समलैंगिकता को अपराध बताने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई है. यह याचिका एचआईवी एड्स की रोकथाम के लिए काम करने वाले एनजीओ 'द नाज फाउंडेशन' ने लगाई है.
11 दिसंबर को दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के चार साल पुराने फैसले को पलटते हुए धारा 377 को जायज बताया था और सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध माना था, जिसके खिलाफ कई जगहों पर प्रदर्शन भी हुए. दिल्ली हाई कोर्ट ने सहमति से बंद कमरे में बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा था.
द नाज फाउंडेशन ट्रस्ट धारा 377 को संवैधानिक चुनौती देने वाला असल याचिकाकर्ता है. इसकी याचिका में लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कई भयानक और स्पष्ट कानूनी गलतियां हैं, जिन्हें पुनर्विचार कर ठीक किए जाने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट हर नागरिक के मौलिक अधिकार और आजादी को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है, खास तौर से हाशिए पर रह गए लोगों के. लेकिन पिछला फैसला इस भावना के खिलाफ है.
याचिका में इस फैसले पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की गई है. इसमें लिखा है, 'यह फैसला यौन रुझान और लैंगिक पहचान के विदेशी न्याय और मानवाधिकार के अंतरराष्ट्रीय नियमों के खिलाफ है. इससे सहमति से संबंध बनाने वाले लेस्बियन, गे, बायसेक्शुअल और ट्रांसजेंडर लोगों के साथ बड़ा अन्याय हुआ है. उन पर अचानक मुकदमा चलने का खतरा मंडराने लगा है. पिछले चार सालों में (दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के बाद) में ढेर सारे समलैंगिक लोगों ने अपनी सेक्शुअल आइडेंडिटी जाहिर कर दी है.'
इससे पहले केंद्र सरकार भी समलैंगिकता को अपराध ठहराने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल कर चुकी है. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि वह धारा 377 पर दिए अपने हालिया फैसले पर फिर से विचार करे.