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नक्‍सली इलाकों के लिए नई खनन नीति तैयार हो: शरद

माओवाद प्रभावित इलाकों में सभी किस्म के खनन पर तत्काल रोक लगाने की मांग करते हुए जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने शुक्रवार को कहा कि सरकार को एक नयी खनन नीति तैयार करनी चाहिए जिसमें खनन क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों के हितों का ख्याल रखा गया हो.

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माओवाद प्रभावित इलाकों में सभी किस्म के खनन पर तत्काल रोक लगाने की मांग करते हुए जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने शुक्रवार को कहा कि सरकार को एक नयी खनन नीति तैयार करनी चाहिए जिसमें खनन क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों के हितों का ख्याल रखा गया हो.

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यादव ने संवाददाताओं से बताचीत करते हुए कहा कि देश में माओवादी समस्या दिनों दिन बिगड़ती जा रही है, जो गंभीर चिंता का विषय है. केन्द्र सरकार इस मुद्दे पर अपनी गंभीरता दिखा रही है लेकिन वह इस समस्या से जुड़े मुख्य चिंता से निपटने में विफल रही है. उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार माओवादी हिंसा से निपटने के मामले में सुरक्षा बलों पर अत्यधिक रूप से निर्भर कर रही है इसके बावजूद उसे सफलता नहीं मिली है और स्थिति दिनों दिन खराब होती जा रही है.

जदयू नेता ने कहा, ‘माओवाद की समस्या को सुरक्षा बलों के जोर और ताकत से नहीं सुलझाया जा सकता. सख्ती होनी चाहिए लेकिन उसमें मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए.’ उन्होंने कहा कि अगर सरकार वाकई में इस समस्या को सुलझाना चाहती है तो उसे माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में खनन कार्यों पर तत्काल रोक लगाने का आदेश जारी करना चाहिए. {mospagebreak}

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उन्होंने कहा ‘हमें इलाके के आदिवासियों की जल, जंगल और जमीन का ख्याल रखना होगा, क्योंकि वैध और अवैध दोनों किस्म के खनन कार्यों से जंगल बर्बाद हो रहे हैं और नदियां प्रदूषित हो रही हैं. शरद यादव ने कहा कि जिन इलाकों में आदिवासी रहते हैं खासतौर पर उन्हीं इलाकों में नक्सलवाद की समस्या है और दिलचस्प बात यह है कि उन्हीं इलाकों में खनिज संपदा सबसे ज्यादा है. नयी आर्थिक नीति के बाद इन इलाकों में कारपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियां सक्रिय हुई हैं.

उन्होंने कहा कि नयी आर्थिक नीतियों के साथ शुरू हुई लूट के तहत आदिवासियों को उनकी जमीन से उजाड़ा जा रहा है, उनके जंगल को बर्बाद किया जा रहा है और नदियां प्रदूषित हो रही हैं. उन्होंने कहा कि आदिवासियों की चिंताओं को दूर किये बगैर बड़ी मात्रा में खनन इस समस्या का सबसे बड़ा कारण है. उन्होंने कहा कि पिछले 63 वर्षों के दौरान उन इलाकों के आदिवासियों के कल्याण के लिए कुछ भी नहीं किया गया. उनका शोषण बढ़ता गया और उनके शांतिपूर्ण आंदोलन को हिंसा के साथ कुचला गया. यही सब कारण है कि गरीब आदिवासियों का व्यवस्था से विश्वास उठ गया और वे माओवाद की ओर आकषिर्त हुए हैं. उन्हें यह महसूस कराना होग कि लोकतंत्र सबसे अच्छी व्यवस्था है जिसके तहत वे फल फूल सकते हैं.

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उन्होंने कहा कि खनिज संपदा का राष्ट्रीयकरण होना चाहिए और उन आदिवासी बहुल इलाकों में इमानदार और स्वच्छ छवि वाले नौकरशाहों को तैनात किया जाना चाहिए जहां खनन कार्यों से जुड़ी गतिविधियों चल रही हों. कर्नाटक में अवैध खान के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अवैध खान सिर्फ कर्नाटक तक ही सीतिम नहीं है यह उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, और अन्य स्थानों तक फैला हुआ है.

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