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समय आने पर मोदी के विषय में नीतीश से करेंगे चर्चाः राजनाथ

छात्र जीवन में ही आरएसएस से जुड़े राजनाथ सिंह को एक बार फिर संघ-बीजेपी के टकराव का फायदा मिला. इंडिया टुडे के प्रमुख संवाददाता संतोष कुमार से उन्होंने पार्टी की चुनौतियों और भविष्य की रणनीति पर विस्तृत बातचीत की.

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राजनाथ सिंह
राजनाथ सिंह

छात्र जीवन में ही आरएसएस से जुड़े राजनाथ सिंह को एक बार फिर संघ-बीजेपी के टकराव का फायदा मिला. तीसरी बार बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान संभाल चुके सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और केंद्र में भूतल परिवहन, कृषि जैसे अहम मंत्रालयों की कमान संभाल चुके हैं और इस बार उनके ऊपर 2009 के दौरान अध्यक्ष रहते हुए लोकसभा चुनाव में रह गई कमियों को दूर कर 2014 में पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने की जिम्‍मेदारी है. इंडिया टुडे के प्रमुख संवाददाता संतोष कुमार से उन्होंने पार्टी की चुनौतियों और भविष्य की रणनीति पर विस्तृत बातचीत की. पेश है उसके अंश:

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बतौर पार्टी अध्यक्ष दूसरी पारी में आपकी प्राथमिकताएं क्या होंगी?
सबसे पहले संगठनात्मक ढांचे को सक्रिय और प्रभावी बनाना, साथ ही कार्यकर्ताओं को प्रेरित करना कि आम जनता के मुद्दों को लेकर जहां सरकार है उसका समाधान कराए और जहां नहीं है वहां संघर्ष करे. साथ ही साथ कार्यकर्ताओं की वैचारिक प्रतिबद्धताएं भी बढ़े.

आपने पिछली बार अध्यक्ष पद से हटने के बाद अनुभव साझा करते हुए कहा था कि कार्यकर्ताओं को विचारधारा (आइडियोलॉजी) के प्रति उसी तरह प्रतिबद्ध होना चाहिए, जैसा कम्युनिस्टों में है. आपको थोड़ी कमी पार्टी में दिखी. अब आप उस कमी को दूर करने के लिए क्या कदम उठाएंगे, कोई ठोस योजना आपके मन में?
बिल्कुल करेंगे, प्रशिक्षण शिविर होंगे. उसके माध्यम से हम उनका कमिटमेंट बढ़ाने की कोशिश करेंगे और 2013 के विधानसभा और 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जीत मिले, ये हमारी कोशिश होगी. लेकिन सबसे बड़ी बात मैं चाहता हूं कि आज राजनीति, राजनेता और राजनैतिक व्यवस्थाओं के प्रति जन सामान्य में जो विश्वास की कमी है, इस कमी को दूर करने के लिए बीजेपी का हर कार्यकर्ता प्रयत्न करे. यानी उसके कृति-कथन (वर्डस और डीड) में अंतर नहीं होना चाहिए.

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दोनों टर्म में आप क्या फर्क महसूस करते हैं?
पहला टर्म चूंकि नया था सो सारे देश को समझने में ही साल-दो साल का समय निकल गया. उसके बाद लोकसभा का चुनाव आ गया. लेकिन इस तीन साल जो बीच में मैं अध्यक्ष नहीं रहा, उस दौरान देश में आने जाने का एक अनुभव प्राप्त हुआ है. मैं समझता हूं कि उसका लाभ निश्चित रूप से इस बार काम करने में मुझे मिलेगा. एक बात और कहना चाहूंगा कि मैं अकेले पार्टी चलाने की कोशिश नहीं करूंगा, सबको विश्वास में लेकर ही पार्टी चलाउंगा.

