सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर 1999 में कांग्रेस से बगावत कर एनसीपी प्रमुख शरद पवार के साथ मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का गठन करने वाले तारिक अनवर की घर वापसी हो गई है. उन्होंने शनिवार सुबह कांग्रेस का दामन थाम लिया है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें पार्टी में शामिल करवाया. तारिक अनवर पांच बार बिहार के कटिहार से सांसद रह चुके हैं.
एनसीपी की नींव रखने वाले तारिक अनवर ने पार्टी को अलविदा कह दिया था. अनवर ने एनसीपी छोड़ने के साथ-साथ लोकसभा से भी इस्तीफा दे दिया था. अनवर ने 1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस से बगावत कर शरद पवार के साथ एनसीपी बनाई थी.
Congress President @RahulGandhi welcomes Shri @itariqanwar into the Congress family. pic.twitter.com/N54VkAQpJJ
— Congress (@INCIndia) October 27, 2018
एनसीपी छोड़ने का राफेल बना बहाना
कांग्रेस के पास बिहार में कोई बड़ा चेहरा नहीं है. ऐसे में माना जा रहा है कि वो बिहार से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं.
तारिक अनवर ने राफेल मुद्दे पर शरद पवार के बयान को आधार बनाते हुए पार्टी से इस्तीफा दिया था. तारिक अनवर ने कहा था कि शरद पवार का राफेल पर दिया गया बयान मुझे ठीक नहीं लगा. एनसीपी की तरफ से जो सफाई दी गई वो सही नहीं थी. पवार ने जब बयान दिया था तो खुद उनको सफाई देनी चाहिए थी. हालांकि उनकी तरफ से खुद कोई सफाई नहीं आई तो मैंने इस्तीफा दे दिया.
घर वापसी के पीछे छिपी है सियासत
एनसीपी छोड़ने के बाद से लगातार यह सवाल उठ रहे थे कि तारिक अनवर किस पार्टी में जाएंगे. हालांकि यही कयास लगाए जा रहे थे कि वो फिर से कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं. बिहार में कांग्रेस अपने आधार को मजबूत करने की कोशिश में जुटी है, लेकिन पार्टी के पास राज्य में कोई बड़ा चेहरा नहीं है. ऐसे में तारिक अनवर को अपना राजनीतिक भविष्य कांग्रेस में सेफ नजर आ रहा है. वो 'घर वापसी' कर बिहार में कांग्रेस का बड़ा चेहरा बनना चाहते हैं.
एनसीपी छोड़ने का निर्णय उन्होंने बहुत पहले से ही कर लिया था. एनसीपी में उनके और पार्टी के नेता प्रफुल्ल पटेल के बीच रिश्ते बेहतर नहीं रहे हैं. 2014 के चुनाव के बाद से दोनों नेताओं के बीच कई बार पार्टी की बैठकों में अलग-अलग विचार रहते थे.
ऐसे आए राहुल गांधी के करीब
कांग्रेस में राहुल गांधी के कद बढ़ने के बाद से ही तारिक अनवर 'घर वापसी' करने के जुगत में थे. तारिक अनवर कांग्रेस में वापसी की राह 2016 से ही तलाश रहे थे. नोटबंदी के बाद राहुल गांधी जब पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस करने उतरे थे, तब तारिक अनवर देर से पहुंचे थे. ऐसे में राहुल ने अपने बगल में बैठे ज्योतिरादित्य सिंधिया से तारिक अनवर के लिए सीट छोड़ने को कहा था. इस घटना के बाद से राहुल से उनकी नजदीकियां बढ़ीं.
पिछले दो सालों से तारिक अनवर के उर्दू अखबार में छपने वाले लेखों में वह कांग्रेस को लेकर काफी नरम थे. इतना ही नहीं वो राहुल गांधी की कार्यशैली की तारीफ भी करते रहे हैं. तारिक अनवर ने आजतक से बातचीत करते हुए 2019 में विपक्षी की ओर से राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का चेहरा बताया था. जबकि शरद पवार ने कहा था कि अभी विपक्ष का चेहरा तय नहीं है.
तारिक अनवर का सियासी सफर
सीताराम केसरी के सानिध्य में तारिक अनवर ने राजनीतिक सफर शुरू किया था. 1977 में कटिहार लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन वो जीत नहीं पाए. तीन साल के बाद 1980 में जीतकर संसद पहुंचे. इसके बाद 1985 में दोबारा जीत हासिल की.
तारिक अनवर राजनीति में तेजी से अपनी जगह बनाते गए. संसद बनते ही यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. 1988 में वे कांग्रेस सेवादल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. 1989 में वे बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने और 1993 में कांग्रेस के अल्पसंख्यक सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने.
तारिक अनवर 1996 में वे तीसरी बार संसद चुने गए और कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष पीवी नरसिम्हा राव के राजनीतिक सचिव बने. इसके बाद कांग्रेस के अध्यक्ष सीताराम केसरी बने तो तारिक अनवर को 1997 में कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य चुना गया. तारिक अनवर 1998 में वे एक बार फिर लोकसभा चुनाव जीते.
सोनिया थीं कांग्रेस से बगावत की वजह
1999 में कांग्रेस की कमान जब सोनिया गांधी ने संभाली तो शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा ने पार्टी से बगवात कर दी थी. इन तीनों नेताओं ने सोनिया गांधी के विदेश मूल को मुद्दा बनाया था. इसके बाद तीनों नेताओं ने मिलकर एनसीपी का गठन किया था. हालांकि, बाद में यूपीए की जब केंद्र में सरकार बनी तो एनसीपी कांग्रेस के साथ आ गई थी.
2004 के लोकसभा चुनाव में वे एक बार फिर से चुनाव जीतकर मनमोहन सिंह सरकार में कृषि और फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज के राज्यमंत्री बने. इसके बाद 2009 के चुनाव मे वो हार गए, लेकिन बाद में राज्यसभा सदस्य बने. इसके बाद 2014 के लोकसभा में फिर जीतकर संसद पहुंचे.