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हैदराबाद पर हंगामा, लेकिन निर्भया के दोषियों को 7 साल बाद भी फांसी नहीं, ये है वजह

निर्भया के साथ गैंग रेप करने वाले सभी दोषी निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक फांसी की सजा पा चुके हैं तो सबके मन में यह सवाल उठता है कि इस वीभत्स घटना के 7 साल के बाद भी अभी तक निर्भया के दोषियों को फांसी क्यों नहीं दी गई.

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निर्भया की मां को दोषियों को जल्द फांसी दिए जाने की आस (फाइल-GettyImages)
निर्भया की मां को दोषियों को जल्द फांसी दिए जाने की आस (फाइल-GettyImages)

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  • चारों के पास कोर्ट से राहत लेने का कोई खास विकल्प नहीं
  • क्यूरेटिव पिटीशन कानूनी अधिकार नहीं, कानूनी विकल्प

निर्भया के साथ गैंग रेप करने वाले सभी दोषी निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक फांसी की सजा पा चुके हैं तो सबके मन में यह सवाल उठता है कि इस वीभत्स घटना के 7 साल के बाद भी अभी तक निर्भया के दोषियों को फांसी क्यों नहीं दी गई है. 2018 में ही सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्भया केस के चारों दोषियों की फांसी की सजा को बरकरार रखते हुए उनकी अपील को भी खारिज कर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट से अपील खारिज होने के बाद इन चारों के पास कोर्ट से राहत लेने का कोई खास विकल्प नहीं है. क्यूरेटिव पिटीशन भी उन दुर्लभ मामलों में लगाई जाती है जिसमें आप कोर्ट के दिए जजमेंट में आधारभूत त्रुटियां (fundamental error) ढूंढ पाए और जिससे यह साफ हो कि कोर्ट का आदेश पलटा जा सकता है.

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सजा मिलने के बारे में निर्भया की मां आशा देवी ने कहा, 'मैं निर्भया मामले में दोषियों में से एक दोषी की दया याचिका खारिज किए जाने के दिल्ली सरकार के सुझाव का स्वागत करती हूं. मुझे उम्मीद है कि दोषियों को जल्द से जल्द फांसी की सजा मिलेगी.'

क्यूरेटिव पिटीशन कानूनी अधिकार नहीं

हालांकि दोषियों के क्यूरेटिव पिटीशन ना लगाने की सूरत में भी फांसी दी जा सकती है क्योंकि क्यूरेटिव पिटीशन लगाना उनका कानूनी अधिकार नहीं है, बल्कि यह कानूनी विकल्प है. निर्भया के मामले में क्यूरेटिव पिटिशन लगती भी है तो वह तुरंत खारिज हो जाएगी. इसीलिए इस मामले को और लंबा खींचने के लिए दोषियों की तरफ से क्यूरेटिव पिटीशन नहीं लगाई गई है.

इसका आगे का रास्ता माफी का होता है यानी कि सुप्रीम कोर्ट से फांसी मिलने के बाद अगर राष्ट्रपति के सामने दया याचिका लगाई जाती है और वह उसे स्वीकार कर लेते हैं तो अक्सर फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया जाता है.

रहम की उम्मीद कम

राष्ट्रपति दया याचिका को स्वीकार करेंगे या अस्वीकार, यह केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय से मिले सुझाव के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए तय किया जाता है, लेकिन इस मामले में उसके आसार भी बहुत कम नजर आ रहे हैं क्योंकि निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने इस पूरे मामले पर किसी तरह की कोई रहम निर्भया के केस के दोषियों पर नहीं बरती है. जिस बर्बरता से निर्भया का गैंगरेप किया गया उसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था, कहीं से भी राहत मिलने के आसार नहीं दिख रहे हैं.

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सवाल फिर भी वही है कि आखिर अभी तक इन चारों को फांसी क्यों नहीं दी गई है. तो उसका कारण भी यही है कि ना तो इन लोगों की तरफ से क्यूरेटिव पिटीशन के कानूनी विकल्प को अब तक इस्तेमाल किया गया है. इसके अलावा राष्ट्रपति के पास दया याचिका भी 4 में से सिर्फ एक ही ने लगाई है, पर वह अभी राष्ट्रपति के पास लंबित है.

यानी राष्ट्रपति के पास दया याचिका खारिज होती है या उससे पहले सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन, तो उसके बाद इन चारों के फांसी पर लटकाने का रास्ता साफ हो जाएगा. जिसके बाद सेशन कोर्ट को इस मामले में डेथ वारंट जारी करना होता है, वारंट के मिलने के बाद जेल प्रशासन फांसी देने की तैयारियों को अमलीजामा पहनाता है.

फांसी में कितना वक्त लगेगा?

हाल ही में निर्भया के माता-पिता ने इन चारों को जल्द फांसी दिए जाने को लेकर पटियाला हाउस कोर्ट में याचिका लगाई जिस पर कोर्ट ने इन चारों दोषियों को नोटिस जारी करते हुए 13 दिसंबर तक यह बताने को कहा है कि इस मामले में वो राष्ट्रपति के पास दया याचिका या सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटिशन लगाना चाहते हैं या नहीं, इसको लेकर अपना पक्ष कोर्ट के सामने रखें.

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यानी इस मामले में 13 दिसंबर को होने वाली सुनवाई बेहद महत्वपूर्ण होगी क्योंकि कोर्ट में दाखिल किए गए इन चारों के जवाब से यह तय हो जाएगा कि निर्भया के दोषियों को फांसी पर चढ़ाने में कितना और वक्त लगना बाकी है. यानी कि इस मामले में फास्ट ट्रैक कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भले ही 6 साल के भीतर अपना आदेश सुना दिया हो, लेकिन फांसी में कितना वक्त लगेगा, यह कहना मुश्किल है.

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