पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के प्रति अपने निजी लगाव के बावजूद नटवर सिंह ने अपनी किताब ‘वन लाइफ इज नॉट इनफ: ऐन ऑटोबायोग्राफी’ में राजीव के राजनीतिक और प्रशासनिक कौशल पर सवाल खड़े किए और लिखा कि उन्होंने शाह बानो मामले, बाबरी मस्जिद-रामजन्म भूमि मुद्दे और दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र के आंदोलन को ‘गलत ढंग से निबटाया.’ कभी नेहरू-गांधी परिवार के वफादार रहे पूर्व विदेशमंत्री नटवर सिंह ने बोफोर्स विवाद को निबटाने के मामले में भी राजीव गांधी में खोट निकाली.
उन्होंने अपनी आत्मजीवनी ‘वन लाइफ इज नॉट एनफ’ में लिखा, ‘मैंने तब महसूस किया, और अब भी करता हूं कि प्रधानमंत्री इसको ज्यादा अच्छे ढंग से निबटा सकते थे. वह ज्यादा संयम बरत सकते थे. उन्होंने यह नहीं किया. इसके उलट, वह बोफोर्स कीचड़ में कूद पड़े. कुछ उन्हें लगी.’ उन्होंने कहा कि राजीव अपने मंत्रिमंडल में बार-बार फेरबदल करते थे. ऐसे फेरबदल दो दर्जन से ज्यादा बार हुए और एकमात्र रेलमंत्री माधवराव सिंधिया पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा कर सके.
मुस्लिम उलेमा की नाराजगी के बावजूद राजीव पहले शाह बानो मामले में हाई कोर्ट के फैसले की हिमायत में थे. उन्होंने एक कनिष्ठ मंत्री आरिफ मोहम्मद खान को अदालती आदेश की हिमायत के लिए उतारा था. बहरहाल, बाद में उन्होंने अपना रुख बदला और खान ने इस्तीफा दे दिया. सिंह ने लिखा, ‘देशव्यापी प्रतिक्रिया थी कि प्रधानमंत्री ने मुद्दे को ठीक ढंग से नहीं निबटाया. सिंह राजीव मंत्रिमंडल में मंत्री थे.
उन्होंने लिखा कि बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मुद्दा तब उभरा जब कथित रूप से राजीव के निकट सहयोगी अरुण नेहरू के इशारे पर स्थल पर लगा ताला हटा लिया गया और वहां पूजा शुरू हो गई. इस मुद्दे की परिणति बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा और बाबरी मस्जिद ढहाए जाने से हुआ.
बहरहाल, सिंह ने ‘बड़ी संख्या में लोगों की मानसिकता बदलने’ और देश को 21वीं सदी के लिए तैयार करने के लिए राजीव की तारीफ की.
उन्होंने राजीव गांधी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान उनकी चीन यात्रा को एक अहम घटना के रूप में पेश करते हुए लिखा, ‘उन्होंने अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान जो उपलब्धि हासिल की, वह उल्लेखनीय है.’ सिंह के अनुसार राजीव गांधी अपने शासनकाल के पहले डेढ़ साल तक बढ़े अहंकार वाले अज्ञानियों की एक टीम’ पर पूरी तरह आश्रित रहे.’ उन्होंने एक साक्षात्कार में उनमें से दो की पहचान गोपी अरोड़ा और अरुण नेहरू के रूप में की थी. दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं. बहरहाल, उन्होंने तीसरे का नाम बताने से इनकार कर दिया क्योंकि वह बहुत बुढ़े हो गए हैं और इस मुद्दे का अब ज्यादा महत्व नहीं है. सिंह ने अपनी आत्मजीवनी में लिखा है कि राजीव गांधी के मित्र और मंत्रिमंडलीय सहयोगी अरुण नेहरू ने उन्हें ‘आपरेशन ब्रासस्टैक्स’ के बारे में अंधेरे में रखा. इस मुद्दे ने भारत और पाकिस्तान को जंग के निकट ला दिया. बाद में, इस मुद्दे पर अरुण नेहरू को मंत्रिमंडल से हटाया गया था.