राजस्थान सरकार ने अध्यादेश जारी किया है कि किसी भी जज, मजिस्ट्रेट या लोकसेवक के खिलाफ सरकार से मंजूरी लिए बिना किसी तरह की जांच नहीं की जाएगी. अध्यादेश के मुताबिक, कोई भी लोकसेवक अपनी ड्यूटी के दौरान लिए गए निर्णय पर जांच के दायरे में नहीं आ सकता है, सिवाय कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर 197 के.
इतना ही नहीं, किसी भी लोकसेवक के खिलाफ कोई भी एफआईआर दर्ज नहीं करा सकता है. पुलिस भी एफआईआर नहीं दर्ज कर सकती है. किसी भी लोकसेवक के खिलाफ कोई कोर्ट नहीं जा सकता है और न हीं जज किसी लेकसेवक के खिलाफ कोई आदेश दे सकता है.
अध्यादेश के मुताबिक, सरकार के स्तर पर सक्षम अधिकारी को 180 दिन के अंदर जांच की इजाजत देनी होगी. अगर 180 दिन के अंदर जांच की इजाजत नहीं दी जाती है तो इसे स्वीकृत मान लिया जाएगा. सामाजिक कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव का कहना है कि ये राज्य में काला कानून है. इसकी आड़ में भ्रष्टाचार किया जाएगा और मीडिया भी कुछ नहीं कर पाएगा.
अध्यादेश में यह भी कहा गया है कि किसी भी जज, मजिस्ट्रेट या लोकसेवक का नाम और पहचान मीडिया तब तक जारी नहीं कर सकता है जब तक सरकार के सक्षम अधिकारी इसकी इजाजत नहीं दें. क्रिमिनल लॉ राजस्थान अमेंडमेंट ऑर्डिनेंस 2017 में साफ तौर पर मीडिया को लिखने पर रोक लगाई गई है.
23 अक्टूबर से विधानसभा शुरू हो रहा है. ऐसे में इस तरह की अध्यादेश लाने पर वसुंधरा सरकार पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. अध्यादेश में लिखा गया है कि चूंकि विधानसभा का सत्र नहीं चल रहा है, लिहाजा अध्यादेश लाना जरूरी है. इसे विधानसभा सत्र में कानून बनाने के लिए पेश किया जाएगा.
गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया का कहना है कि ईमानदार अधिकारी को बचाने के लिए हमने ये अध्यादेश लाया है. कोई भी ईमानदार अधिकारी काम करने में डरता था कि कोई जानबूझकर झूठी शिकायत कर उसे फंसा देगा.