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'कोई ताकत मुझे प्रधानमंत्री बनने से नहीं रोक सकती'

मा...माया...मायावती. यह एक ऐसा मंत्र है, जो अपनी ध्‍वनी की तीव्रता व दुस्‍साहस में भारतीय राजनीति के हताशा भरे कोलाहल पर हावी नजर आता है. मायावती सत्‍ता के स्‍थापित ढांचे को झटका देने को तैयार हैं.

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मायावती
मायावती

प्रधानमंत्री पद के लिए यूएनपीए की उम्मीदवार के रूप में घोषित होने के बाद बसपा सर्वेसर्वा मायावती का आत्मविश्वास नई ऊंचाइयों को छू रहा है. आजतक पर सीधी बात में उन्होंने संपादक प्रभु चावला को बताया कि वे देश की प्रधानमंत्री बनकर रहेंगी. बातचीत के अंशः

आखिर दलित की बेटी भावी प्रधानमंत्री के रूप में.

दलित की बेटी होने के अलावा मैं भारत की भी बेटी हूं. मैंने सिर्फ दलितों के लिए ही नहीं बल्कि समाज के सभी वर्गों के लिए काम किया है. मैं भारत में पैदा हुई, तो मैं सिर्फ दलित की नहीं बल्कि हिंदुस्तान की भी बेटी हूं.

आपने कहा कि दलित की बेटी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए साजिश रची जा रही है.

उन्हें डर है कि यदि बसपा केंद्र में सरकार बनाती है और मायावती प्रधानमंत्री बनती है तो उन्हें केंद्र में सत्ता में लौटने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ेगा. इसलिए उन्हें लगा कि मुझे सत्ता में आने ही नहीं देना चाहिए.

तो वे आपको प्रधानमंत्री नहीं बनने देंगे?

यदि मैं उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन सकती हूं तो मेरा ख्याल है कि हमारे लोगों का सपना एक दिन जरूर पूरा होगा.

आपको यकीन है कि आपको कोई रोक नहीं सकता?

एक आंदोलन शुरू हो चुका है. अगर सर्व समाज मुझे वोट देता है तो कोई ताकत मुझे प्रधानमंत्री बनने से नहीं रोक सकती.

तब आपके प्रशासन का एजेंडा क्या होगा? निजीकरण और मनमोहन सिंह सरकार द्वारा शुरू किए आर्थिक सुधारों पर आपकी राय?
मेरी पार्टी निजीकरण के खिलाफ नहीं है. जैसा कि हमने उत्तर प्रदेश में किया, केंद्र में भी हम ख्याल रखेंगे कि देश की अनुसूचित जाति के लोग आरक्षण का फायदा उठाएं. जब किसी सरकारी उद्यम का निजीकरण होता है तो आरक्षण के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए, जैसाकि मैंने अपने राज्‍य में किया है.

रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश होना चाहिए?

छोटे दुकानदारों के हितों की रक्षा की जानी चाहिए.

परमाणु करार पर आपकी राय?

कांग्रेस का दावा है कि इस करार की बदौलत हमें सस्ती बिजली मिलेगी. यह गलत है. हमें जो भी बिजली मिलेगी, वह महंगी होगी और हमें 10-15 साल तक इंतजार करना पड़ेगा. अब हम जो पा रहे हैं, उससे सिर्फ 8-10 फीसदी अधिक मिलेगा. और यह इतनी महंगी होगी कि न तो गरीब, न ही छोटे उद्योग इससे फायदा उठा सकेंगे.

यदि आपके नेतृत्व में यूएनपीए सरकार सत्ता में आती है तो इसे रद्द कर देगी?

यदि मेरी सरकार केंद्र में बनती है तो हम निश्चित रूप से इस पर पुनर्विचार करेंगे.{mospagebreak}
आपके विरोधियों का दावा है कि आपकी राजनीति जाति आधारित है.
ऐसे बेबुनियाद बयान वे लोग ही दे रहे हैं, जो खुद जाति आधारित राजनीति में उलझे हैं.

क्या आपको लगता है कि चूंकि आप यूएनपीए नेता और प्रधानमंत्री पद की गंभीर दावेदार बन गई हैं इसलिए वे आपको नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं?

मैं बसपा की नेता हूं. यूएनपीए अलग है. वामपंथी अलग हैं, सबके अपने क्षेत्रीय नेता हैं.

सपा नेता मुलायम सिंह यादव उनकी पहली पसंद थे. उनकी तरह वे कभी आपको भी दगा दे सकते हैं.

यूएनपीए नेता पहले मुलायम के पास गए थे. और जैसाकि आपने कहा, वे मुझे भी छोड़ सकते हैं. लेकिन यूपीए और एनडीए में गठबंधन की कई साझीदार पार्टियां हैं, जो बसपा की ओर आकर्षित हैं. जब समय आएगा तब वे हमसे हाथ मिलाएंगी.

तो आप पार्टियां तोड़ने की कोशिश करेंगी?
मैं पार्टी तोड़ने के खिलाफ हूं, लेकिन जो खुद आना चाहे, उनका स्वागत है.

लेकिन गणित के मुताबिक प्रधानमंत्री बनने के लिए आपको कांग्रेस या भाजपा का सहारा चाहिए.