आपने पिछले टर्म में अध्यक्ष के कार्यकाल को पांच साल या तीन-तीन साल के दो टर्म करने की बात की थी, लेकिन पार्टी और संघ तैयार नहीं हुआ. इस बार गडकरी के लिए हुए संविधान संशोधन ने आपकी वह इच्छा पूरी कर दी.
ऐसा नहीं था, कुछ कन्फ्यूजन रहा है. उस वक्त भी संघ-पार्टी तैयार था. वो लोग उसी समय टर्म बढ़ाने के लिए तैयार थे, लेकिन मैंने ही अपनी ओर से कहा था कि पार्टी अध्यक्ष रहते अपने अंतिम वर्षों में अपना कार्यकाल बढ़ाने के लिए संविधान में संशोधन नहीं करूंगा, नहीं तो ये मैसेज जाएगा कि अपना कार्यकाल बढ़ाने के लिए राजनाथ सिंह ने संविधान में संशोधन कर दिया.

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लेकिन गडकरी के लिए ऐसा आखिरी साल में ऐसा तो हुआ?
वो प्रस्ताव मैंने पेश किया था. जब मेरा टर्म बढ़ाने की बात हो रही थी, तो मैंने कहा था कि अगला जो भी अध्यक्ष होगा उसके टर्म को बढ़ाने का प्रस्ताव मैं ही पेश क‍रूंगा. मुंबई और सूरजकुंड में अनुमोदन का प्रस्ताव मैंने ही पेश किया.

क्या मुख्यमंत्री संसदीय बोर्ड में हो सकते हैं, क्योंकि आपने पिछले टर्म में यह दलील देते हुए नरेंद्र मोदी को बोर्ड से हटाया था कि सीएम के बारे में फैसला संसदीय बोर्ड करता है, इसलिए इसमें सीएम नहीं होने चाहिए?
देखिए, दलील नहीं दी थी. उस समय मुझे कुछ लोगों ने बताया था कि सीएम संसदीय बोर्ड में नहीं होने चाहिए. लेकिन मेरा मानना है कि हो सकते हैं. अब तक मैंने जो समझा है मुझे लगता है हो सकता है, किया जा सकता है.

तो क्या आपकी टीम में मोदी या कोई सीएम संसदीय बोर्ड में हो सकते हैं?
इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता है.

गडकरी ने बीते दिसंबर एजेंडा आजतक कार्यक्रम में कहा था कि मैं पार्टी अध्यक्ष के नाते पूरी ऑथरिटी के साथ कहता हूं कि हम चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार प्रोजेक्ट नहीं करेंगे और सही वक्त आने पर ही प्रधानमंत्री के नाम का एलान करेंगे.

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क्या पार्टी के पूर्व अध्यक्ष के फैसले की समीक्षा होगी या आप भी उनके रुख से सहमत है?
देखिए, मेरे ऊपर नई जिम्मेदारी आई है. संसदीय बोर्ड की बैठक मैं बुलाऊंगा और उसमें इस बात का फैसला करेंगे.

क्या आप लोकसभा चुनाव से पहले चेहरा प्रोजेक्ट करने के पक्ष में हैं?
देखिए, मैं अध्यक्ष हूं और मैं अपनी कोई निजी राय नहीं रख सकता वर्ना इसका मैसेज गलत जाएगा. इस बारे में जो भी फैसला होगा, संसदीय बोर्ड ही करेगा.

नरेंद्र मोदी को लेकर पार्टी में काफी जोश दिख रहा है, यशवंत सिन्हा और यहां तक कि संघ परिवार से अशोक सिंघल सरीखे कई नेताओं ने खुलकर उन्हें प्रोजेक्ट करने की पैरवी की है, क्या पार्टी उनके नाम पर विचार करेगी?
देश में नरेंद्र मोदी को लेकर जोश है, इसमें कोई संदेह नहीं. नरेंद्र मोदी हमारे सबसे लोकप्रिय नेता हैं और मैं इससे बहुत खुश हूं कि मोदी जैसे नेता हमारे यहां हैं, जिनको लेकर उत्साह है.

पार्टी के नेता ही उन्हें प्रोजेक्ट करने की खुलेआम पैरवी कर रहे हैं, क्या ये पार्टी नीति के खिलाफ नहीं है?
देखते रहिए, मैं सबसे बात करुंगा और जल्द ही सब ठीक हो जाएगा.

