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अब नीति आयोग का सुझाव, 2024 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हो

आयोग ने कहा, हम 2024 में लोकसभा चुनाव से एक साथ दो चरणों में चुनाव कराने की ओर आगे बढ़ सकते हैं. इसमें अधिकतम एक बार कुछ विधानसभाओं के कार्यकाल में कटौती करनी होगी या कुछ को कार्यकाल विस्तार देना होगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्र हित में इसे लागू करने के लिए संविधान और इस मामले पर विशेषज्ञों, थिंक टैंक, सरकारी अधिकारियों और विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों सहित पक्षकारों का एक विशेष समूह गठित किया जाना चाहिए.

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नीति आयोग
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पीएम नरेंद्र मोदी और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बाद नीति आयोग भी मानता है कि 2024 से लोकसभा और विधानसभाओं के लिए दो चरणों में चुनाव साथ हो. उसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि चुनाव प्रचार के कारण शासन में कम से कम व्यवधान सुनिश्चत हो सके. सरकारी थिंक टैंक ने कहा है कि लोकसभा और विधानसभा, दोनों चुनाव एक साथ कराना राष्ट्रीय हित में होगा. इसके साथ ही संस्थान ने विशेषज्ञों का एक समूह बनाने का सुझााव दिया है जो इस संबंध में सिफारिशें करेगा.

विशेष समूह गठित करने की सिफारिश

आयोग ने कहा, हम 2024 में लोकसभा चुनाव से एक साथ दो चरणों में चुनाव कराने की ओर आगे बढ़ सकते हैं. इसमें अधिकतम एक बार कुछ विधानसभाओं के कार्यकाल में कटौती करनी होगी या कुछ को कार्यकाल विस्तार देना होगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्र हित में इसे लागू करने के लिए संविधान और इस मामले पर विशेषज्ञों, थिंक टैंक, सरकारी अधिकारियों और विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों सहित पक्षकारों का एक विशेष समूह गठित किया जाना चाहिए जो इसे लागू करने संबंधी सिफारिश करेगा. तीन वर्ष का कार्य एजेंडा, 2017-2018 से 2019-2020 शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है, इसमें संवैधानिक और वैधानिक बदलावों के लिए मसौदा तैयार करना, एक साथ चुनाव कराने के लिए संभव कार्ययोजना तैयार करना, पक्षकारों के साथ बातचीत के लिए योजना बनाना और अन्य जानकारियां जुटाना शामिल होगा.

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दिया यह सुझाव

नीति आयोग ने इन सिफारिशों का अध्ययन करने और इस संबंध में मार्च 2018 की समय सीमा तय करने के लिए निर्वाचन आयोग को नोडल एजेंसी बनाने का सुझाव दिया है. आयोग की सिफारिशें इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गयी हैं क्योंकि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दोनों ने लोकसभा और विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने का समर्थन किया है. प्रधानमंत्री मोदी कई बार इसके पक्ष में बोल चुके हैं. उन्होंने यह भी कहा है कि अगर प्रस्ताव उपयुक्त नहीं हो तो इसे खारिज किया जा सकता है लेकिन इस पर चर्चा होनी चाहिए. उन्होंने हालांकि जोर दिया था कि इस बारे में कोई फैसला सरकार द्वारा नहीं थोपा जाना चाहिए. पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी ने भी लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने की बात कही थी.पूर्व राष्ट्रपति ने कहा था, चुनावी सुधार पर सकारात्मक चर्चा का वक्त आ गया है. समय आ गया है कि दशकों पुराने समय में लौट जाएं, जब स्वतंत्रता के तुरंत बाद लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ होते थे. उन्होंने कहा था, अब निर्वाचन आयोग को राजनीतिक दलों के साथ विचार विमर्श कर इसे आगे बढ़ाना है। मोदी ने फरवरी में भी दोनों चुनाव एक साथ कराने की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि इससे खर्च कम होगा। उन्होंनें कहा था कि राजनीतिक दल इसे अन्य नजरिये से न देखें. उन्होंने कहा था एक पार्टी या सरकार यह नहीं कर सकती हम सबको मिल कर एक रास्ता खोजना होगा.

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होता है आर्थिक नुकसान

उन्होंने लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा था कि अक्सर चुनाव होते रहते हैं और इस पर बड़ी राशि खर्च होती है. मोदी ने भी कहा था कि 2009 में लोकसभा चुनाव पर 1,100 करोड़ रूपये खर्च हुए और 2014 में यह खर्च बढ़ कर 4,000 करोड़ रुपये हो गया. उन्होंने कहा था कि बड़ी संख्या में शिक्षकों सहित एक करोड़ से अधिक सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रोसेस में शामिल होते हैं. यह सिलसिला जारी रहने पर शिक्षा के क्षेत्र को अधिकतम नुकसान होता है. मोदी ने कहा था कि सुरक्षा बलों को भी चुनाव कार्य में लगाना पड़ता है जबकि दुश्मन देश के खिलाफ साजिश रच रहे हैं और आतंकवादी बड़ा खतरा बने हुए हैं.

 

 

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