लोकसभा चुनाव में अभी कुछ महीने की देर है. मुझे यकीन है कि भाजपा और साथियों तथा कांग्रेस और उसके सहयोगियों को 200 से अधिक सीटें नहीं मिलेंगी. तो शेष 340 सीटें बचीं. मुझे बहुमत के लिए किसी के समर्थन की जरूरत नहीं पड़ेगी.

आतंकवाद में मौजूदा वृद्धि के क्या कारण हैं- अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण, कमजोर सरकार या सख्त कानूनों का अभाव?

आतंकवाद को राजनीति से नहीं जोड़ना चाहिए. राज्‍य और केंद्र सरकारों को साथ बैठकर इस पर काबू पाने की रणनीति अपनानी चाहिए. हां, हमारी सीमाएं कमजोर हैं, जिससे उन्हें मदद मिलती है. सीमा पर घुसपैठ रोकने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है और आतंकवाद विरोधी कड़े कानून बनाना राज्‍य सरकार की जिम्मेदारी है.

पोटा जैसे सख्त कानून?

जरूरी नहीं पोटा जैसे. लेकिन सख्त हों.

अफजल गुरु को फांसी दी जानी चाहिए?

इस पर फैसला लेना सरकार की जिम्मेदारी है. मैं प्रधानमंत्री बनी तो आतंकवादी घटनाएं नहीं होंगी.

लोग कहते हैं, आप तानाशाह हैं.
नहीं, मैं लोकतंत्र में यकीन रखती हूं और हर किसी की राय पर गौर करती हूं.

एक दलित की बेटी इतनी दौलत कैसे कमा सकती है और इतने मकानों की मालकिन कैसे बन सकती है?

सीबीआइ ने अदालत में हलफनामा दायर किया है, जो झूठा है. जब मेरे वकील मेरा केस पेश करेंगे तो सचाई सामने आएगी.{mospagebreak}
आप सोनिया गांधी के करीब थीं. आपके जन्मदिन पर बधाई देने भी वे आई थीं, फिर क्या हो गया?
मिलना, बधाई देना तथा राजनीति दो अलग बातें हैं.

अमर सिंह सहसा ही ताकतवर हो गए हैं और सरकार का रिमोट कंट्रोल उनके हाथ में है. आपको डर लगता है?
मैं नहीं डरती. लेकिन सरकार के लिए डरने की वजहें हैं क्योंकि जल्दी ही वे कुछ-न-कुछ चालाकी दिखाएंगे.
अपने चुनाव अभियान में आपने अमर सिंह और मुलायम सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे और कहा था कि सत्ता में आने के बाद

उन दोनों को जेल भेज देंगी. लेकिन अभी तक आपने कुछ नहीं किया, क्या आपने उन्हें माफ कर दिया?

नहीं, ऐसी बात नहीं है. उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले अदालत में चल रहे हैं तो मैं क्यों बीच में आऊं? ऐसे कमजोर लोगों से मैं क्यों डरूं?

अमर सिंह और मुलायम सिंह को नया जीवन मिला है, ये अधिक शक्तिशाली हो गए हैं.

मुझे नहीं लगता कि इन्हें नया जन्म मिला है. मेरे विचार से ये दोनों राजनीतिक दृष्टि से मृत और दफन हैं जिन्हें जनता ने जानलेवा धक्का दिया है, उन्हें क्या मारना?

लेकिन ये लोग मनमोहन सिंह के साथ नाश्ता और सोनिया के साथ लंच लेते हैं.

किसी के साथ भोजन करना ही सब कुछ नहीं है. जिस तरह  सरकार बचाई गई, उसकी भारी राजनैतिक कीमत चुकानी पड़ेगी.

आपके खिलाफ मामले खोले जा रहे हैं. आपको लगता है कि यह सरकार के नए दोस्तों का खेल है?

जब भी सीबीआइ या किसी अन्य एजेंसी के जरिए मुझ पर निशाना साधा गया, मैं ताकतवर बनकर ही उभरी हूं.

हाल ही में आपकी छवि में काफी बदलाव हुआ है. क्या यह प्रधानमंत्री बनने की तैयांरी का हिस्सा है?

मैंने कुछ नहीं किया है. यह सब स्वाभाविक रूप से हो गया. मेरा काम मुझे व्यस्त रखता है. और मेरा ख्याल है कि यह सबसे अच्छी वर्जिश है.

मैं आपसे कुछ रैपिड फायर सवाल पूछूंगा. आपके सबसे बड़े दुश्मन?

मैं भेदभाव, छूतछात और जातिवाद के खिलाफ हूं.

आपका सबसे बड़ा मित्र?

जिस दिन जाति के आधार पर बंटा समाज एक हो जाएगा.

प्रधानमंत्रियों में आपके पसंदीदा प्रधानमंत्री?

भारत में 14 प्रधानमंत्री हुए हैं, यदि मुझे लगता कि उनमें से कोई अच्छा था तो मुझे अपनी पार्टी बनाने की जरूरत ही न थी.

आज की राजनीति में किसी खलनायक का नाम लेना हो तो किसका लेंगी?

एक का नाम क्यों लूं? सभी खलनायक हैं.

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