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नक्सल विरोधी अभियानों में सेना की तैनाती नहीं: सरकार

रक्षा मंत्रालय जहां नक्सलियों से निपटने के लिये सेना को तैनात करने के प्रति अनिच्छुक है, वहीं केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यह संकेत दिये हैं कि वह वाम विचाराधारा वाले चरमपंथ से निपटने की अपनी रणनीति पर नये सिरे से गौर करेगा.

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रक्षा मंत्रालय जहां नक्सलियों से निपटने के लिये सेना को तैनात करने के प्रति अनिच्छुक है, वहीं केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यह संकेत दिये हैं कि वह वाम विचाराधारा वाले चरमपंथ से निपटने की अपनी रणनीति पर नये सिरे से गौर करेगा.

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सुरक्षा मामलों पर कैबिनेट समिति (सीसीएस) की गुरुवार शाम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद इस तरह के संकेत मिले. बैठक में नक्सलियों से निपटने के लिये सेना की तैनाती करने को लेकर किसी तरह की आम सहमति पर नहीं पहुंचा जा सका. रक्षा मंत्रालय एकीकृत कमान के मुद्दे पर पूर्ण स्पष्टता चाहता है और समझा जाता है कि सेना ने सुझाव दिया है कि एकीकृत कमान की अध्यक्षता अभियान क्षेत्र का वरिष्ठतम सैन्य अधिकारी करे.

गृह मंत्रालय इस सुझाव को ठुकरा चुका है. सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि गृह मंत्रालय नक्सलियों की समस्या से निपटने के लिये पूर्व सैन्यकर्मियों की भर्ती भी कर सकता है. विशेषकर ऐसे पूर्व सैन्यकर्मियों की भर्ती की जा सकती है जिन्हें आईपीकेएफ के दौरान श्रीलंका में बारूदी सुरंगे हटाने के काम में तैनात किया गया था. माना जाता है कि लिट्टे ने ही माओवादियों को बारूदी सुरंगें बिछाने के काम में प्रशिक्षित किया है.

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अधिकारी ने कहा कि सेना की तैनाती नहीं होगी. अब ध्यान राज्य के पुलिस बलों पर केंद्रित किया जायेगा. सीसीएस की जल्द ही एक बैठक होगी जिसमें नक्सल विरोधी रणनीति को नये सिरे से तैयार करने पर चर्चा होगी. सीसीएस की बैठक में इस संबंध में ‘संकेत’ रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी की ओर से काफी स्पष्ट हो गये. अधिकारी ने कहा, ‘संकेत काफी स्पष्ट थे.

नक्सल विरोधी अभियानों के लिये सशस्त्र बलों का इस्तेमाल नहीं किया जायेगा क्योंकि उनके पास पहले से ही अपनी जिम्मेदारियां हैं. लेकिन हमें हमारे काम को मिलजुलकर अंजाम देना होगा अन्यथा अगले पांच वर्ष में माओवादी बड़ी समस्या, बड़ा खतरा बन जायेंगे.’ सीसीएस की अगली बैठक में पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के लिये आर्थिक सहायता बढ़ाने से जुड़े मंत्रियों के सुझावों पर चर्चा होगी. इसके अलावा, इसमें इस प्रस्ताव पर भी चर्चा होगी कि योजना आयोग और प्रभावित राज्यों की सरकारें चरमपंथ प्रभावित क्षेत्रों में विकास के लिये किस तरह मिलकर काम करेंगी.

अधिकारी ने रेखांकित किया कि मंत्रियों और अधिकारियों के बीच विचार विमर्श के बाद सीसीएस को एक अनुपूरक नोट भेजे जाने की संभावना है. उन्होंने कहा कि सीसीएस में इस तरह के सुझाव भी दिये गये कि माओवाद प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की एक बैठक भी आहूत की जाये ताकि अभियानों और विकास कार्यों के बारे में उनके सुझाव जाने जा सकें और यह पता लगाया जा सके कि प्रभावित राज्यों की सरकारें इस संबंध में क्या कर सकती हैं.

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