केंद्र सरकार हिंसा छोड़ने की शर्त पर भले ही माओवादियों से बातचीत को लेकर उदार रवैया रखती हो लेकिन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का दावा है कि यह नक्सलियों की एक चाल है और इस अवधि में वे अपने संगठन को मजबूत बनाने की कोशिशें जारी रखेंगे.
नक्सल प्रभावित राज्यों झारखंड, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ के पुलिस अधिकारियों का मानना है कि नक्सलियों की संघर्ष विराम की पेशकश में ईमानदारी नहीं है. खुफिया ब्यूरो के एक सूत्र ने बताया, ‘माओवादियों के शीर्ष नेताओं पर पीपुल्स वार ग्रुप (पीडब्ल्यूजी) का नियंत्रण है जो दरअसल लिट्टे द्वारा प्रशिक्षित हैं. ये लोग संघषर्विराम की पेशकश कर इस अवधि का उपयोग अपने संगठन को मजबूत करने, खुद को बेहतर ढंग से हथियारबंद करने, अपना कैडर आधार बढ़ाने और अपने लिए संसाधनों का जुगाड़ करने के लिए करेंगे.’
झारखंड के पूर्व पुलिस महानिदेशक वी डी राम ने कहा, ‘संघर्ष विराम वार्ता स्वागत योग्य कदम कभी नहीं होगा. नक्सलियों ने फरवरी, मार्च और अप्रैल के महीने में मुठभेड़ से बचने की रणनीति बनाई है क्योंकि इन दिनों में पेड़ों की पत्तियां झड़ जाती हैं और तब उन्हें पहाड़ी इलाकों में छिपे रहने में मुश्किल होती है.’ पूर्व डीजीपी राम ने कहा, ‘माओवादी वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं क्योंकि पुलिस ने पश्चिम बंगाल के झारग्राम, बिहार और झारखंड के अन्य हिस्सों के व्यवसायियों से उनको मिलने वाली आर्थिक मदद रोक दी है.’ {mospagebreak}
छत्तीसगढ़ के एक आईपीएस अधिकारी का कहना है, ‘नक्सल सरकार को उखाड़ फेंकने की नीति में विश्वास करते हैं. वे इसलिए बातचीत करना चाहते हैं क्योंकि सुरक्षा बलों द्वारा उनके खिलाफ की जा रही कार्रवाई के कारण पिछले सात आठ महीनों से वे बहुत दबाव में हैं.’ उन्होंने यह भी बताया कि विशेष कार्य बल और खुफिया एजेंसियां लोगों के बीच खुफिया नेटवर्क स्थापित करने में सफल हुआ है जिसका प्रभावकारी इस्तेमाल तेलेगु दीपक जैसे शीर्ष माओवादी नेताओं की गिरफ्तारी में किया गया.
झारखंड के लोहरदग्गा के पुलिस अधीक्षक सुबोध प्रसाद ने कहा, ‘माओवादियों द्वारा हाल ही में शहर में चिपकाये गये पोस्टरों में पुलिस और नक्सलियों के बीच मेलमिलाप बताया गया है. उन पर लिखा है ‘पुलिस-नक्सल भाई भाई.’ राज्य के हजारीबाग और सिमडेगा जैसे अन्य जिलों से मिली प्रक्रियाएं भी इससे अलग नहीं है. हजारीबाग के एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने कहा, ‘माओवादी वैसा ही करना चाहते हैं जैसा उन्होंने आंध्र प्रदेश में किया था.
संघर्ष विराम उन्हें धन एकत्र करने और संघर्ष के लिये अपने कार्यकर्ताओं की भर्ती करने का मौका देगा.’ सिमडेगा के पुलिस अधीक्षक दुर्गा ओंराव ने कहा कि नक्सली अपने सिद्धांतों की अच्छी तरह व्याख्या कर लेते हैं लेकिन उन्हें कार्यरूप देने में विफल रहते हैं. वे बेरोजगार युवकों को गुमराह करते हैं और उन्हें अपने समूह में शामिल होने और सरकार के खिलाफ काम करने के लिये उकसाते हैं. बिहार और छत्तीसगढ़ के पुलिस प्रमुखों ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देने में अनिच्छा जताई और कहा कि यह एक राजनीतिक मुद्दा है. {mospagebreak}
पश्चिम बंगाल के पुलिस प्रमुख ने कहा कि संघर्ष विराम प्रस्ताव अपने आप में विचित्र है. राज्य के डीजीपी भुपिंदर सिंह ने कहा, ‘वार्ता के लिए पूर्व शर्त होनी चाहिए. 72 दिनों के बाद क्या होगा ? क्या माओवादी अपने हथियार त्याग देंगे?’ पुलिस अधिकारियों का कहना है कि नक्सलियों को उखाड़ फेंकने के लिए यह सबसे बेहतर समय है.
पश्चिम बंगाल के एक पुलिस अधिकारी ने दावा किया कि नक्सलियों के खिलाफ अभियान से उनकी एक राज्य में वारदात कर दूसरे राज्य में भाग जाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगा है. इस मामले में एक ओर जहां शीर्ष पुलिस अधिकारियों ने राजीनीतिक रुख अख्तियार किया वहीं कनिष्ठ सुरक्षाकर्मियों ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर अपनी बात कहने की इच्छा व्यक्त की. पश्चिम बंगाल के एक पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘माओवादियों को आदिवासियों से जो समर्थन हासिल था वह भी अब घट रहा है. अपने इस समर्थकों के बीच नक्सली सुरक्षित पनाह पा लेते थे लेकिन अब संयुक्त बलों की कार्रवाई और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बीच संघर्ष की वजह से भी खिसक रहा है.
उन्होंने यह भी कहा कि अनुसूचित जाति के लोगों का आरोप है कि उनकी समस्याओं का सही तरीके से समाधान नहीं किया जा रहा है क्योंकि उनकी संस्कृति, रीति रिवाज और परम्परा माओवादियों की प्राथमिकता में नहीं है. झारखंड पुलिस इस बात से परेशान है कि अगर बातचीत हुई तो माओवादियों को विदेशों में अपने संपर्क फिर से बहाल करने का मौका मिल जायेगा. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दावा किया, ‘यहां के कई नक्सलियों ने नेपाल में प्रशिक्षण हासिल किया है और वहां बैठा सिंडिकेट इन्हें नियंत्रित करता है. हाल के दिनों में हम इस गठजोड़ को तोड़ने में सफल रहे हैं.’