नेपाल सरकार ने सरकारी सेक्युरिटी प्रेस से मशीन से पढ़े जा सकने वाले पासपोर्ट के मुद्रण के लिए भारत के साथ विवादास्पद करार को निरस्त कर दिया है. इसके बाद माओवादियों ने अपनी राष्ट्रव्यापी हड़ताल वापस ले ली है.
सरकार का यह फैसला देश की शीर्ष अदालत के इस मामले पर सुनवाई करने से कुछ ही घंटों पहले आया. इस फैसले की घोषणा संचार मंत्री और सरकार के प्रवक्ता शंकर पोखरेल ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद की. ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार माओवादियों के दबाव के आगे झुक गई.
माओवादियों ने सरकार के इस कदम को भारत के समक्ष झुकना करार दिया था. पोखरेल ने कहा, ‘सरकार ने इस मामले की पड़ताल करने वाली संसदीय समिति की सलाह को मानने का फैसला किया है.’ सरकार का यह फैसला उच्चतम न्यायालय द्वारा करार को रोकने का आदेश दिए जाने के चार दिन बाद आया है.
न्यायालय ने प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल और उप प्रधानमंत्री सुजाता कोइराला से न्यायालय के समक्ष स्पष्टीकरण देने को कहा था. नए अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नियमों के अनुसार नेपाल को नये आवेदकों को एक अप्रैल तक मशीन से पढ़े जा सकने वाले नए पासपोर्ट जारी करने थे.
नेपाल सरकार ने द्विपक्षीय बातचीत के जरिए हाल में ही एमआरपी की आपूर्ति का अनुबंध चार डालर प्रति कॉपी की दर से भारतीय सेक्युरिटी प्रेस को सौंपने का फैसला किया था. अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन ने उसे हस्तलिखित पास्टपोर्ट जारी करने पर रोकने को कहा था. आदेश को रद्द करने का फैसला तब किया गया जब माओवादियों ने सरकार की योजना के खिलाफ सोमवार को हड़ताल की घोषणा की थी.