जजों की कमी से जूझ रही न्यायपालिका में युवाओं को आकर्षित करने के लिए नीति आयोग ने एक सुझाव दिया है. नीति आयोग ने निचली न्यायपालिका में न्यायाधीशों के चयन के लिए राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा की वकालत की है.
नीति आयोग का कहना है कि यह युवा और उज्ज्वल विधि स्नातकों को आकर्षित करेगी और शासन प्रणाली में जवाबदेही भी बढ़ाएगी. नीति आयोग ने बुधवार को 'नए भारत' के लिए एक राष्ट्रीय रणनीति पेश की जिसमें 2022-23 के लक्ष्य बताए गए.इसमें कहा गया, 'न्यायपालिका में उच्च मानक कायम रखने के लिए रैंकिंग पर आधारित अखिल भारतीय न्यायिक सेवा परीक्षा के आयोजन पर विचार किया जा सकता है. चयन प्रक्रिया की जिम्मेदारी केन्द्रीय लोक सेवा आयोग (UPSC) को दी जा सकती है, इसके (परीक्षा) जरिए निचली न्यायपालिका के न्यायाधीशों, भारतीय विधि सेवा (केन्द्र और राज्य दोनों) अधिकारियों, अभियोजकों, विधि सलाहकारों और विधि रचनाकारों की नियुक्ति हो सकती है.'
रिपोर्ट में दावा किया गया कि इस कदम से युवा और उज्ज्वल विधि स्नातक आकर्षित होंगे और ऐसे नए अधिकारियों की नियुक्ति में मदद मिलेगी जिनसे 'शासन प्रणाली में जवाबदेही बढाई जा सके.'
रिपोर्ट में प्रक्रिया को सुचारू बनाने के लिए न्यायिक प्रणाली में प्रशासनिक कैडर को शामिल करने का सुझाव दिया गया. इसमें कहा गया, 'न्यायिक स्वतंत्रता कायम रखने के लिए, कैडर हर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के प्रति जवाबदेह हों.'
सरकार अतीत में राष्ट्र स्तरीय न्यायिक सेवा का प्रस्ताव रख चुकी है. लेकिन नौ उच्च न्यायालयों ने निचली न्यायपालिका के लिए अखिल भारतीय सेवा के प्रस्ताव का विरोध किया. आठ अन्य उच्च न्यायालयों ने प्रस्तावित ढांचे में बदलाव का अनुरोध किया जबकि केवल दो ने इस विचार का समर्थन किया.
नरेंद्र मोदी सरकार देश की निचली न्यायपालिका के पृथक कैडर के लिए नई सेवा गठित करने के लंबे अरसे से अटके प्रस्ताव को फिर से आगे बढाने की दिशा में प्रयासरत है.