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मूत्र से पौधे सींचने के गडकरी के तर्क का वैज्ञानिक आधार: एनजीओ

पौधों के लिए मूत्र चिकित्सा पद्धति की वकालत कर रहे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को शहर के एक जाने माने एनजीओ ने समर्थन जताते हुए कहा है कि एक वैज्ञानिक अध्ययन में पता चला है कि मानव मूत्र उर्वरक के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है.

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Nitin Gadkari (File)
Nitin Gadkari (File)

पौधों के लिए मूत्र चिकित्सा पद्धति की वकालत कर रहे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को एक जाने माने एनजीओ ने समर्थन जताते हुए कहा है कि एक वैज्ञानिक अध्ययन में पता चला है कि मानव मूत्र उर्वरक के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है.

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मानव मूत्र से पेड़ पौधों की सिंचाई करने संबंधी गडकरी के तर्क पर जहां सोशल मीडिया पर लोग चुटकी लेने लगे, वहीं इंफोसिस के पूर्व सीईओ नंदन नीलेकणी की पत्नी रोहिणी नीलेकणी द्वारा स्थापित शहर के प्रसिद्ध एनजीओ अघ्र्यम ने बुधवार को गडकरी की इस बात का समर्थन किया.

संगठन ने कहा कि एक अध्ययन में इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि मानव मूत्र में पेड़-पौधों के लिहाज से कई पोषक तत्व होते हैं और यह अच्छे उर्वरक के तौर पर उपयोगी हो सकता है.

अघ्र्यम द्वारा जारी एक बयान के मुताबिक, 'बेंगलुरु के कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय द्वारा किया गया एक अनुसंधान, जिसमें अघ्र्यम ने भी सहयोग दिया, आज हो रही चर्चा के मद्देनजर रोचक हो जाता है.' बेंगलुरु के कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय में मृदा विज्ञान और कृषि रसायन विभाग में मानव मूत्र पर अनुसंधान परियोजना में अघ्र्यम ने सहयोग किया था.

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जी. श्रीदेवी नामक शोधार्थी ने प्रोफेसर सी ए श्रीनिवासमूर्ति के निर्देशन में खेती में मानव मूत्र के इस्तेमाल के विषय पर पीएचडी की थी और 2008 में अपना शोध जमा किया था.

इस अनुसंधान में मानव मूत्र से मिट्टी पर और पौधों के विकास पर सकारात्मक असर पड़ने की अवधारणा का परीक्षण मक्का, केला और मूली की फसलों पर किया गया था.

अध्ययन की पृष्ठभूमि के अनुसार इस बात के साक्ष्य हैं कि मानव मूत्र में मौजूदा नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम (एनपीके) बड़े स्तर पर बेकार हो जाते हैं और भारत में खेती में एनपीके खाद की जरूरत पूरा करने के लिए इसका प्रभावी तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है.

इसमें दुनिया के अन्य देशों में भी हुए इस तरह के अध्ययनों का हवाला दिया गया है.

- इनपुट भाषा

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