करोड़ों की संपत्ति के मामले में फंसे नोएडा अथॉरिटी के पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह के बारे में रोज नए खुलासे हो रहे हैं. 'नैतिकता' के बाद अब उनकी शैक्षिक योग्यता की पोल-पट्टी भी खुल गई है. खबरों के मुताबिक, अपने करियर के लंबे समय तक यादव के पास इंजीनियरिंग की डिग्री तक नहीं थी. नोएडा का सफेदपोश इंजीनियर
यादव सिंह ने 1980 में बतौर जूनियर इंजीनियर नोएडा अथॉरिटी जॉइन की थी. 1985 में उन्हें प्रमोट करके प्रोजेक्ट इंजीनियर बना दिया गया. 1995 तक वह इसी पद पर रहे, लेकिन करियर के 15 साल बीतने तक उनके पास इंजीनियरिंग की डिग्री तक नहीं थी. अंग्रेजी अखबार 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' ने यह खबर दी है.
प्रमोशन के लिए नियमों को ताक पर रखा गया!
1995 में यादव सिंह को एक और प्रमोशन दिया गया, इस शर्त के साथ कि वह अगले तीन साल में डिग्री हासिल कर लेंगे. निश्चित समयसीमा में यादव ने यह शर्त पूरी कर ली, लेकिन प्रमोशन से उस वक्त कई लोगों को हैरानी हुई. पहली वजह, उनके पास डिग्री नहीं थी और दूसरी, उन्होंने 20 असिस्टेंट प्रोजेक्ट इंजीनियरों को सस्पेंड कर दिया था जो उत्तर प्रदेश की नौकरशाही में असामान्य घटना थी.
नोएडा अथॉरिटी के नियमों के मुताबिक, जूनियर इंजीनियर (जेई) से किसी शख्स को तभी असिस्टेंट प्रोजेक्ट मैनेजर बनाया जा सकता है, जब उसके पास बतौर जेई कम से कम 15 साल का अनुभव हो. जबकि पीई के रूप में प्रमोट होने के लिए इंजीनियरिंग की डिग्री अनिवार्य है. लेकिन यादव सिंह के मामले में इन नियमों को ताक पर रखा गया.
अथॉरिटी में वापसी के लिए दिया गया चंदा
वहीं, सोमवार को यादव सिंह का पहला लॉकर खोला गया तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. एक प्रमुख अखबार ने आयकर विभाग के सूत्रों के हवाले से लिखा है कि 2013 में यादव सिंह की अथॉरिटी में वापसी के लिए कुछ अधिकारियों, इंजीनियरों और ठेकेदारों ने चंदा दिया था. लॉकर से इन लोगों की लिस्ट और चंदे का ब्योरा मिला है. यह लॉकर दिल्ली के पंजाब नेशनल बैंक का है.
बहाली के लिए दी रकम करोड़ों में थी. इससे लखनऊ के कुछ आईएएस अधिकारियों से लेकर नोएडा तक के अधिकारियों और बिल्डरों में हड़कंप मचा हुआ है. लॉकर से शेयरों में निवेश की डिटेल्स, बोगस कंपनियों के दस्तावेज, 40 कंपनियों के रिकॉर्ड भी मिले हैं. शुक्रवार को यादव सिंह के 13 लॉकर नई दिल्ली, गाजियाबाद व नोएडा में सील किए गए थे.