आपने दहेज में गाड़ी, मोटरसाइकिल या साइकिल मांगते तो सुना होगा लेकिन क्या कभी किसी को नाव मांगते सुना है. जी हां, है एक ऐसा स्थान, जहां पर लोग दहेज में नाव मांगते हैं और लेते देते भी हैं बडे चाव से. जिस तरह लोग गाड़ी रखते हैं उसी तरह वहां रसूख वाले नाव रखते हैं ताकि उनको आने जाने में कोई दिक्कत नहीं हो.
साल भर में करीब आठ महीने तक जल जमाव से घिरे रहने वाले दरभंगा जिले के पौराणिक महत्व के कुशेश्वरस्थान के लोगों की नियति में ईश्वर ने बाढ़ को स्थायी रूप से लिख दिया है. प्रसिद्ध कुशेश्वर महादेव मंदिर के कारण मिथिलांचल का बैद्यनाथधाम कहलाने वाले कुशेश्वरस्थान के लोगों ने अब अपनी भौगोलिक किस्मत को स्वीकार कर लिया है और चारों ओर जमा पानी के कारण छोटी नौकाएं यहां के लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गयी हैं. यही कारण है कि शादी विवाह में वर पक्ष वाले यहां दहेज में शगुन के तौर पर नाव मांगते हैं.
कोसी, कमला बलान एवं करेह नदी की गोद में बसे कुशेश्वरस्थान पूर्वी तथा पश्चिमी प्रखंड के बिसहरिया, दिनमो, अदहर, केवटगामा, मैसठ, तिलकेश्वर, उजवा सिमरटोका गांव के लोगों के साथ पानी का मानो जन्म जनमांतर का रिश्ता है.
साल भर परिवहन के योग्य पक्की सड़क के अभाव में स्थानीय लोगों ने नाव और बांस तथा लकड़ी से बने चचरी के पुलों को आवागमन का सहारा बना लिया है.
अदहर निवासी रमाकांत सहनी कहते हैं कि जल जमाव से लोगों का पुराना रिश्ता है. मानसून अपने शबाब पर पहुंचे या न पहुंचे, हमारे यहां पानी का रेला कभी थमता नहीं.
प्रखंड में बीते तीन साल से रेलवे की सहयोगी कंपनी इरकान पक्की सड़क के निर्माण की कोशिश में लगी है लेकिन स्थिति जस की तस है. यानि बेर चौक से बाबा कुशेश्वरस्थान मंदिर तक जिस सड़क के निर्माण की घोषणा कर प्रशासन ने कभी अपनी पीठ थपथपा ली, वह बनी ही नहीं. इन दोनों प्रखंडों के बिसहरिया, दिनमो, अदहर, केवटगामा, मैसठ, तिलकेश्वर, उजवा सिमरटोका के हजारों की आबादी के लिए बीते कई दशकों से पानी ही जन्म जनमांतर का साथी है. जन्म हो तो विधि विधान नाव पर, शादी ब्याह हो तो नाव ही आर पार लाती ले जाती है और मौत होने पर अंतिम यात्रा भी नाव पर ही होती है. पहले छोटी नौकाएं थीं. अब हालत सुधरी तो मोटरचालित नौकाएं भी आ गयी. यहां के युवाओं में मोटरसाइकिल से कुलांचे भरना अरमान भर रह जाता है. कभी पूरा नहीं हो पाता. शहर जाते हैं तो चरपहिया में सवारी करने का मौका मिलता है.
नाव चलाने से लोगों की रोजी रोटी की व्यवस्था हो जाती है. नहीं तो अधिकतर लोग रोजगार की तलाश में दिल्ली, मुंबई, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों की ओर पलायन कर जाते हैं, जिससे घरों में महिलाएं, बड़े बुजुर्ग और बच्चे ही बच जाते हैं.
दिनोमा निवासी 60 वर्षीय राममूरत बताते हैं कि इस जलप्लावित क्षेत्र में लोगों को कहीं बढ़िया भविष्य नजर नहीं आता तो रोजी रोटी के लिए बड़े शहरों की ओर पलायन करते हैं.
साल भर में अधिकतम समय पानी में डूबे होने के कारण उर्वर भूमि भी नष्ट हो जाती है. इसलिए जल जमाव के इलाकों में मछली पकड़ना और मखाने की खेती आय के प्रमुख आय स्रोत हैं लेकिन प्रसंस्करण की सुविधा नहीं है.
प्रखंड के 14 गांवों में फैले 7019 एकड़ भूभाग को पक्षी अभयारण्य का दर्जा भी दिया गया तो इसे ऐसा नहीं बनाया गया कि पर्यटन से लोगों की आय हो सके. प्रवासी पक्षियों से वातावरण गुलजार रहने वाले इस वातावरण को प्राथमिकता नहीं दी गयी है. यहां नेपाल, तिब्बत, भूटान, अफगानिस्तान, चीन, पाकिस्तान, मंगोलिया, साइबेरिया आदि देशों के पक्षी आते हैं. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के पुत्र लव-कुश में से युवराज कुश के नाम पर प्रसिद्ध इस क्षेत्र में कई मंदिर है जिन्हें जोड़कर पर्यटन सर्किट बनाया जा सकता है. लेकिन लगता है कि पौराणिक काल से यह इलाका उपेक्षित है.
इस क्षेत्र में जब चुनाव का समय आता है तो चुनावकर्मी जिला मुख्यालय से दो दिन पहले ही गांवों में जाकर कमान संभाल लेते हैं. ऐसी स्थिति में ही वोट पड़ते हैं यहां. भारत सरकार ने यहां के क्षेत्र को ‘आद्र्र भूमि’ में शामिल किया है और संरक्षित घोषित किया है.
छोटी छोटी बरसाती नदियों, चंवर इलाके के कारण सहरसा के सिमरी बख्तियारपुर तथा बेगूसराय जिले के कांवरझील के साथ मिलकर एक जलीय नेटवर्क बन जाता है.
तिलकेश्वर गांव निवासी संजय राम ने बताया कि नाव से ही लोगों को तिलकेश्वर से कुशेश्वरस्थान के लिए जाना पड़ता है. लेकिन नावों की संख्या यहां पर्याप्त नहीं है जिसका रुतबा बड़ा है वह निजी नाव रख लेता है तो उसे दिक्कत नहीं होती. लेकिन आम आदमी को उसी तरह कष्ट उठाना पडता है जैसे बड़े शहरों में बिना गाड़ी वाले को आने जाने की परेशानी झेलनी पड़ती है.