ऐसा कौन होगा जिसने बचपन में दिवाली पर वो काली टिकिया ना जलाई हो जिससे ‘सांप’ निकलता है. आप इस सांप की टिकिया की हकीकत जानेंगे तो हैरान रह जाएंगे. इस एक छोटी सी टिकिया को जलाने से 465 सिगरेट के धुएं जैसा प्रदूषण होता है. पुणे स्थित चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन ने पटाखों से निकलने वाले धुएं और अन्य उत्सर्जन पर शोध किया तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए.
वैज्ञानिकों ने दिवाली पर छह सबसे ज्यादा प्रचलित पटाखों से निकलने वाले उत्सर्जन की गणना की और फिर इसकी तुलना सिगरेट से होने वाले नुकसान से की. सांप की टिकिया के अलावा 1000 पटाखे की लड़ी से 277 सिगरेट, पुल-पुल (हंटर) से 208 सिगरेट, फुलझड़ी से 68 सिगरेट, चकरी से 68 सिगरेट और अनार से 34 सिगरेट के धुएं जितना नुकसान होता है.
ये अध्ययन 2016 में पुणे यूनिवर्सिटी के इंटरडिसिप्लिनरी स्कूल ऑफ हेल्थ साइंसेज के सहयोग से किया गया. इऩ पटाखों से निकलने वाले कण (पार्टिकुलेट मैटर) सुरक्षित सीमा से 200 से 2000 गुणा अधिक हानिकारक माने गए.
चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन के डायरेक्टर डॉ संदीप साल्वी ने इंडिया टुडे को बताया, “फुलझ़ड़ी, पुल-पुल या सांप की टिकिया के मामले में इन्हें जलाने वाला इनके बहुत करीब होता है. अनार से 5000 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण होता है जबकि सुरक्षित सीमा 50 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है यानि 1000 गुणा अधिक प्रदूषण होता है.”
इंडिया टुडे ने डॉक्टरों और विशेषज्ञों से इस अध्ययन के निष्कर्षों को लेकर बात की. डॉक्टरों के मुताबिक, पटाखे चलाने से शरीर के अंगों को होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती. अपोलो हॉस्पिटल्स से जुड़े बाल रोग विशेषज्ञ डॉ अनुपम सिब्बल ने कहा, ‘पिछले साल दिवाली पर बहुत खराब स्थिति रही. बच्चे आंखों में खराश, खांसी, छींक की शिकायत लेकर आए. कुछ को तो सांस लेना ही भारी हो रहा था. बच्चों को ऐसी हालत में देखने से बड़ा कष्ट होता है.’
सुप्रीम कोर्ट पटाखों से होने वाले नुकसान के आकलन के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों पर निर्भर करता है. सुप्रीम कोर्ट में CPCB के वकील के मुताबिक अधिकतर खुदरा पटाखे बेचने वालों के पास वैध लाइसेंस भी नहीं होता.
CPCB के वकील विजय पंजवानी कहते हैं, दिल्ली में पटाखे बेचने के लिए 1000 से भी कम लाइसेंसधारी हैं. बाकी सभी अवैध रूप से पटाखे बेचते हैं, बता दें कि पटाखे बेचने के लिए इंडियन एक्सप्लोसिव्स एक्ट के तहत दिल्ली पुलिस से लाइसेंस लेना जरूरी होता है. पटाखा जलाने को बेशक बच्चों का खेल माना जाता हो लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि आपका सामना बहुत खतरनाक जहरीले रसायन से होता है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कई तरह की बहस देखी जा रही है. विशेषज्ञों का आरोप है कि CPCB ने पटाखों से वायु में छोड़े जा सकने वाले रसायनों और विषैले तत्वों की सुरक्षित मात्रा को लेकर कोई मानक या सीमा तय नहीं की हैं. इसका सीधा अर्थ है कि इतने वर्षों से पटाखा उद्योग को प्रदूषण की मनमानी छूट मिली हुई थी.