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'बाल विवाह रोकने के लिए केवल कानून ही काफी नहीं’

देश मे बाल विवाह की समस्या कम हुई है लेकिन ताजा सर्वे में यह भी बात निकल कर आई है कि बाल विवाह अब सिर्फ ग्रामीण इलाकों की समस्या नहीं है बल्कि मेट्रो और छोटे शाहरों तक में बाल विवाह के मामले सामने आ रहे हैं.

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फाइल फोटो
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देश मे बाल विवाह की समस्या कम हुई है लेकिन ताजा सर्वे में यह भी बात निकल कर आई है कि बाल विवाह अब सिर्फ ग्रामीण इलाकों की समस्या नहीं है बल्कि मेट्रो और छोटे शाहरों तक में बाल विवाह के मामले सामने आ रहे हैं.

नेशनल कमीशन फ़ॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स और गैर सरकारी संस्था यंग लाइव्स ने अपने साझा सर्वे में ये खुलासे किए हैं. सर्वे के मुताबिक दिल्ली से सटे गाज़ियाबाद और मुम्बई के सब-अर्बन इलाके में भी बाल विवाह काफी संख्या में हुए हैं.

सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश अर्जुन सीकरी ने गुरूवार को इंडिया हैबिटैट सेंटर में इस रिपोर्ट को जारी किया. जस्टिस सीकरी ने इस मौके पर कहा कि कई बार कानून बनते हैं लेकिन उनकी सामाजिक मान्यता भी होना चाहिए. समाज में जब तक उसे न माना ना जाए तब तक कानून का असर सही से नहीं होता. सती प्रथा के लिए कानून है लेकिन फिर भी अभी भी कुछ जगहों पर ये प्रथा है. इसी तरह बाल-विवाह के लिए भी कानून है लेकिन फिर भी ये हो रहा है.’

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जस्टिस सीकरी ने ये भी कहा की कई कानून में आपस में भी टकरा जाते हैं. कानून के मुताबिक लड़की की शादी की उम्र 18 साल होनी चाहिए लेकिन सहमति से सेक्स के लिए ये उम्र कम है. जस्टिस सीकरी के मुताबिक कभी-कभी चाइल्ड मैरिज में पर्सनल लॉ भी आड़े आता है. पर्सनल लॉ काम उम्र में शादी की इजाज़त देता है लेकिन सिर्फ विधायिका ही इसे खत्म कर सकती है, सुप्रीम कोर्ट इसमें कुछ नहीं कर सकता.

यंग लाइव्स और एनसीपीसीआर ने 2011 की जनगणना को आधार बना कर ये सर्वे किया है.

सर्वे के मुताबिक 10-14 आयु वर्ग में बाल-विवाह पिछले साल के मुकाबले कम ज़रूर हुआ है लेकिन फिर भी इस आयु वर्ग में 11 लाख लड़के और 18 लाख लड़कियों का बाल-विवाह हुआ.

महिला और बाल विकास मंत्रालय के सचिव राकेश श्रीवास्तव ने सर्वे रिपोर्ट जारी होने के मौके पर कहा मंत्रालय बाल विवाह को रोकने के लिए कदम उठा रहा है और इस मकसद से नेशनल प्लान ऑफ एक्शन फ़ॉर चिल्ड्रन 2016 चलाया है जिसका मकसद 2021 तक बाल विवाह को 15 फीसदी तक काम करना है.

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