42 साल से मुंबई के केईएम अस्पताल में भर्ती अरुणा शानबाग की मौत के बाद इच्छामृत्यु पर फिर से बहस शुरू हो गई है. लोगों की मांग है कि इच्छामृत्यु को लेकर कोई कानून जरूर होना चाहिए, जिससे कि इस तरह के मामलों में एक विकल्प मिल सके.
सुप्रीम कोर्ट में उनके मामले को आधार बनाकर एक बार फिर इच्छामृत्यु पर विस्तार से सुनवाई होगी. कोर्ट की संविधान पीठ इच्छामृत्यु के सभी पहलुओं और उसकी कानूनी स्थिति पर विचार करेगी.
बताते चलें कि 1973 में अस्पताल के ही एक वार्ड ब्वॉय ने उनका रेप किया था. उसके बाद उनकी हालात लगातार बिगड़ती ही चली गई थी. उन्होंने कोर्ट से इच्छामृत्यु की मां की थी, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया था.
मार्च 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा को कहा कि उसे जीना ही होगा . इच्छामृत्यु की इजाजत नहीं दी जा सकती. फैसला देने से पहले कोर्ट ने एक मेडिकल बोर्ड से उनका चेकअप करवाया था.
डाक्टरों की रिपोर्ट और केईएम अस्पताल के नर्सों की दलील के बाद 7 मार्च 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने उनको इच्छामृत्यु की इजाजत नहीं दी. कोर्ट ने पैसिव यूथेनेशिया को मंजूरी देने के बावजूद उनको जीवित रखने के लिए कहा था.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि ये कहना मुश्किल है कि अरुणा क्या चाहती हैं? लेकिन उनके हाव-भाव बताते हैं कि उन्हें जिंदगी से अब भी लगाव है. अच्छा खाना या किसी स्टाफ को लेकर अच्छा रवैया दिखाना ये साबित करता है कि वह जीना चाहती हैं.