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EXCLUSIVE: आजतक का बड़ा खुलासा, नरेंद्र मोदी पर हमले की रची गई थी साजिश

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी 15 जून, 2004 को पुलिस मुठभेड़ में मारे गए आतंकवादियों के निशाने पर थे. इस बात का खुलासा इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी के खत से होता है.

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Narendra Modi
Narendra Modi

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी 15 जून, 2004 को पुलिस मुठभेड़ में मारे गए आतंकवादियों के निशाने पर थे. इस बात का खुलासा इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी के खत से होता है. इस खत में खुद आईबी ने माना कि इस बाबत उसने बाकायदा गुजरात पुलिस को जानकारी दी थी गोधरा दंगों के बाद नरेंद्र मोदी समेत लाल कृष्ण आडवाणी और प्रवीण तोगड़िया पाकिस्तान के आतंकियों के निशाने पर हैं. आज तक की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट से पूरे मामले से अब पर्दा हट गया है.

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आतंक की खौफनाक साजिश बेपर्दा होती है आईबी चीफ की उस चिट्ठी से भी, जो उन्होंने 28 फरवरी, 2013 को सीबीआई निदेशक के नाम लिखी है. इस खत में साफ-साफ लिखा है...

गोधरा दंगों के बाद से आईबी को ये जानकारियां मिल रही हैं कि नरेन्द्र मोदी समेत कई हिंदूवादी और धार्मिक नेताओं की जान को खतरा है. एक खास जानकारी के मुताबिक लश्कर-ए-तैयबा भारत में सक्रिय अपने लोगों से लाल कृष्ण आडवाणी, नरेन्द्र मोदी और वीएचपी नेता प्रवीण तोगड़िया की आवाजाही के बारे में जानकारियां इकट्ठा करने के लिए कह रहा है.

आईबी ने इस जानकारी को 22 अप्रैल, 2004 को सभी राज्यों के पुलिस प्रमुखों को भेजा. इस जानकारी पर काम करते हुए आईबी ने अपनी सभी इकाइयों को आतंकियों की गतिविधियों पर नजर रखने को भी कहा.

आईबी के अहमदाबाद के ज्वाइंट डायरेक्टर राजेन्द्र कुमार ने तत्कालीन पुलिस कमिश्नर केआर कौशिक से मिलकर बाकायदा ये जानकारी भी दी कि पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के दो आतंकवादी अलग-अलग मकसद से गुजरात में सक्रिय हैं. इन दोनों आतंकवादियों को महाराष्ट्र के पुणे इलाके का रहने वाला एक हिदुस्तानी यहां मदद कर रहा है.

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मतलब, आईबी के खत से साफ है कि खुफिया विभाग ने नरेन्द्र मोदी को मारने की मंशा से गुजरात में घूम रहे दो पाकिस्तानियों को लेकर गुजरात पुलिस को जानकारी दी थी. आईबी के इसी खत में आगे कहा गया है कि इशरत जहां समेत मारे गए चारों आतंकवादियों के बारे में आईबी को मीडिया के हवाले से जानकारी मिली. इसी खत में कहा गया है कि मारे गए चार में से दो आतंकवादी जिस उर्फियत का इस्तेमाल कर रहे थे, वो उससे मिलता-जुलता है जैसा कि अहमदाबाद के ज्वाइंट डायरेक्टर ने पुलिस कमिश्नर को मिलकर जानकारी दी थी.

एफबीआई ने जिस डेविड हेडली को गिरफ्तार किया, उसने भी अपने बयान में कहा है कि लश्कर के कमांडर मुजम्मिल ने उसे बताया था कि इशरत जहां लश्कर-ए-तैयबा की फिदायीन आतंकी है, जिसे खुद मुजम्मिल ने ही लश्कर में शामिल किया था.

इतना ही नहीं कश्मीर में पकड़े गए पाकिस्तानी आतंकवादी शहीद महमूद बसरा ने बी बताया था कि अहमदाबाद में मारे गए आतंकियों मे से एक पाकिस्तानी फिदायीन है. मुजम्मिल ने वीआईपी लोगों के खिलाफ कार्रवाई के लिए भेजा था.

इशरत जहां समेत चारों आतकवादी फर्जी मुठभेड़ में मारे गए या नहीं, इस बात का फैसला अदालत करेगी, लेकिन एक बात साफ है कि इशरत आतंकवादी थी औऱ उसका रिश्ता लस्कर-ए- तैयबा के कमांडर के साथ ही उन दोनों पाकिस्तानियों से भी था, जिनको हिंदुस्‍तान में नेताओं औऱ वीआईपी लोगों को मारने की मंशा से लस्कर ने भेजा था.

