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Opinion: अब एक और पहचान कार्ड

एक बार फिर पहचान कार्ड बनाने की तैयारी शुरू हो गई है. भारतीय नागरिकों की पहचान का काम अब फिर से शुरू होगा. घर-घर जाकर सरकारी कर्मचारी भारतीय नागरिकों की पहचान करेंगे.

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एक बार फिर पहचान कार्ड बनाने की तैयारी शुरू हो गई है. भारतीय नागरिकों की पहचान का काम अब फिर से शुरू होगा. घर-घर जाकर सरकारी कर्मचारी भारतीय नागरिकों की पहचान करेंगे. केन्द्र सरकार ने निर्देश दिया है कि तीन वर्षों में देश के सभी नागरिकों के नाम नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर में दर्ज कर दिए जाएं.

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सरकार का मकसद है कि तीन साल में सभी नागरिकों का वेरिफिकेशन हो जाए और सिर्फ भारतीय नागरिकों को ही यह कार्ड मिले. यह कार्ड उनके पहचान का सबसे बड़ा सबूत होगा और यहां तक कि वोट डालते वक्त भी इसे पास रखना होगा. सरकार इन्हें बनवाकर सुनिश्चित करना चाहती है कि सिर्फ भारतीय नागरिक ही इसमें रजिस्टर्ड हों. लोगों को अपनी पहचान साबित करने के लिए पहले से निर्धारित छह तरह के दस्तावेज में से कोई एक पेश करना होगा. जाहिर है इस अभियान पर सरकार बहुत शक्ति लगाएगी और बड़ी रकम खर्च करेगी .

लेकिन सवाल है कि उस आधार कार्ड का क्या होगा जिस बनाने के लिए सरकार ने अरबों रुपये खर्च किए ? आधार कार्ड बनाने के लिए सरकार ने एक पूरा विभाग बनाया, नंदन नीलेकनि को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया और अरबों रुपये खर्च किए. इस अभियान में हजारों कर्मचारी शामिल हुए और घर-घर जाकर सूचना इकट्ठी की गई. लेकिन बाद में यूपीए सरकार में ही उसकी प्रमाणिकता पर सवाल खड़े हो गए और एनपीआर प्रोजेक्ट पर काम करने की बात कही गई थी. अब एनडीए सरकार ने इसमें पूरा जोर लगाने का फैसला किया है.

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लेकिन सवाल फिर उठता है कि इस देश में इतनी बार कार्ड बनाकर भी हम अवैध रूप से रहने वाले विदेशी नागरिकों की पहचान नहीं कर पाए. खुद बीजेपी का ही दावा है कि भरात में एक करोड़ से ज्यादा बांग्लादेशी अवैध रूप से रहते हैं. हैरानी की बात है कि उनके पास पासपोर्ट सहित सभी तरह के कार्ड हैं. राशन कार्ड वगैरह तो बहुत साधारण सी बात है. अब सरकार चाहती है कि असली भारतीय नागरिकों का ही नए कार्ड के लिए रजिस्ट्रेशन हो. लेकिन यह होगा कैसे? जब पासपोर्ट जैसा संवेदनशील और महत्वपूर्ण दस्तावेज अवैध नागरिक बनवा लेते हैं तो कोई भी कार्ड बन सकता है. उसके लिए भी पुलिसकर्मी जांच करने घर पर ही जाते हैं. इसके बावजूद ऐसी खबरें आती है कि कई लोगों के पास कई पासपोर्ट हैं.

अगर ऐसी स्थिति है तो फिर इस नए कार्ड के बारे में कैसे कहा जा सकता है कि यह बिल्कुल सुरक्षित ढंग से बन सकेगा. जिस देश के डीएनए में ही भ्रष्टाचार घुस गया हो वहां ऐसे कार्ड पूरी ईमानदारी से बन जाएंगे, इसकी क्या गारंटी है? पैसे देकर तो बांग्लादेश से भारत की सीमा में आज भी हजारों लोग घुस जाते हैं उनके कार्ड बनने से कैसे रोके जाएंगे?

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इससे भी बड़ी बात यह है कि यह कैसे सुनिश्चित किया जा सकेगा कि जो लाखों बांग्लादेशी भारत में घुस गए हैं, उनके कार्ड फिर से नहीं बने? फिर जो बेहद गरीब और बेघर लोग हैं उनके कार्ड कैसे बनेंगे क्योंकि उनके पास तो कोई दस्तावेज तक नहीं है. महानगरों में सुदूर गांवों से आकर काम करने वाले श्रमिकों, घरों में झाड़ू-पोछा करने वाले लाखों कर्मियों के पास तो कोई भी दस्तावेज नहीं होता है. उनके कार्ड कैसे बनेंगे भला? ये सभी सवाल जटिल और प्रासंगिक हैं. सरकार इनके समाधान के लिए क्या करेगी? क्या उसके पास कोई योजना है? सिर्फ यह घोषणा कर देने मात्र से कि सरकारी कर्मचारी घर-घर जाएंगे और पता लगाएंगे, वैध और अवैध का फर्क नहीं मिट जाएगा.

वोट बैंक की राजनीति के कारण स्थानीय नेता भी नहीं चाहते कि कुछ ऐसा हो. यह सभी जानते हैं कि बिहार, बंगाल, असम और यहां तक कि दिल्ली में भी बांग्लादेशियों को स्थानीय नेताओं ने शरण दी और उन्हें वोट बैंक में तब्दील किया. अब देखने की बात तो यही है कि सरकार कैसे इसे लागू करती है और इसके कैसे परिणाम आते हैं. तब तक हम इंतजार ही कर सकते हैं.

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