क्या आपको लगता है कि पार्टी में मोदी के अलावा भी अभी कोई ऐसा चेहरा है जो चुनाव जितवा सकता है?
हमारी पार्टी में नेताओं की कमी नहीं है. मैंने कभी इस पद के लिए नेताओं के नाम नहीं लिए हैं, लेकिन हमारे यहां चेहरे की कमी नहीं है, कई लोग हैं जो क्षमता रखते हैं.

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आपकी और मोदी जी की मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं, क्या आपको लगता है कि मोदी जी 2014 में पार्टी का नेतृत्व करने के लिए पूरी तरह सक्षम और तैयार हैं?
मोदी जी मुझसे मिले थे. डेढ़-दो घंटे हमारे बीच अच्छी चर्चा हुई. लेकिन उन्होंने अपनी दावेदारी पेश नहीं की. हम राजनीति में हमउम्र हैं, मेरे उनसे पुराने ताल्लुकात हैं और एक-दूसरे को अच्छी तरह समझते हैं. लेकिन मैं जोर देकर यह कहना चाहूंगा कि मोदी जी हमारे एक मर्यादित कार्यकर्ता हैं. लेकिन अभी मेरी ओर से किसी की क्षमता को कम-ज्यादा बताना उचित नहीं होगा.

अगर मोदी प्रोजेक्ट होते हैं, तो एनडीए का स्वरूप क्या होगा, क्योंकि नीतीश कुमार विरोध करते रहे हैं?
अगर की कोई बात नहीं है. कल्पना के आधार पर मैं कुछ नहीं कहूंगा. लेकिन जहां तक एनडीए का सवाल है तो वो कायम रहेगा. हमारा एक दिन का गठबंधन नहीं है, लंबे समय से हमारे संबंध हैं. हमारा गठबंधन नहीं टूटेगा और जब समय आएगा तो हम नीतीश जी समेत सभी से बात करेंगे. मुझे पूरा भरोसा है कि गठबंधन खत्म नहीं होगा और एनडीए में कोई मतभेद नहीं है.

हाल ही में सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी ने इंडिया टुडे से इंटरव्यू में कहा है कि बीजेपी को मेरिट के आधार पर एनडीए के बारे में फैसला करना चाहिए, क्योंकि एनडीए की आवश्यकता सभी को है और कोई एक व्यक्ति यानी नीतीश कुमार के अकेले के विरोध का कोई मतलब नहीं है. आप क्या कहेंगे?
मैंने अभी कहा कि एनडीए पूरी तरह से एकजुट है और गठबंधन बरकरार रहेगा. हम सबसे बात करेंगे.

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आप और पार्टी हमेशा कहती रही है कि बीजेपी में सामूहिक फैसले होते हैं, तो ऐसा क्यों हुआ कि वसुंधरा राजे को आपने राजस्थान में विपक्ष के नेता पद से हटाया, लेकिन दूसरे अध्यक्ष गडकरी ने उन्हें फिर से बना दिया. आखिर ऐसा क्यों? क्या आपके समय कोई चूक हुई थी, जिसे गडकरी ने सुधारा?
वसुंधरा को हटाने का फैसला मेरे अकेले का नहीं, बल्कि संसदीय बोर्ड का था. लेकिन गडकरी ने उन्हें दुबारा राज्य विधानसभा में नेता मुझसे पूछकर ही बनाया था.

तो क्या आपके समय गलत निर्णय हो गया था?
नहीं, ऐसा नहीं है. मेरे समय की अलग परिस्थितियां थीं, लेकिन चुनाव होना था, इसलिए उन्हें बनाया गया.

नहीं, उस वक्त तो कोई चुनाव नहीं था?
अब चुनाव आ रहे हैं और चुनाव के लिए वे हमारी नेता हैं, उनके नेतृत्व में चुनाव लडऩा है, इसलिए उन्हें दोबारा बनाया गया. वसुंधरा राजे हमारी लोकप्रिय नेता हैं.