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कौन-कौन थे आतंकियों के निशाने पर...
टारगेट नंबर 1- बाल ठाकरे
टारगेट नंबर 2- लाल कृष्ण आडवाणी
टारगेट नंबर 3- अशोक सिंघल
टारगेट नंबर 4- प्रवीण तोगड़िया
जिस वक्त आतंकियों ने ये साजिश रची थी, बाकी के चार लोग गुजरात से बाहर थे, इसलिए आतंकियों ने नरेंद्र मोदी के लिए रची थी पूरी साजिश.

जानिए क्‍या है पूरा वाकया...
15 जून, 2004 को गुजरात पुलिस ने अहमदाबाद शहर में तड़के चार आतंकवादियों को मार गिराया. मीडिया के लोग जब वहां पहुचे, तो पता चला कि मारे गए आतंकवादियों में मुंबई के मुंब्रा इलाके में रहने वाली एक लड़की इशरत जहां भी थी. ये पहला ऐसा मामला था जब पाकिस्तानी आतंकवादियों के साथ किसी महिला को पुलिस ने मार गिराया था. बाकी मारे गए आतंकवादियों में दो लश्कर के आतंकी अमजद अली राणा और जीशान जौहर थे, जबकि कि तीसरा आतंकी जावेद शेख था जो कि केरल का रहने वाला था. जावेद की जिम्मेदारी इन पाकिस्तानी आतंकियों को लोकल स्तर पर मदद करने की थी और पुलिस के मुताबिक उसने इशरत से निकाह भी कर लिया था.

हालांकि इशरत की मौत को लेकर उसी समय सियासत शुरू हो गई. मुंबई में लोगों ने प्रदर्शन भी किया, लेकिन इशरत औऱ जावेद के परिवार को छोड़कर किसी भी सरकारी तंत्र ने इस बात को नहीं माना कि ये एंकाउंटर फर्जी था. हालांकि तब केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार थी और गुजरात में बीजेपी की सरकार थी.

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इस मुठभेड़ को अंजाम दिया गुजरात पुलिस के डीआईजी डीजी वंजारा समेत 20 पुलिस वालों ने. करीब पांच साल तक ये मामले शांत रहा. मामले की जांच कर रहे मेट्रोपोलिटन मैजिस्ट्रेट एससी तवांग ने पांच साल बाद 7 सितंबर 2009 को चीफ मेट्रोपोलिटन मैजिस्ट्रेट के पास एक 243 पन्नों की रिपोर्ट फाइल करके कहा कि यह हिरासम में मौत का मामला है.

तवांग की रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि गुजरात पुलिस ने 12 जून को इशरत औऱ उसके तीन औऱ साथियों को मुंबई से उठाया और 14 जून को हिरासत में उनकी हत्या कर दी गई. रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि इशरत जहां का न तो किसी आतंकवादी गुट से रिश्ता था औऱ न ही इन लोगों से नरेंद्र मोदी को जान का खतरा था.

रिपोर्ट में एडिशनल डीजी पीपी पांडे, डीआईजी डीजी वंजारा औऱ तत्कालीन अहमदाबाद के पुलिस कमिश्नर कौशिक समेत तमाम पुलिसवालों के नाम भी डाल दिया गया. इसे फर्जी मुठभेड़ मानते हुए सुनवाई के आदेश दे दिए गए.

9 सितंबर 2009 को गुजरात हाईकोर्ट ने इस रिपोर्ट पर स्टे लगा दिया और कहा कि गुजरात के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की एसआईटी मामले की जांच करे. इस एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में मैजिस्‍ट्रेट तवांग की रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए उसे खारिज कर दिया.

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इसी बीच इशरत जहां की मां शमीमा बानो की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाइकोर्ट ने एक और एसआईटी के गठन के आदेश दिए, जिसमें गुजरात के बाहर का एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अलावा याचिकाकर्ता के पसंदीदा अधिकारी को शामिल करने के आदेश दिए.

मजेदार बात ये कि इस एसआईटी में शामिल करीब तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जांच बीच में ही छोड़कर चले गए, क्योंकि मामला काफी पेचीदा था और साथ ही एसआईटी के एक सदस्य आईजी सतीश वर्मा के काम करने के तरीकों से आपसी मतभेद भी होते रहे.

बामुश्किल एसआई़टी ने 21 नवंबर, 2011 को अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट में पेश की, जिसमें कहा गया कि इशरत औऱ उसके साथियों को फर्जी मुठभेड़ में मारा गया. हालांकि एसआईटी की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र नहीं किया गया कि मारे गए लोग आतंकवादी थे या फिर नहीं.

चूंकि मामला कई राज्यों से जुड़ा था, इसलिए हाईकोर्ट ने मामले की जांच जनवरी, 2012 में सीबीआई के हवाले कर दी. लेकिन इस मामले में इतने दिन बीत जाने के बाद भी सीबीआई ने अभी तक चार्जशीट दाखिल नहीं की है.

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