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कानून मंत्री की सफाई- बदले की भावना से नहीं रोकी जस्टिस जोसेफ की नियुक्ति

सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में जस्टिस जोसेफ की नियुक्ति को रोकने के फैसले संबंधित सवालों पर प्रसाद ने कहा, सरकार के खिलाफ 'प्रायोजित आरोप' लगाए जा रहे हैं. आम तौर पर और विशेष रूप से कांग्रेस, सरकार पर आरोप लगा रही है कि उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन संबंधी जोसेफ के फैसले को लेकर उनकी नियुक्ति को रोका गया.

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रविशंकर प्रसाद
रविशंकर प्रसाद

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कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस बात से इंकार किया है कि जस्टिस के.एम. जोसेफ की फाइल सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम के पास पुनर्विचार के लिए भेजने की केंद्र सरकार की कार्रवाई में उनके द्वारा उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन को रद्द करने के आदेश से कुछ लेना देना है.

आरोप को बताया प्रायोजित

सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में जस्टिस जोसेफ की नियुक्ति को रोकने के फैसले से संबंधित सवालों पर प्रसाद ने कहा, सरकार के खिलाफ 'प्रायोजित आरोप' लगाए जा रहे हैं. आम तौर पर और विशेष रूप से कांग्रेस, सरकार पर आरोप लगा रही है कि उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन संबंधी जोसेफ के फैसले को लेकर उनकी नियुक्ति को रोका गया.

केंद्र के फैसले के पक्ष में दलील

प्रसाद ने कहा, वह पूरे अधिकार के साथ इस बात से इंकार करते हैं कि इसका जस्टिस जोसेफ के फैसले से कोई लेना-देना है. उन्होंने कहा कि अपने रुख का समर्थन करने के लिए उनके पास दो "स्पष्ट कारण" हैं. पहला, उत्तराखंड में तीन-चौथाई बहुमत से बीजेपी की अगुवाई में सरकार बनी है. दूसरा, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जे. एस. खेहर ने आदेश की पुष्टि की थी.

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प्रसाद ने कहा, "न्यायमूर्ति खेहर ने ही सरकार की राष्ट्रीय न्यायिक आयोग की पहल खारिज कर दी थी." सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम ने प्रख्यात अधिवक्ता इंदु मल्होत्रा के साथ-साथ उत्तराखंड हाईकोर्ट के वर्तमान मुख्य जज न्यायमूर्ति जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर प्रोन्नति प्रदान करने के लिए उनके नाम की सिफारिश की. सरकार ने मल्होत्रा के नाम पर मंजूरी प्रदान की, लेकिन जस्टिस जोसेफ की फाइल कॉलेजियम के पास पुनर्विचार के लिए वापस कर दी गई, जिसकी विधिक समुदाय और विपक्ष ने आलोचना की.

बता दें कि उत्तराखंड में 2016 में विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री हरीश रावत की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार को बर्खास्त कर केंद्र सरकार की ओर से प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को जस्टिस जोसेफ की अध्यक्षता वाली पीठ ने निरस्त कर दिया था. हाईकोर्ट के इस फैसले से मोदी सरकार की काफी छीछालेदार हुई थी.

सरकार ने जोसेफ के नाम पर आपत्ति जताते हुए कहा कि उनसे 41 न्यायाधीश पूरे भारत में वरीयता क्रम में आगे हैं और जस्टिस जोसेफ को प्रोन्नति प्रदान करने से सर्वोच्च न्यायालय में क्षेत्रीय संतुलन बिगड़ेगा. साथ ही सरकार ने कॉलेजियम को किसी दलित न्यायाधीश को शीर्ष अदालत में नियुक्त करने पर विचार करना चाहिए. कॉलेजियम ने बुधवार की शाम सरकार के दृष्किोण पर विचार-विमर्श किया, लेकिन अपना फैसला स्थगित रखा.

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इसलिए जारी है विवाद

गौरतलब है कि सरकारें आम तौर पर कोलेजियम के फैसलों को मानती रही हैं, लेकिन इस बार मोदी सरकार ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जोसफ़ को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनाने की कोलेजियम की सिफ़ारिश को दोबारा विचार करने की बात कहते हुए लौटा दिया है. जिसके बाद से यह विवाद खड़ा हो गया है.

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