बीजेपी के तमाम अहम पदों से इस्तीफा देने वाले यशवंत सिन्हा ने कहा है कि वे पार्टी में ही रहकर इसे मजबूत करने का प्रयास करेंगे.
इस्तीफा से उतरा दिल का बोझ
'आज तक' के कार्यक्रम 'सीधी बात' के दौरान यशवंत सिन्हा ने जोर देकर कहा कि पार्टी छोड़ने का उनका कोई इरादा नहीं है. इस तरह की बातें बिलकुल बेबुनियाद हैं. साथ ही उन्होंने स्वीकार किया कि इस्तीफा देने के बाद उनके दिल से बोझ उतर गया है.
कार्यकर्ता बनकर करते रहेंगे काम
जब उनसे पार्टी नेतृत्व को विवादास्पद चिट्ठी लिखे जाने की बाबत सवाल किया गया, तो उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा, ''मैं किरानी हूं और किरानी ही रहूंगा.'' उन्होंने कहा कि उस चिट्टी में उन्होंने लिखा था कि वे सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत के तहत सभी अहम पदों से इस्तीफा दे रहे हैं और पार्टी के ऊंचे पदों पर बैठे लोग भी अपना इस्तीफा दे दें. उन्होंने कहा कि वे पार्टी कार्यकर्ता बनकर काम करना चाहते हैं.
'शायद मेरी औकात नहीं'
जब उनसे पूछा गया कि एक ओर बीजेपी ने उत्तराखंड में भुवन चंद खंडूरी को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया, दूसरी ओर उनका (यशवंत सिन्हा) इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया. ऐसा क्यों, इसके जवाब में यशवंत सिन्हा ने कहा, ''शायद हम कमजोर लोग हैं, शायद मेरी औकात नहीं हैं.'' साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इस्तीफा स्वीकार न होने पर उन्हें अफसोस होता.
भावुक होकर दिया इस्तीफा
सिन्हा ने कहा कि पार्टी में पद छोड़ने का उनका फैसला भावुकता के साथ लिया गया फैसला था, इसके पीछे कोई सोचा-समझा कारण नहीं था. यशवंत सिन्हा ने याद दिलाया कि उन्होंने आईएएस की नौकरी 12 साल शेष रहते छोड़ दी थी. वह भी भावना के आधार पर लिया गया फैसला था. उन्होंने कहा कि देश की राजनीति में ज्यादा-से-ज्यादा प्रोफेशनल लोग आएं, तो फायदा ही होगा. उन्होंने कहा कि भाजपा में कई प्रोफेशनल हैं.
'खुद कष्ट सहो, दूसरों को मत सताओ'
यशवंत सिन्हा ने स्वीकार किया कि विधानसभा चुनाव जीतने की तुलना में लोकसभा का चुनाव जीतना ज्यादा कठिन होता है. उन्होंने कहा कि वे गांधीजी के इस सिद्धांत में विश्वास रखते हैं कि खुद कष्ट सहो, पर अपने लिए दूसरों को कभी कष्ट न दो.