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निर्भया से कठुआ तक, कानून बदला लेकिन हालात नहीं

कठुआ मामला जनवरी 2018 में सामने आया, लेकिन इस घटना पर अब तक कोई ठोस एक्शन नहीं हो पाया है. मामले में चार्जशीट पेश कर दी गई है. 15 पन्नों की इस चार्जशीट को पढ़ने के बाद पता चलता है कि कानून कितने भी कड़े क्यों न हो जाए. हालात नहीं बदले. उन्नाव रेप केस में सत्ताधारी पार्टी के विधायक पर रेप का आरोप है.

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रेप पर कानून बदले, लेकिन हालात नहीं
रेप पर कानून बदले, लेकिन हालात नहीं

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छह साल पहले दिल्ली की सड़कों पर निर्भया के लिए इंसाफ की खातिर जनता का हुजूम सड़कों पर था, इस वीभत्स घटना ने देश के मानस को झकझोर दिया था. न्याय की मांग को लेकर इंडिया गेट पर हजारों लोगों का हुजूम अड़ा रहा, केंद्र सरकार के हाथ पांव फूल गए... बलात्कार के मामलों में सजा को लेकर कानून बदले गए... कड़े प्रावधान लाए गए... लेकिन 6 साल बाद बदला क्या? आज हालात ये हैं कि कठुआ से लेकर उन्नाव तक... बलात्कार की घटनाएं हर रोज रिपोर्ट हो रही हैं, लेकिन इंसाफ होता दिख नहीं रहा. सरकारें बदली हैं... लेकिन हालात नहीं बदले.

कठुआ में आठ साल की बच्ची से रेप की वीभत्स घटना ने लोगों के आक्रोश को जगा दिया है. सोशल मीडिया से लेकर सड़क पर जनता का ये गुस्सा दिख रहा है. गुरुवार की रात इंडिया गेट पर अपने आक्रोश को जाहिर करने के लिए एक बार फिर हजारों लोग इकट्ठा हुए. ये एक राजनीतिक पार्टी की अपील पर हुआ, लेकिन ये बताता है कि अगर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी, तो लोग चुप नहीं बैठेंगे. इंसाफ के लिए वे किसी भी पार्टी के खिलाफ खड़े हो सकते हैं.

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कठुआ का मामला जनवरी 2018 में सामने आया, लेकिन इस घटना पर अब तक कोई ठोस एक्शन नहीं हो पाया है. मामले में चार्जशीट पेश कर दी गई है. 15 पन्नों की इस चार्जशीट को पढ़ने के बाद पता चलता है कि कानून कितने भी कड़े क्यों न हो जाए. हालात नहीं बदले. उन्नाव रेप केस में सत्ताधारी पार्टी के विधायक पर रेप का आरोप है.

पीड़िता और उसके परिजनों की शिकायत है कि पिछले एक साल से वो न्याय की गुहार लगा रहे थे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई और फिर उन्हें लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह करने जैसा कदम उठाना पड़ा. हालांकि किसी तरह उन्हें रोक लिया गया. लेकिन क्या हुक्मरान इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि पीड़िता पर क्या गुजरी है.

अगर ऐसा होता, तो मुख्यमंत्री अपने विधायक की नकेल कसते और एक साल पहले ही जांच शुरू हो गई होती. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ. यूपी सरकार का रवैया सवालों के घेरे में है, जो बताता है कि निर्भया से लेकर आसिफा तक कानून तो बदला है, लेकिन हालात नहीं बदले हैं. हर रोज अखबारों में बलात्कार की घटनाएं छपती हैं.

बात सिर्फ कठुआ की आसिफा का नहीं है, चाहे वो मुंबई की शक्तिमिल गैंगरेप का मामला हो या दिल्ली के उबर कैब रेप सरवाइवर का केस हो... हालात जस के तस दिखते हैं. निर्भया केस में ही दोषियों को अब तक सजा नहीं हो पाई है. वे कानून के शिकंजे में हैं, लेकिन मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में है.

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बदला है तो सिर्फ इतना कि अब रेप के मामले मेनस्ट्रीम मुद्दे की तरह ट्रीट किए जाते हैं. हर कोई अपनी आवाज उठाता है. अखबारों के पहले पन्ने रेप की खबरों से पटे होते हैं. राजनीतिक पार्टियों के लिए महिला सुरक्षा अब प्रमुख मुद्दों में से है. वास्तव में इन सबसे जमीन पर हालात नहीं बदले हैं. लेकिन, हां देश में अब इस पर बात होने लगी है.

दूसरी ओर निर्भया कांड के बाद कानून में बड़े बदलाव हुए. रेप के कानून को विस्तार मिला. रेप की परिभाषा नए सिरे से तय की गई. अब ताड़ना, पीछा करना और एसिड अटैक जैसे मामले भी दंडनीय अपराध हैं. 2013 में आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 2013 के आने से पीड़ितों के लिए मेडिकल हेल्प मांगना और इंसाफ के लिए लड़ना थोड़ा आसान हुआ है.

यही नहीं रेप के ज्यादातर मामले रिपोर्ट होने लगे हैं, लेकिन दोषियों को सजा मिलने की दर अभी भी बहुत कम है. पिछले 6 सालों में जो सबसे बड़ा बदलाव हुआ है, वो ये है कि युवा महिलाएं अब अपनी आवाज उठाने लगी हैं. चाहे वो होस्टल के कर्फ्यू का मामला ही क्यों न हो, या फिर कैंपस में सुविधाओं की मांग. #Metoo और #IWillgoOut जैसे कैंपेन महिलाओं की मुखर आवाज के द्योतक हैं.

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