पहले टर्म में आपका अरुण जेटली, वसुंधरा राजे, खंडूड़ी जैसे नेताओं के साथ टकराव जगजाहिर रहा, अब आप नई पारी में उन चुनौतियों से कैसे निपटेंगे?
ऐसी कोई बात नहीं थी. मतभेद हो सकते हैं, लेकिन अध्यक्ष के फैसले किसी के प्रतिकूल होते हैं तो उसे टकराव नहीं कह सकते.

आरएसएस ने पहले गडकरी को दोबारा अध्यक्ष बनाने की पहल की, लेकिन आखिरी वक्त में आपका नाम आया, क्या कहेंगे?
हम तो चाहते थे कि गडकरी ही अध्यक्ष बनें, लेकिन उन्होंने बेबुनियाद और निराधार आरोपों से आहत होकर स्वयं त्यागपत्र दिया. पहले भी मैंने ही उनके नाम का प्रस्ताव रखा था, लेकिन जब इस बार उन्होंने त्यागपत्र दे दिया तो मुझे जिम्मेदारी सौंपी गई.

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पहले आरएसएस ने आपका नाम खारिज किया और गडकरी पर ही भरोसा जताया था, क्या कहेंगे?
बीजेपी के अध्यक्ष के मामले में आरएसएस का कहीं दखल नहीं है, उसका कोई लेना-देना नहीं है. गडकरी ने निराधार आरोपों के मद्देनजर इस्तीफा दिया, फिर मुझे जिम्मेदारी दी गई.

कहा जा रहा है कि गडकरी कॉरपोरेट स्टाइल में चलाई, जिससे कार्यकर्ता खुद को कटा महसूस कर रहे थे, लेकिन आपके आने से काफी अच्छा महसूस कर रहे हैं और एक नया जोश दिख रहा है?
गडकरी ने अच्छे तरीके से पार्टी चलाई और आधार बढ़ाया है. उनकी कार्यशैली से कार्यकर्ताओं के कटने का सवाल गलत है क्योंकि किसी कार्यकर्ता ने उनकी शैली को लेकर कभी शिकायत नहीं की.

युवाओं को लेकर कांग्रेस ने काफी फोकस किया है, क्या आपकी टीम में नए युवा चेहरे दिखेंगे?
निश्चित तौर पर मेरी टीम में नए युवा चेहरे दिखेंगे. लेकिन कांग्रेस में जो भी चंद युवा नेता हैं, वो बड़े परिवारों के बेटे मात्र हैं, जबकि हमारे यहां जमीन से उभरे और काम करने वाले युवाओं की फौज है.

कहा जा रहा है कि आपकी टीम पर इस बार संघ की छाप ज्यादा दिखेगी, किस हद तक संघ का दखल रहेगा?
देखिए, संघ कभी बीजेपी के मामलों में दखल नहीं देता. लेकिन हां, हम सभी संघ के स्वयंसेवक हैं और इस नाते कभी जरूरत होती है तो उनसे सलाह-मशविरा करते हैं और मार्गदर्शन लेते हैं.

पार्टी में पहले चर्चा हुई थी कि करीब 150-200 उम्मीदवार 45 साल से कम के उतारे जाएंगे, अब क्या पार्टी उस रुख पर कायम है या सिर्फ जिताऊ उम्मीदवार ही पैमाना होगा?
निश्चित तौर पर पार्टी उस दिशा में काम कर रही और युवा उम्मीदवार चुनाव में उतारेंगे.

लोकसभा चुनाव में 2009 में क्या कमी रह गई थी और 2014 के लिए कितनी तैयार है बीजेपी?
2009 के चुनाव में हुई हार कुछ कमियां थी, लेकिन मैं उन कमियों के बारे में सार्वजनिक तौर पर चर्चा नहीं करना चाहूंगा. जो भी कमियां थी उसे पार्टी स्तर पर चर्चा कर दूर करेंगें और 2014 के चुनाव में जीत हासिल करेंगे.

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