लापता बच्चों को ढूंढने की मुहिम के तहत सरकार हर साल लगभग ढाई करोड़ रुपए खर्च करती है. इसके बावजूद पिछले चार वर्षों में गायब हुए 60 हजार से अधिक बच्चों का अब तक कोई पता नहीं चल पाया है.
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के मुताबिक जनवरी 2012 से फरवरी 2016 के बीच गायब हुए बच्चों में से 64,943 बच्चों का आज तक पता नहीं चल पाया है. मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘विभिन्न राज्यों में कुल 1,94,213 बच्चों के लापता होने की रिपोर्ट मिली थी, जिनमें से 1,29,270 बच्चों को पुलिस ने बरामद कर लिया है.’
पश्चिम बंगाल से गायब हुए सबसे ज्यादा बच्चे
बच्चों के गायब होने के लिए अपहरण, मानव तस्करी, अवैध गोद लेना, प्राकृतिक आपदा और बच्चों का घर छोड़कर भागने की प्रवृत्ति को उत्तरदायी ठहराते हुए, अधिकारी ने कहा कि सबसे अधिक 44,095 बच्चों के लापता होने की रिपोर्ट पश्चिम बंगाल से आई, जिनमें से 36,055 को बाद में बरामद कर लिया गया. इसके बाद दूसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश रहा, जहां पर 26,008 बच्चे लापता हुए. इनमें से केवल 14,646 बच्चों को ही ढूंढा जा सका.
बच्चों की जानकारी के लिए मंत्रालय ने बनाए वेब पोर्टल
लापता और बरामद किए जाने वाले बच्चों के बारे में जानकारी देने के लिए मंत्रालय ने ‘ट्रैक चाइल्ड’ और ‘खोया-पाया’ नाम के वेब पोर्टल बनाए हैं. अधिकारी ने बताया, ‘मंत्रालय ने साल 2011-12 में ‘ट्रैक चाइल्ड’ पोर्टल शुरू किया, जबकि जून 2015 में ‘खोया-पाया’ पोर्टल चालू किया है.
तब से लगभग 3.11 करोड़ रुपए राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी केंद्र और अन्य को जारी किया गया है. ‘ट्रैक चाइल्ड’ के लिए समेकित बाल संरक्षण योजना के तहत हर साल ढाई करोड़ रुपए बजट दिए जाने का प्रावधान है.’