रेल मंत्रालय ने स्पैनिश ट्रेन टैल्गो के ट्रायल की तारीखों में बदलाव किया है. मंत्रालय के मुताबिक दिल्ली-मुंबई के बीच टैल्गो के बाकी बचे तीन ट्रायल दिल्ली से ही शुरू किए जाएंगे.
अगले ट्रायल में बढ़ेगी रफ्तार
पहला ट्रायल 1 अगस्त को किया जा चुका है. रास्ते में जोरदार बारिश और बाढ़ के चलते दिल्ली-मुंबई का पहला ट्रायल दिल्ली से सूरत के बीच ही किया जा सका था. रेल मंत्रालय इस ट्रायल को लेकर संतुष्ठ है. इस कड़ी में दूसरा ट्रायल 5 अगस्त को 130 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पर नई दिल्ली से मुंबई सेंट्रल के बीच किया जाएगा. दिल्ली-मुंबई के बीच तीसरा ट्रायल 9 अगस्त को 140 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड में नई दिल्ली से मुंबई सेंट्रल के बीच किया जाएगा.
12 अगस्त को आखिरी ट्रायल
दिल्ली मुंबई के बीच चौथा और आखिरी ट्रायल 12 अगस्त को 150 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से किया जाएगा. अंतिम ट्रायल में दिल्ली और मुंबई के बीच की दूरी 10 घंटे 36 मिनट में पूरा किया जाने का लक्ष्य है. हर ट्रायल में स्पैनिश ट्रेन को खींचने का काम भारतीय इलैक्ट्रिक इंजन करेगा.
घुमावदार पटरियों पर पकड़े रहेगी रफ्तार
रेल मंत्रालय के एक उच्च अधिकारी के मुताबिक दिल्ली और मुंबई रेलमार्ग में 795 जगहों पर रेल पटरी घुमावदार हैं. 1.8 डिग्री के कोण पर मौजूदा समय में राजधानी ट्रेन को 115 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पर ही निकाला जाता है. इसके मुकाबले टैल्गो ट्रेन में जो तकनीक है उसकी बदौलत इस तरह की घुमावदार पटरी पर स्पैनिश ट्रेन 142 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकती है. इससे दिल्ली और मुंबई के बीच टैल्गो ट्रेन को कम वक्त लगेगा.
अंदर से कैसी है टैल्गो?
इस ट्रेन में दो तरह के कोच हैं. पहला एक्जिक्यूटिव क्लास और दूसरा इकॉनोमी क्लास. एक्जूक्यूटिव क्लास में 20 और इकॉनोमी क्लास में 36 सीटें हैं. पूरी ट्रेन चेयर कार है और एक कोच डाइनिंग के लिए बनाया गया है. भारतीय ट्रेनों की तुलना में इस ट्रेन की उंचाई कम है. स्पेन से आए टैल्गो के अधिकारियों का कहना है कि जमीन से ऊंचाई कम होने से सेंटर ऑफ ग्रेविटी नीचे रहता है, जिससे दुर्घटना होने की संभावना कम हो जाती है. ट्रेन के हर कोच में एलईडी स्क्रीन लगे हैं, जिनमें सफर के दौरान यात्री फिल्म देख सकते हैं.
कीमत ज्यादा और फायदे भी
टैल्गो कंपनी के डिब्बों की खासियत ये है कि ये तेज घुमावदार मोड़ों पर भी तेज रफ्तार से चल सकते हैं. इन डिब्बों में भारतीय रेल के मुकाबले आधे से भी कम पहिए लगे हैं. मसलन एक रेल डिब्बे में आठ पहिए लगाए जाते हैं. लेकिन टैल्गो के हबर डिब्बे में दो पहिए लगे होते हैं. इसके अलावा टैल्गो के डिब्बे एलूमिनियम के बने होने की वजह से भारतीय रेल के डिब्बों के 68 टन के वजन के मुकाबले महज 16 टन के ही होते हैं. लेकिन इनकी कीमत की बात करें तो भारतीय रेल के डिब्बों के मुकाबले इनकी कीमत तीन गुना से ज्यादा पड़ेगी.