नीतीश कुमार कभी भी फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बन सकते हैं. यह नीतीश कुमार पर निर्भर करता है कि वे कब फिर से बिहार की गद्दी सम्भालते हैं. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने इसके लिए हरी झंडी दे दी है. साथ ही आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद को भी नीतीश कुमार के दोबारा मुख्यमंत्री बनने पर कोई आपत्ति नहीं है.
लालू प्रसाद का कहना उनकी पार्टी का समर्थन जनता दल(यू) की सरकार को है, न कि किसी मुख्यमंत्री को. अगर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनते हैं तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं है. अब दिन समय नीतीश कुमार को तय करना है कि वो कब मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हैं. पर सवाल है कि जीतनराम मांझी को कब, कैसे और किन परिस्थियों में हटाया जाए. जीतनराम मांझी को हटाने के दो तरीके हैं, या तो उनसे प्रेम से समझाकर इस्तीफा लिया जाए या फिर उन्हें जबरदस्ती हटाया जाए. जबरदस्ती हटाने में पार्टी को नुकसान हो सकता है, क्योंकि जीतनराम मांझी को बचाने के लिए बीजेपी खड़ी है. वह इसलिए कि जब तक जीतनराम मांझी मुख्यमंत्री रहेंगे, बीजेपी को बिहार में इसका लाभ मिलता रहेगा. बीजेपी यह कभी नहीं चाहेगी कि जीतनराम मांझी की जगह नीतीश कुमार फिर से बिहार की सत्ता सम्भालें, क्योंकि नीतीश कुमार 'सुशासन' के लिए जाने जाते हैं. ऐसे में बीजेपी को बिहार में मुद्दे तलाशने में दिक्कत हो सकती है.
दूसरी तरफ जीतनराम मांझी प्रेम से बातचीत से इस्तीफा देने के लिए तैयार हो जाएंगे, यह कहना भी मुश्किल है, क्योंकि कई मंत्री और विधायकों को उनका मुख्यमंत्री बने रहना बहुत भा रहा है. इसलिए नहीं कि जीतनराम मांझी बिहार को आगे लेकर जा रहे हैं, बल्कि इसलिए कि जो आजादी उन्हें मांझी के रहते मिल रही है, वो नीतीश कुमार के कार्यकाल में नहीं मिलेगी. ऐसे में पार्टी को काफी सम्भलकर चाल चलने की जरूरत है.
हालांकि अधिकतर मंत्री और विधायक नीतीश कुमार के समर्थन में हैं. नीतीश कुमार अपने आवास पर रोज अलग-अलग क्षेत्रों के विधायकों और नेताओं की बैठक करते रहे हैं, ताकि उनका फीडबैक मिल सके. अधिकतर का कहना है कि जीतनराम मांझी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से जनता में गलत संदेश जा रहा है, विकास का काम ठप है और केवल बयानबाजी हो रही है.
नीतीश कुमार पर इन नेताओं की तरफ से भी फिर से बिहार की सत्ता सम्भालने के दबाव है. पार्टी के नेताओं का मानना है कि चुनाव में अब कुछ ही महीने बचे हैं, ऐसे में बिहार सरकार की गिरती साख और कानून-व्यवस्था की वजह से पार्टी को चुनाव में भारी नुकसान हो सकता है. अगर बीजेपी से मुकाबला करना है, तो सरकार को मजबूत नेतृत्व देना होगा और वो नीतीश कुमार के अलावा किसी में है नहीं.
नीतीश कुमार को भी पिछली गलतियों से सीख लेनी होगी. हालांकि वो अपने सम्पर्क यात्रा के दौरान मानते रहे हैं कि सरकार में रहते वे अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से दूर रहे, जिसकी वजह से उन्हें नुकसान हुआ. साथ ही उन्हें आस-पास के माहौल को भी बदलना होगा. बिहार में चुनाव होने में अभी 9 महीने हैं, लेकिन नीतीश कुमार के पास काम करने के लिए 6 महीने होंगे. इन 6 महीनों में उन्हें फिर से साबित करना होगा कि वे बिहार को किन ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं. गुड गवर्नेंस की मिसाल बनानी होगी, कानून-व्यवस्था दुरुस्त रखना होगा. ये तमाम चुनौतियां उनके सामने होंगी. सबसे बड़ी चुनौती तो विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने की होगी, जो कि बेहद मुश्किल काम है.