि ये मोदी की शख्सियत का कमाल है जिसके आगे नीतीश कुमार जैसे जुझारू नेता की उम्मीद की लौ भी फफककर बुझ गई.
लेकिन नीतीश के लिए अभी मोदी फैक्टर की फांस पूरी तरह खत्म नहीं हो गई है. पटना किनारे सियासत की गंगा में अभी लहरें और भी उठेंगी. जब लोकसभा का चुनाव आएगा तो बीजेपी-जेडीयू में सीटों के संग्राम का खतरा साफ-साफ दिखेगा. शरद यादव जैसे नेताओं की टीस कहां तक रहती है, ये भी देखने वाली बात होगी. और लालू परिवार तो नीतीश का रोज इम्तेहान लेगा ही.
नीतीश की सूझबूझ का भी लगातार लिटमस टेस्ट होना है. मोदी और लालू दोनों के लिए वो जरूरी हैं लेकिन उसी तरह जैसे सलीम और अकबर के लिए अनारकली जरूरी थी. सलीम की मुहब्बत अनारकली को मरने नहीं दे रही थी और अकबर उसे जीने नहीं दे रहा था.