केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा है कि नक्सलियों को 'आतंकवादी' और 'उग्रवादी' कहने में उन्हें कोई गुरेज नहीं है, क्योंकि उनमें इंसानियत नाम की कोई चीज नहीं रह गयी है.
रांची से करीब 200 किमी दूर सारंडा के जंगलों में स्थित नक्सलियों के गढ़ दीघा गांव में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद रमेश ने कहा कि वह लातेहार जैसी घटनाओं को अंजाम देने वाले नक्सलियों को आतंकवादी मानते हैं क्योंकि ऐसे नक्सलियों और आतंकवादियों में कोई फर्क नहीं है.
उन्होंने कहा कि लातेहार में छह जनवरी को नक्सली हमले में 10 सुरक्षाकर्मियों समेत 14 लोगों के मारे जाने की घटना में नक्सलियों की बर्बरता देख कर लगता है कि उनमें इंसानियत नहीं बची है. उन्होंने कहा, ‘लातेहार में जिस तरह नक्सलियों ने घायल और मृत जवानों के शरीर में जिंदा बम और आइईडी लगाए उससे पता चलता है कि वह कितने क्रूर हैं.’
इससे पूर्व रमेश ने शनिवार को अपने निजी जीवन की तुलना में देश और आदिवासियों को तरजीह दी और गणतंत्र दिवस के अवसर पर ही पड़ने वाली अपनी शादी की 33वीं सालगिरह सारंडा के जंगलों में मनाई. 18 साल बाद सारंडा के जंगलों में तिरंगा फहराया गया. रमेश ने कहा कि उनके लिए देश और आदिवासी समाज उनके निजी जीवन से ऊपर है और इसी कारण उन्होंने अपनी शादी की 33वीं सालगिरह आदिवासियों के बीच ही मनाने का फैसला किया.
रमेश ने कहा कि जरूरत पड़ी तो वह यहां तक भी कहेंगे कि उनका अंतिम संस्कार भी सारंडा के जंगलों में ही किया जाये.
रमेश ने कहा कि नक्सली यदि बातचीत के लिए आगे आते हैं तो केन्द्र सरकार उनका स्वागत करेगी और इसके लिए पूर्व में तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम द्वारा तय की गयी रूपरेखा के आधार पर बात हो सकती है. उन्होंने माना कि सारंडा नक्सलियों से पूरी तरह मुक्त नहीं है लेकिन उन्होंने विश्वास जताया कि आने वाले समय में सारंडा की स्थिति में जबर्दस्त बदलाव होगा.
रमेश ने कहा, ‘कल जिस तरह सारंडा में लोगों ने मेरे सामने बिजली और विद्यालयों में अध्यापकों की कमी दूर करने की मांग की और नारेबाजी तक की उससे मेरा हौसला बढ़ गया है.’
उन्होंने कहा, ‘सारंडा में हमने काफी हद तक जीत हासिल कर ली है और आदिवासियों को खुली हवा में सांस लेने का अवसर प्रदान किया है जिसके परिणाम शीघ्र देखने को मिलेंगे.’