छत्तीसगढ़ पुलिस ने एक बड़ी सफलता हासिल करते हुए स्वयंभू नक्सल कमांडर बारसा लखमा सहित छह नक्सलियों को गिरफ्तार किया है जो कथित रूप से पिछले महीने 76 सुरक्षाकर्मियों की हत्या की घटना में शामिल थे.
पुलिस अधीक्षक अमरेश मिश्रा ने बताया ‘हमने रविवार रात अलग-अलग घटनाओं में चिंतलनार से चार किलोमीटर दूर मोरापली से लखमा सहित छह लोगों को गिरफ्तार किया’. इन लोगों पर छह अप्रैल को सीआरपीएफ के 75 और राज्य पुलिस के एक जवान सहित 76 सुरक्षाकर्मियों की हत्या में शामिल होने का आरोप है. स्वतंत्रता के बाद सुरक्षा कर्मियों पर यह सबसे बड़ा हमला था.
गिरफ्तार नक्सलियों ने पुलिस को पूछताछ में बताया कि सीआरपीएफ की 62वीं बटालियन के डिप्टी कमांडेंट का वायरलेस सेट खो जाने के बाद सुरक्षाकर्मी असहाय हो गए. लखमा ने बताया कि नक्सली वायरलेस सेट की मदद से अर्धसैनिक बलों की गतिविधियों पर करीब से नजर रखे हुए थे.
पुलिस अधीक्षक ने बताया कि गिरफ्तार अन्य नक्सलियों में ओयम हिदमा पोदियामी हिदमा कावासी बुद्र ओया गंगा और दुर्गा जोगा शामिल हैं. इन्हें तारमेतला से पांच किलोमीटर दूर मिनापा गांव से गिरफ्तार किया गया. {mospagebreak}
उन्होंने पुलिस को बताया कि वे सीआरपीएफ कर्मियों पर करीब से नजर रख रहे थे यहां तक कि पांच अप्रैल को उनकी ‘पिकनिक’ पर भी जिसके दौरान सीआरपीएफ के डिप्टी कमांडेंट का वायरलेस सेट खो गया. घटना के बाद इन छह नक्सलियों ने शीर्ष नक्सल नेता रामन्ना और पापाराव को विस्तृत ब्यौरा दिया. इस दौरान सीआरपीएफ की ‘निश्चिंतता’ पर भी चर्चा हुई.
मिश्रा ने बताया कि गिरफ्तार नक्सलियों के अनुसार सीआरपीएफ कंपनी को निशाने के रूप में इसलिए चुना गया क्योंकि वह पूरे दिन एक ही स्थान पर रुकी रही और नक्सली सुरक्षाकर्मियों की गतिविधियों पर लगातार नजर रखे हुए थे.
नक्सलियों ने बताया कि हत्याकांड को अंजाम देने का अंतिम फैसला उस समय किया गया जब छह अप्रैल को तड़के तीन बजे वायरलेस सेट बजना शुरू हुआ और जवानों को घटनास्थल पर लौटकर डिप्टी कमांडेंट के खोए वायरलेस सेट को ढूंढ़ने को कहा गया.
इन नक्सलियों की गिरफ्तारी ऐसे समय हुई है जब केंद्र ने सीआरपीएफ के उप महानिरीक्षक नलिन प्रभात 62वीं बटालियन के कमांडेंट और एक निरीक्षक का तबादला कर दिया है. ईआर राममोहन की रिपोर्ट के मद्देनजर मिश्रा और छत्तीसगढ़ पुलिस के महानिरीक्षक टीजे लोंग कुमीर के तबादले की भी सिफारिश की जा चुकी है जिन पर क्षेत्र में प्रभुत्व कायम करने की उचित योजना न बनाने का आरोप है. हालांकि सभी अभियान बैठकों में शामिल रहे उप महानिरीक्षक कल्लौरी का कोई उल्लेख नहीं किया गया. {mospagebreak}
जांच के अनुसार छत्तीसगढ़ पुलिस के एक हेड कांस्टेबल सहित सीआरपीएफ की 81 सदस्यीय टीम अपने मिशन के लिए चार अप्रैल को शाम सात बजे रवाना नहीं हुई जैसे कि लॉगबुक में दर्ज है. सुरक्षाकर्मियों ने वास्तव में अगले दिन सुबह पांच बजे जंगल में घुसना शुरू किया जबकि दिशा निर्देशों में सुबह के समय जंगल में जाने के लिए मना किया गया था. सीआरपीएफ कंपनी ने पूरा दिन उसी जगह बिताया जहां जवान छह अप्रैल को तड़के नक्सलियों की गोली का निशाना बन गए.
सीआरपीएफ के कुछ वरिष्ठ कर्मियों ने पास के गांव मुकरम के प्रधान सहित कुछ लोगों को बुलाकर बड़े बर्तन लाने को भी कहा था ताकि पूरी टीम के लिए खाना बनाया जा सके. अभियान संबंधी नियमों में सीआरपीएफ और पुलिसकर्मियों को ग्रामीणों या स्थानीय लोगों की मदद लेने के लिए सख्ती से मना किया गया है और अधिक से अधिक गोपनीयता बरतने को कहा गया है.
सूत्रों ने बताया कि अभियान की गोपनीयता उस समय भंग हो गई जब सीआरपीएफ की कंपनी ग्रामीणों को चारपाई और अन्य सामग्री लाने का आदेश देकर एक ही जगह पूरा दिन बिताने के बाद नजदीक के ‘आश्रम’ एक हॉस्टल में चली गई.
सीआरपीएफ की बटालियन को घटनास्थल के नजदीक शाम तक एक छोटी पहाड़ी पर अपनी पोजीशन लेनी थी जो क्षेत्र में प्रभुत्व के लिए सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण थी. केंद्र ने राममोहन से घटना की जांच कराए जाने का आदेश दिया था जिन्होंने 26 अप्रैल को अपनी रिपोर्ट सौंप दी जिसमें उन्होंने छत्तीसगढ़ पुलिस और सीआरपीएफ के बीच समन्वय की कमी का जिक्र किया.