राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) एक्ट में संशोधन के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. याचिका में मांग की गई है एनआईए एक्ट संशोधन 2019 को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द किया जाए. इस याचिका को उमर एम ने दाखिल किया है. याचिका में आधार दिया गया है कि एनआईए एक्ट 2019 मूल अधिकारों का हनन करता है.
दरअसल यह कानून राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को भी असीमित अधिकार देता है. अब तक के नियम के मुताबिक एक जांच अधिकारी को आतंकवाद से जुड़े किसी भी मामले में संपत्ति सीज करने के लिए पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) से अनुमति लेनी होती थी.
अब यह विधेयक इस बात की अनुमति देता है कि अगर आतंकवाद से जुड़े किसी मामले की जांच एनआईए का कोई अफसर करता है तो उसे इसके लिए सिर्फ एनआईए के महानिदेशक से अनुमति लेनी होगी.
NIA के बढ़ेंगे अधिकार
नए प्रस्तावित संशोधनों के बाद अब एनआईए के महानिदेशक को ऐसी संपत्तियों को कब्जे में लेने और उनकी कुर्की करने का अधिकार मिल जाएगा जिनका आतंकी गतिविधियों में इस्तेमाल किया गया. अब इसके लिए एनआईए को राज्य के पुलिस महानिदेशक से अनुमति लेने की जरुरत नहीं होगी.
इस कानून की वजह से एनआईए की ताकत बढ़ गई है. अब तक के नियम के अनुसार, ऐसे किसी भी मामले की जांच डिप्टी सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (डीएसपी) या असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस (एसीपी) रैंक के अधिकारी ही कर सकते थे. लेकिन अब नए नियम के मुताबिक एनआईए के अफसरों को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं.
अब ऐसे किसी भी मामले की जांच इंस्पेक्टर रैंक या उससे ऊपर के अफसर कर सकते हैं. याचिका में इस कानून को मूल अधिकारियों का हनन बताया है.