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सौदेबाजी के मूड में एनडीए के घटक दल, एक-एक कर दिखा रहे कड़े तेवर?

पासवान और नीतीश के इस आपसी तालमेल का साफ संकेत है कि एनडीए में बीजेपी को चुनौती मिलने का अगाज हो चुका है और उसे अब समझ लेना चाहिए कि गठबंधन के घटक इस चुनावी साल में बीते चार साल की तरह मूक दर्शक नहीं बन कर रहेंगे.

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आम चुनावों से पहले एनडीए घटक दलों के तेवर
आम चुनावों से पहले एनडीए घटक दलों के तेवर

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आम चुनाव 2019 दस्तक दे रहा है और बीते चार साल से शांत बैठे एनडीए के घटक दल मुखर होने लगे हैं. अभी मंगलवार को ही एनडीए के प्रमुख घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी के रामविलास पासवान ने देश की सामाजिक स्थिति पर बयान देते हुए कहा कि वह न तो मौजूदा समय में बीजेपी के बंधुआ मजदूर हैं और न ही वह पहले कभी लालू प्रसाद यादव की आरजेडी के साथ गठबंधन के वक्त बंधुआ मजदूर थे.

एनडीए के घटक दलों में सिर्फ एलजेपी का ऐसा सोचना नहीं है. एलजेपी प्रमुख पासवान ने नीतीश कुमार की बिहार को विशेष दर्जा दिए जाने की मांग का ठोस समर्थन किया है. पासवान ने कहा कि नीतीश कुमार की मांग पूरी तरह से जायज है और उनकी मांग पर किसी तरह से गठबंधन को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए. लिहाजा, पासवान और नीतीश के इस आपसी तालमेल का साफ संकेत है कि एनडीए में बीजेपी को चुनौती मिलने का अगाज हो चुका है और उसे अब समझ लेना चाहिए कि गठबंधन के घटक इस चुनावी साल में बीते चार साल की तरह मूक दर्शक नहीं बन कर रहेंगे.

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गौरतलब है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य के लिए विशेष दर्जे की मांग ऐसे वक्त में दोहराई है, जब केन्द्र में मोदी सरकार ने विशेष दर्जे की पूरी प्रक्रिया को ठंडे बस्ते में डाल दिया है. मोदी सरकार के इस रुख के चलते इससे पहले उसे आंध्रप्रदेश में एनडीए के एक प्रमुख घटक तेलगू देशम पार्टी और दक्षिण में उसके चमत्कारी नेतृत्व चंद्रबाबू नायडू से हाथ धोना पड़ा है.

नीतीश कुमार की यह मांग बीजेपी के शीर्ष नेताओं को भी नागवार गुजर रही है. बीजेपी नेताओं की दलील है कि 15 वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद किसी राज्य द्वारा विशेष राज्य के दर्जे की मांग करना पूरी तरह बेबुनियाद है. गौरतलब है कि 15वें वित्त आयोग ने हाल ही में विशेष राज्य के दर्जे पर सवाल उठाते हुए सिफारिश की है कि मौजूदा केन्द्र-राज्य आर्थिक संबंधों को देखते हुए अब विशेष दर्जे का कोई महत्व नहीं बचा है.

इसे पढ़ें: मोदी नहीं, योगी के सिर फूटेगा कैराना-नूरपुर में हार का ठीकरा, बढ़ेंगी मुश्किलें

लिहाजा, बीजेपी नेतृत्व को नीतीश की इस मांग के पीछे रामविलास पासवान और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नेता उपेन्द्र कुशवाहा के बीच बढ़ती दोस्ती नागवार गुजर रही है. गौरतलब है कि हाल ही में कुशवाहा और नीतीश कुमार की मुलाकात हुई थी, जिसके बाद नीतीश की विशेष दर्जे की मांग पर रामविसाल पासवान का यह नया सुर सुनाई दिया है.

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एनडीए के घटक दलों में जारी इस खींचतान के परिपेक्ष्य में 2014 लोकसभा चुनावों के नतीजों को देखें तो- बिहार की 40 सीटों में 31 सीट एनडीए के खाते में गई और इसमें बीजेपी के हाथ 22 सीटें लगी. वहीं एनडीए के घटक दलों में बीजेपी को छोड़कर बाकी दलों को 9 सीटों से संतोष करना पड़ा. यही वजह है कि अब 2019 चुनावों के ठीक पहले एक बार फिर जेडीयू, एलजेपी और आरएलएसपी को संगठित होने की जरूरत महसूस हो रही है, जिससे एनडीए में बने रहने की स्थिति में वह एकजुट होने से 2019 में बीजेपी से बेहतर प्रदर्शन कर सकें.

हालांकि जहां यह कवायद घटक दलों का एनडीए में अपनी सौदेबाजी को मजबूत करने के अलावा एक और विकल्प पर भी संकेत करती है. गौरतलब है कि एनडीए में बीजेपी के एक्सपेरिमेंट बॉय रहे जीतन राम मांझी ने फरवरी में गठबंधन तो छोड़ दिया और बेहतर राजनीतिक कद के लिए अब आरजेडी के साथ जाने के विकल्प पर चले गए हैं.

वहीं ऐसी ही कुछ चुनौती बीजेपी को महाराष्ट्र में शिवसेना से मिल रही है. शिवसेना ने साफ कर दिया है कि 2019 के चुनावों में वह बीजेपी के साथ नहीं खड़ी होगी. और इसका ट्रेलर उसने पिछले विधानसभा चुनाव समेत इस मध्यावधि चुनाव में दिखा भी दिया है.

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लिहाजा, एनडीए के इन सभी घटक दलों के साथ-साथ पंजाब में अकाली दल और जम्मू-कश्मीर में पीडीपी भी इस चुनावी साल में बीजेपी से एक कड़ी सौदेबाजी करने के लिए तैयार है. ऐसे में देखना यह है कि क्या अकाली दल से हाल में मिली नसीहत कि बीजेपी अपने गठबंधन साथियों के साथ अच्छा बर्ताव करे पर पार्टी अमल करती है?

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