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दुनिया में भुखमरी का शिकार हर चौथा व्यक्ति भारतीय, बांग्लादेश-पाकिस्‍तान से भी पिछड़ा भारत

देश में भुखमरी से ग्रस्त लोगों की संख्या कम हुई है. वर्ष 2013 में वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई) में भारत की स्थिति सुधरी है और वह 63वें स्थान पर रहा, लेकिन देश अब भी चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा श्रीलंका से पीछे है.

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बच्चों के कुपोषण का प्रमुख कारण सामाजिक असमानता
बच्चों के कुपोषण का प्रमुख कारण सामाजिक असमानता

देश में भुखमरी से ग्रस्त लोगों की संख्या कम हुई है. वर्ष 2013 में वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई) में भारत की स्थिति सुधरी है और वह 63वें स्थान पर रहा, लेकिन देश अब भी चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा श्रीलंका से पीछे है.

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वर्ष 2012 में भारत जीएचआई के मामले में 67वें स्थान पर था.

ताजा सूचकांक के अनुसार भारत में भुखमरी के कगार पर पहुंचे लोगों की स्थिति अभी खतरनाक स्तर पर है. यह बात इस तथ्य से साबित होती है कि 5 साल से कम उम्र के 40 प्रतिशत से अधिक बच्चों का वजन सामान्य से कम है.

जीएचआई रिपोर्ट संयुक्त रूप से अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान (आईएफपीआरआई), गैर-सरकारी संगठन वेल्थहंगरहिलपे और कनसर्न वर्ल्डवाइड ने तैयार की है.

रिपोर्ट के अनुसार जीएचआई के संदर्भ में चीन छठे स्थान पर रहा जो भूख के हल्के स्तर को बताता है, वहीं श्रीलंका 43वें, पाकिस्तान 57वें और बांग्लादेश 58वें स्थान पर हैं. यह भुखमरी से ग्रस्त लोगों के गंभीर स्तर को बताता है.

इसमें कहा गया है कि दक्षिण एशिया में भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या अधिकतम है. उसके बाद सहारा क्षेत्र का स्थान है. हालांकि वैश्विक स्तर पर भुखमरी से ग्रस्त लोगों की संख्या घट रही है.

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रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशियाई क्षेत्र में बच्चों के कुपोषण का प्रमुख कारण सामाजिक असमानता तथा महिलाओं में पोषण, शिक्षा और सामाजिक स्तर का निम्न होना है. यह जीएचआई में सुधार के रास्ते में बाधा है.

जहां तक वैश्विक स्तर पर भूख का सवाल है, जीएचआई के मामले में इस साल 1990 के स्तर से 34 प्रतिशत की कमी आयी है लेकिन भूख की स्थिति अभी ‘गंभीर’ स्तर पर है. 19 देशों में इसकी स्थिति खतरनाक स्तर पर है. सूचकांक के तहत 120 विकासशील देशों में भूख के स्तर को मापा गया है. इसमें जो अंक दिये गये हैं वह तीन तत्वों कुपोषित लोगों का अनुपात, पांच साल से कम उम्र के बच्चों का सामान्य से कम वजन तथा बच्चों की मृत्यु दर पर आधारित है.

रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि खाद्य तथा पोषण सुरक्षा के मामले में राष्ट्रीय नीति तय करने की जरूरत है तभी इस समस्या से पार पाया जा सकता है.

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