हमारे जीवन के लिए गंगा की सफाई से ज्यादा महत्वपूर्ण गंगा का अविरल बहाव है. अविरलता के बिना गंगा की निर्मलता संभव ही नहीं. इस सोच के विपरीत बनाये गये बांध विकास नहीं विनाश लेकर आये हैं खासकर बिहार, झारखंड के लिए. फरक्का बांध ने बिहार, झारखंड से बहती गंगा में इतना गाद जमा कर दिया है कि बाढ़ का दायरा, फ्लड लेवल और बर्बादी का ग्राफ काफी बढ़ गया है. केंद्र सरकार इस समस्या की ओर कोई ध्यान नहीं दे रही. अब समय आ गया है इन मुद्दों पर खुल कर बात करने का, इन्हें हल करने का. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस मुद्दे पर खासे आक्रामक नजर आये. गंगा में गाद की समस्या पर दिल्ली में सेमिनार कर रही बिहार सरकार ने समाधान सुझाने की गुहार विशेषज्ञों से की. शुक्रवार को ये सेमिनार खत्म होगा. इसकी सिफारिशें केंद्र सरकार को भी भेजी जाएंगी.
नीतीश कुमार ने कहा कि गंगा हमारे लिए राजनीतिक मुद्दा नहीं, ये सबका मुद्दा है और राष्ट्रीय मुद्दा है. गंगा की धारा, जल की गुणवत्ता और जलीय जीव जंतुओं की खतरनाक ढंग से लगातार घटती तादाद सबके लिए चिंता का विषय है. जैसे जंगल की सघनता बाघ से पता चलती है वैसे ही गंगा की स्वच्छता डॉल्फिन से पता चलती है. गंगा में घड़ियाल यानी गंगा डॉल्फिन और मीठे पानी में पलने वाली हिल्सा मछली की प्रजाति खतरे के कगार पर है. ऐसे में गंगा की निर्मलता और अविरलता के दावे पर मुग्ध होने वाली केंद्र सरकार गंगा में डॉल्फिन की गिनती और दशा का अध्ययन कराएं.
राष्ट्रीय वाटरवेज नीति की आलोचना करते हुए नीतीश ने कहा कि waterways की नीति पहले से ही गाद की समस्या से जूझ रही गंगा के लिए उपयुक्त नहीं. फरक्का बांध समस्या का एक हिस्सा है नाकि वही एकमात्र समस्या. फरक्का बांध का पानी निकासी लेवल 27 क्यूसेक का है जबकि मोकामा में 34 क्यूसेक का. ऐसे में फरक्का बांध के लिए पानी को जमा करना ही समस्या की जड़ है. पानी जमा होता है तो बहाव ठहर जाता है. रेत बालू तल में बैठ जाती है. फिर बांध के दरवाजे से पानी निकल जाता है और रेत रह जाती है. ये कई सौ किलोमीटर तक हो रहा है. तभी तो गंगा जब बक्सर से बिहार में दाखिल होती है तो वहां से पटना तक की 110 किलोमीटर की दूरी चार घंटे में तय कर लेती है. लेकिन भागलपुर से फरक्का तक की 175 किलोमीटर की दूरी तय करने में चार दिन लग जाते हैं. यानी बहाव लगभग ठहरा हुआ है. टिहरी और फरक्का बांधों के डिजाइन में भीषण खामी है. 42 साल में फरक्का की खामी का नतीजा बिहार भुगत रहा है. जल्दी ही टिहरी बांध की खामी का गंभीर नतीजा सामने आ जाएगा.
गंगा में माल ढुलाई और यात्री जहाज चलाने की योजना पर कुमार ने कहा कि इस पर अमल से पहले ईमानदारी से अध्ययन कराना जरूरी है. क्योंकि जब गंगा में पांच से दस मीटर की ड्रेजिंग यानी खुदाई कर नहरनुमा संरचना बनाई जाएगी तो रेत कहां जाएगी. हर साल बाढ़ में जमा होने वाली रेत का क्या होगा. इससे होने वाले नुकसान का भी आंकलन करना होगा. पर्यावरण और गंगा के जल जीवों पर इसके असर की समीक्षा भी करनी होगी. सिर्फ अंधाधुंध योजनाएं बनाने से नहीं होगा. दूसरी नदियों और गंगा के बीच स्वभाव का बहुत अंतर है. इसे दूसरी नदियों के समान ना बरता जाय.
सेमिनार के उद्घाटन सत्र में शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि गंगा की सफाई पैसा बहाने से नहीं बल्कि पानी बहाने से होगी. जनता का मौलिक अधिकार है कि गोमुख से चला गंगाजल सबको मिले. लेकिन बांधों की वजह से जल नहीं मिल पा रहा. इस गंभीर समस्या पर काशी में 24 से 26 अक्तूबर तक गंगा संसद होगी. इससे पहले गंगा किनारे के हरेक जिले में गंगा जागरण यात्रा निकाली जाएगी. संसद में समाज, सरकार और विशेषज्ञों के साथ विचार विमर्श किया जाएगा.
स्वामी जी ने कहा कि भाखड़ा और फरक्का जैसे इन बांधों को नेहरू ने आधुनिक भारत के मंदिर कहा था. उन्हीं पंडित नेहरू ने भाखड़ा को मोटापे की बीमारी भी कहा था. लिहाजा इन बांधों से हो रहे नुकसान, गंगा यमुना में सिल्ट यानी गाद की समस्या पर केंद्र सरकार गहन अध्ययन कराये और उसके मुताबिक उपाय खोजे जाएं.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि गंगा तो हमारे लिए दैवीय धरोहर है. आज भी सबसे ज्यादा लोगों को अपनी ओर खींचती है. दुनिया में पहला नंबर गंगा का है. लेकिन, हमने उसका सम्मान करने के बजाय उससे माल ढुलाने की तैयारी कर ली है. ये दुर्भाग्यपूर्ण है.