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कॉलेजियम प्रणाली में बदलाव की आवश्यकता नहीं: न्यायमूर्ति सदाशिवम

मनोनीत प्रधान न्यायाधीश पी. सदाशिवम ने कहा है कि उच्च अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित कॉलेजियम प्रणाली और संविधान में महाभियोग प्रावधानों में बदलाव की कोई आवश्यकता नहीं है.

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मनोनीत प्रधान न्यायाधीश पी. सदाशिवम ने कहा है कि उच्च अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित कॉलेजियम प्रणाली और संविधान में महाभियोग प्रावधानों में बदलाव की कोई आवश्यकता नहीं है.

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उन्होंने इस आलोचना को खारिज किया कि यह पारदर्शी नहीं है और सरकार की इसमें कोई भूमिका नहीं है. सदाशिवम ने कहा कि हालांकि, न्यायपालिका नियुक्ति की वर्तमान प्रणाली में सुधार के लिए कोई भी अच्छे सुझाव देने या कदम उठाने का स्वागत करती है.

सरकार की इस बात से सहमति जताते हुए कि सरकार उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का ‘चयन’ करने की स्थिति में नहीं है, उन्होंने कहा कि वह महसूस करते हैं कि प्रणाली को बदलने का एकमात्र रास्ता यह है कि सरकार इस संबंध में अपने दो महत्वपूर्ण फैसलों की समीक्षा करे या फिर संवैधानिक संशोधन करे.

न्यायमूर्ति सदाशिवम ने स्वीकार किया कि सरकार के अन्य अंगों की तरह न्यापालिका में भी भ्रष्टाचार है, लेकिन ‘यह न के बराबर है.’ संविधान के महाभियोग के प्रावधानों का मजबूती से बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि झूठी शिकायतों और हटाने के प्रयासों से उच्च अदालतों के न्यायाधीशों को मजबूत सुरक्षा दिए जाने की जरूरत है.

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आगामी 19 जुलाई को प्रधान न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण करने जा रहे न्यायमूर्ति सदाशिवम ने हालांकि, स्वीकार किया कि भ्रष्ट न्यायाधीशों को हटाने में आने वाली समस्या से निपटने के लिए अंदरूनी तंत्र में खामी है और इस प्रणाली में सुधार के लिए यह देखना जरूरी होगा कि व्यवस्था की सड़न मिटे.

उन्होंने कहा, ‘यह कहना सही नहीं है कि (न्यायाधीशों की नियुक्ति में) कोई पारदर्शिता नहीं है और सरकार की कोई भूमिका नहीं है.’ वह ऐसा कानून लाए लाने के लिए सरकार के कदमों के बारे में पूछे गए एक सवाल का जवाब दे रहे थे, जिससे उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के चयन और नियुक्तियों में कार्यपालिका का दखल रहेगा. उच्चतम न्यायालय ने 1993 में एक आदेश के जरिए नियुक्तियों में कॉलेजियम प्रणाली को आगे बढ़ा दिया था, जिससे सरकार को अलग रखा गया.

वर्तमान व्यवस्था के तहत उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के साथ सलाह मशविरा कर प्रत्याशित न्यायाधीशों के नामों की सिफारिश करते हैं.

सदाशिवम ने कहा कि प्रस्ताव प्रमाणन, जांच परख और टिप्पणियों के लिए केंद्र, मुख्यमंत्रियों, राज्यपालों और खुफिया एजेंसियों जैसे विभिन्न चैनलों से होकर गुजरता है.

उन्होंने कहा, ‘मुख्यमंत्री को टिप्पणी देनी होती है, राज्यपाल को अपना मत प्रकट करना होता है, केंद्र अपनी टिप्पणियां देता है और खुफिया ब्यूरो उम्मीदवारों की प्रामाणिकता, उनके राजनीतिक जुड़ाव, यदि कोई हो, उनके चरित्र को प्रमाणित करने का कार्य करता है.’ कॉलेजियम के बाहर के न्यायाधीशों, जानी मानी हस्तियों सहित स्वतंत्र लोगों से भी राय मांगी जाती है. न्यायमूर्ति ने कहा, ‘एकमात्र शिकायत यह है कि वे (सरकार) उम्मीदवारों का चयन नहीं कर सकते.’

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वर्तमान प्रणाली को उचित ठहराते हुए मनोनीत प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि कॉलेजियम (चयन मंडल) के सदस्य पद पर काफी अनुभव के बाद पहुंचते हैं. वे पदोन्नति के मामले में प्रत्याशित न्यायाधीशों के फैसलों को पढ़ते हैं तथा स्थिति की व्यक्तिगत जानकारी हासिल करने के लिए राज्यों के न्यायिक अभिकरण और बार से बात करते हैं.

उन्होंने कहा, ‘मैं उनकी (सरकार की) क्षमता को कम करके नहीं आंक रहा हूं, लेकिन (न्यायाधीशों की नियुक्ति में) हम बेहतर स्थिति में हैं.’ पीठों (जिनमें 1993 में दिवंगत न्यायमूर्ति जेएस वर्मा शामिल थे और एक बाद में 1998 की) द्वारा दिए गए फैसलों का उल्लेख करते हुए न्यायमूर्ति सदाशिवम ने कहा कि ये विषय पर मूल्यवान दस्तावेज हैं और उन्हें नजरअंदाज करना कठिन है.

उन्होंने कहा, ‘सिर्फ भगवान या बड़ी पीठ इन फैसलों को बदल सकती है. सरकार को फैसलों की समीक्षा करनी होगी या संविधान संशोधन लाना होगा.’
न्यायमूर्ति ने कहा कि हालांकि, ‘हम इसका (सरकार का) विरोध नहीं कर रहे हैं. यदि सरकार कुछ अच्छे कदम सुझाती है, हम इसे स्वीकार करने को तैयार हैं. उन्हें इसे कानून की जरूरत के हिसाब से करना होगा. हम अच्छे सुझावों को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं.’

न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उन्होंने कहा, ‘यदि हम राज्य के कार्यपालिका और विधायिका जैसे अन्य अंगों से न्यायपालिका की तुलना करते हैं तो यह न के बराबर है. न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतों से निपटने के लिए एक तंत्र है.’

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न्यायमूर्ति सदाशिवम ने कहा कि वह इस राय से सहमत नहीं हैं कि वर्तमान महाभियोग प्रावधान ज्यादातर न्यायपालिका के पक्ष में हैं. उन्होंने कहा, ‘न्यायाधीशों के जिम्मे कठिन कार्य होता है. उन्हें साधारण नौकरियों के लोगों की तरह नहीं हटाया जा सकता. उन्हें तुच्छ शिकायतों और कदमों से संवैधानिक सुरक्षा की आवश्यकता है.’ हालांकि, उन्होंने न्यापालिका के सदस्यों को एक सलाह दी.

उन्होंने कहा, ‘न्यायाधीशों को अपने संवैधानिक दायित्वों और नागरिकों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को लेकर सजग होना चाहिए. यदि कोई आचार संहिता का उल्लंघन करता है, तो उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय कार्रवाई कर सकते हैं.’

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