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पहचाना गया नक्‍सली हमले का 'मास्‍टरमाइंड'

छत्तीसगढ़ में हुए नक्‍सली हमले की देशभर में निंदा हो रही है. हिंसा की वारदात के बाद मातम का माहौल है. हर कोई नक्‍सलवाद जैसे मर्ज के कारगर इलाज की बात कर रहा है. यह अलग बात है कि नक्‍सली हर बार सुरक्षा तंत्र को भेदकर खूनी तांडव करके सरकारी उपायों को बौना साबित कर देते हैं.

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छत्तीसगढ़ में हुए नक्‍सली हमले की देशभर में निंदा हो रही है. हिंसा की वारदात के बाद मातम का माहौल है. हर कोई नक्‍सलवाद जैसे मर्ज के कारगर इलाज की बात कर रहा है. यह अलग बात है कि नक्‍सली हर बार सुरक्षा तंत्र को भेदकर खूनी तांडव करके सरकारी उपायों को बौना साबित कर देते हैं.

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हमले के मास्‍टरमाइंड की पहचान
फिलहाल थोड़ी राहत की बात यह है कि छत्तीसगढ़ हमले के मास्टरमाइंड की पहचान कर ली गई है. जानकारी के मुताबिक, हमले की साजिश पंकज उर्फ गगन्ना ने रची थी. पंकज करीमनगर का रहने वाला है.

आखिर कब खत्‍म होगा नक्‍सलवाद?
जिस तरीके से छत्तीसगढ़ में बस्तर के पास एक हजार से भी ज्यादा नक्सलियों ने कांग्रेस के एक काफिले पर कोहराम मचाया, उसके बाद हर कोई ये सवाल पूछ रहा है कि आखिर कब होगा देश से नक्सलवाद का खात्मा? कब नक्सलवाद से प्रभावित देश के करीब 107 जिले बैखौफ सांस ले सकेंगे? सवाल यह भी है कि नक्सलवाद पर सरकार आखिर क्यों इतनी कमजोर है?

लाल आतंक से दहली काली शाम
25 मई की शाम का सूरज ढलता जा रहा था, लेकिन डूबते सूरज के साथ-साथ एक ऐसी खतरनाक कहानी लिखी जा रही थी जिसकी स्याही लाल खून की थी और कलम हजार से ज्यादा नक्सलियों के हथियार थे. बाद में बचा तो सिर्फ वह मंजर, जहां चीख-पुकार थी, बदहवासी थी, खून से लथपथ लोग थे और बिखरी हुई बेजान लाशे थीं.

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छत्तीसगढ़ में बस्तर के पास 25 मई को शाम करीब सवा 5 बजे हजार से ज्यादा नक्सलियों ने कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लंबे-चौड़े काफिले को घेरकर 2 घंटे तक अंधाधुंध फायरिंग की. लाल आतंक के इस हमले में अबतक 28 लोगों के मौत की पुष्टि हो चुकी है. मारे गए लोगों में राज्य के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता महेंद्र कर्मा, राज्य विधानसभा में नेता विपक्ष नंद कुमार पटेल सहित कई कांग्रेसी कार्यकर्ता हैं. नक्सली हमले में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विद्याचरण शुक्ल बुरी तरह से घायल हैं, जिनका गुड़गांव के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है.

परिवर्तन यात्रा के दौरान वारदात
हमला उस वक्त हुआ, जब कांग्रेस के करीब 120 कार्यकर्ता अपने नेताओं के साथ सुकमा में परिवर्तन यात्री की एक रैली के बाद जगदलपुर की ओर लौट रहे थे. तभी दरभा घाटी के पास नक्सलियों ने उन्हें घेरकर गोलीबारी शुरू कर दी.

खोखले नारों से जनता को क्‍या फायदा?
नक्सलियों ने जी-भरकर आतंक का खूनी खेल खेला और कोहराम मचाते हुए गायब हो गए. बचा है तो हताहतों के परिवार का कोलाहल और उनके दर्द पर मरहम लगाते नेताओं की वाणी. 'हमें नक्सलवाद से निपटने के लिए एकजुट होना होगा'...'हम नक्सलवाद को खत्म करने के लिए कदम उठाएंगे'...'हम नक्सलियों को कड़ा जवाब देंगे'...कद्दावर नेताओं के इसी तरह के न जाने कितने वादों और जुमलों को सुनते सुनते सालों निकल गए, लेकिन लाल आतंक का खतरनाक खेल अभी तक जारी है.

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नक्‍सलियों के आतंक का शिकार बनते बेगुनाह
देश में नक्सलवाद नाम का कैंसर अब तक कितनी ही मौतों को अंजाम दे चुका है. साल 2005 से लेकर मई 2013 तक देशभर में अलग-अलग राज्यों में नक्सली हमले में करीब 4107 लोगों की मौत हो चुकी है. इनमें से आम नागरिकों की तादाद लगभग 2523 है और पुलिसवालों की संख्या 1584 के आसपास है. इस लिहाज से हर साल औसतन करीब 500 लोग नक्सलियों के आतंक का शिकार बनते हैं.

आतंकवाद से ज्‍यादा घातक मर्ज
हर साल नक्सलियों की गोलियों से मरने वाले लोगों की तादाद देश में आतंकी हमलों में मरने वाले लोगों के आंकड़े से कहीं ज्यादा है. हिंदुस्तान के 9 राज्य नक्सलवाद नाम के नासूर से जूझ रहे हैं. इन 9 राज्यों के करीब 107 जिलों में नक्सल प्रभावित हैं. हैरानी इस बात की है कि नक्सलियों की ताकत में लगातार इजाफा होता जा रहा है. सवाल है कि आखिर नक्सलियों की बढ़ती ताकत क्यों कम नहीं हो रही है? क्यों नहीं खत्म हो रहा है लाल आतंक? कब तक मरते रहेंगे निर्दोष लोग? आखिर कब सरकार नक्सलियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी और कब नक्सलवाद की असली जड़ को काटा जाएगा?

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