खुद को सेकुलर बताने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अब मुस्लिमों वोटरों को लुभाने के लिए एक नया पैंतरा अपनाया है. बिहार सरकार अब मुस्लिम बहुल इलाकों में उर्दू में होर्डिंग्स लगाएगी. नरेंद्र मोदी के नाम पर बीजेपी से अपना 17 सालों का संबंध तोड़ने वाली जेडीयू अपनी सेकुलर छवि को और निखारना चाहती है.
सरकार का तर्क है कि उर्दू में होर्डिंग्स लगाने से मुस्लिम बहुल इलाकों में लोग सरकार की योजनाओं के बारे में अच्छी तरह से जान सकेंगे. हांलाकि बीजेपी का आरोप है कि सरकार मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए ऐसा कर रही है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मंगल पाण्डे का कहना है कि नीतीश कुमार मुस्लिम वोटों के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, लेकिन इससे अच्छा मैसेज नहीं जाता है, जनता इन बातों को खूब समझती है.
बीजेपी जब नीतीश कुमार के साथ थी तब भी कई ऐसी योजनाओं की शुरुआत हुई थी, जिससे अल्पसंख्यकों को लाभ मिले. जिसमें छात्र-छात्राओं को मैट्रिक पास करने पर वजीफे का देने का फैसला हालांकि इस योजना में 75 प्रतिशत पैसा केंद्र सरकार का होता है पर बिहार सरकार ने इसे अच्छे से लागू किया.
इसी तरह से अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के लिए किशनगंज में जमीन देने का मामला भी राज्य सरकार ने तत्परता से किया, जबकि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने इसका विरोध भी किया था. मुस्लिम महिलाओं के लिए हुनर कार्यक्रम की शुरुआत बीजेपी के साथ रहते हुए किया गया था, जिसमें महिलाओं को काम सिखाने के साथ-साथ 25 रुपये व्यवसाय के लिए दिया जाता है.
मुस्लिमों का ध्रुवीकरण करने के लिए पहले भी सरकारें काम करती थी पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा ने उर्दू को दूसरी राज्यभाषा घोषित किया था, तब उन्हें मौलाना की उपाधि उनके विरोधियों ने की थी. बिहार के सीमांचल में खासकर किशनगंज पूर्णियां, अररिया और कटिहार जैसे इलाके मुस्लिम बहुल हैं और वहां बहुत लोग ऐसे भी हैं, जिनकी पढाई उर्दू माध्यम से होती है. ऐसे में सरकार उनके लिए उनके परिवार और बच्चों के लिए क्या कर रही ये पता चल सकेगा.
जेडीयू को इसमें कोई बुराई नजर नहीं आ रही है पार्टी का मानना है कि उर्दू बिहार की महत्वपूर्ण भाषा है और अगर उस भाषा के जरिए सरकार जनता तक अपनी बात पहुंचाना चाहती है तो क्या बुराई है.