एक महत्वपूर्ण बिल पास होने के दौरान राज्यसभा में सभी सांसदों का मौजूद नहीं रहना सोमवार को केंद्र सरकार को महंगा पड़ गया. इस दौरान न सिर्फ सरकार की फजीहत हुई बल्कि लाख कोशिश के बावजूद सरकार विपक्ष का एक संशोधन पास होने से नहीं रोक पाई. माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात से खासे नाराज हैं. बिल पर वोटिंग के दौरान एनडीए के कई सांसद और मंत्री सदन में मौजूद नहीं थे.
राज्यसभा में यह स्थिति तब बनी जब पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाए जाने को लेकर केंद्रीय सामाजिक कल्याण मंत्री थावरचंद गहलोत 123वां संविधान संशोधन बिल पास कराना चाहते थे. बिल पर वोटिंग के दौरान करीब 4 घंटे तक बहस हुई. लेकिन वोटिंग के दौरान एनडीए के कई सांसदों के मौजूद नहीं होने से सरकार हार गई और विपक्ष का एक संशोधन पास हो गया.
दरअसल कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह , बी के हरिप्रसाद और हुसैन दलवाई ने इस बिल पर वोटिंग के दौरान यह संशोधन पेश किया था कि पिछड़ा वर्ग आयोग में सदस्यों की संख्या 3 से बढ़ाकर 5 की जाए. साथ ही उसमें एक महिला सदस्य और एक अल्पसंख्यक भी शामिल हो. इसके अलावा संशोधन में यह भी मांग की गई थी कि आयोग के सभी सदस्य पिछड़े वर्ग के ही हों.
सरकार को विपक्ष का यह संशोधन मंजूर नहीं था. सरकार इसे खारिज करना चाहती थी. सदन में जब वोटिंग हुई तब सरकार के पांव तले जमीन खिसक गई, क्योंकि विपक्ष का यह संशोधन पास हो गया. विपक्ष के संशोधन के पक्ष में 75 वोट पड़े जबकि इसके खिलाफ सिर्फ 54 वोट मिले.
इसके बाद सरकार की तरफ से संशोधन को बिल में नहीं शामिल किए जाने को लेकर काफी कोशिश की गई. ऐसा बहुत कम होता है कि बिना किसी हंगामे के राज्यसभा की कार्यवाही स्थगित की जाए. लेकिन सोमवार को राज्यसभा का सीधा प्रसारण रोक कर सरकार ने विपक्ष के सदस्यों से अनुरोध किया कि वह इस संशोधन को बिल से निकाल दें. लेकिन उपसभापति ने कहा कि जब एक बार विपक्ष का संशोधन पास हो चुका है तो उसे बिल से निकालना संभव नहीं है.
ये सांसद रहे गैरहाजिर
राज्यसभा में व्हिप जारी होने के बावजूद कई सांसद गैरहाजिर रहे. सोमवार को बीजेपी सांसद धर्मेंद्र प्रधान, विजय गोयल, पीयूष गोयल, एमजे एकबर, निर्मला सीतारमण और रविशंकर प्रसाद समेत कई मंत्री और गैरहाजिर रहे. सूत्रों के मुताबिक पीएम मोदी सांसदों की गैरमौजूदगी से नाराज बताए जा रहे हैं.
लोकसभा से पहले ही पास हो चुका है बिल
दिलचस्प बात ये है कि यह बिल लोकसभा से पहले ही पास हो चुका है. मगर सरकार को विपक्ष का संशोधन मंजूर नहीं है और राज्यसभा में यह संशोधन पास हो चुका है. इसीलिए तकनीकी कारणों से इस बिल को फिर से लोकसभा भेजना पड़ेगा और लोकसभा में पास होने के बाद इसे फिर से राज्यसभा में मूल रूप में पास कराना होगा.