अब जेल में रहकर चुनाव लड़ने की बातें इतिहास बन जाएंगी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में ये साफ कर दिया है कि कानूनी तौर पर न्यायिक हिरासत में जाते ही बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकार यानी वोट देने के अधिकार के साथ चुनाव के लिए नामांकन का पर्चा दाखिल करने तक का अधिकार भी नहीं होगा.
कानून के मुताबिक अब तक जेल जाने के साथ ही किसी भी नागरिक का वोट डालने का अधिकार तब तक खत्म रहता था, जब तक वो जमानत पर या बरी होकर रिहा ना हो जाए लेकिन जेल में रहकर चुनाव लड़ने पर कोई पाबंदी नहीं थी. लिहाजा नेता दबंगई के साथ चुनाव लड़ते थे लेकिन एक एनजीओ जनचौकीदार की याचिका पर पटना हाईकोर्ट ने ये फैसला सुनाया था कि किसी भी आरोप में न्यायिक हिरासत यानी जेल जाते ही वोट के साथ-साथ किसी भी चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेने का हक अपने आप स्थगित हो जाएगा.
इसी आदेश से ठीक पहले जस्टिस एके पटनायक और जस्टिस सुधांशु ज्योति मुखोपाध्याय की पीठ ने फैसला सुनाया था कि किसी भी जनप्रतिनिधि के दो या इससे ज्यादा अवधि की कैद की सजा सुनाये जाने के साथ ही उसकी सदस्यता फौरन रद्द हो जाएगी. उसकी सीट खाली मानी जाएगी और चुनाव आयोग जब चाहे वहां फिर से चुनाव करा सकेगा लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर कानून के जानकारों की उंगलियां उठना शुरू हो गई हैं.