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अब उर्वरक मंत्रालय में घोटाला, डीएमके मंत्री घिरे

डीएमके नेता ए राजा के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम शर्मसार करने के लिए कैबिनेट के एक और मंत्री तैयार हैं. हेडलाइन्‍स टुडे की विशेष जांच से सामने आया है कि खाद और रसायन मंत्री एम के अलागिरी ने अपने मंत्रालय द्वारा एक विवादित निर्णय की श्रृंख्‍ाला को नजरअंदाज किया है.

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एम के अलागिरी
एम के अलागिरी

डीएमके नेता ए राजा के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम शर्मसार करने के लिए कैबिनेट के एक और मंत्री तैयार हैं. हेडलाइन्‍स टुडे की विशेष जांच से सामने आया है कि खाद और रसायन मंत्री एम के अलागिरी ने अपने मंत्रालय द्वारा एक विवादित निर्णय की श्रृंख्‍ाला को नजरअंदाज किया है. इससे सरकारी खजाने को भी भारी नुकसान पहुंचा है. मंत्रालय में निचले स्‍तर के मंत्री इन गलतियों को करते गए लेकिन इनके बॉस ने इसे मानने से इंकार कर दिया.

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क्‍यों सब्सिडी और कीमतें लगातार बढ़ रही हैं?
हेडलाइंस टुडे की जांच से यह भी सामने आया कि अलागिरी ने अपने मंत्रालय में किसानों की कीमतों पर निजी कंपनियों को अप्रत्‍याशित लाभ की अनुमति दी थी. उच्‍चाधिकारी और निर्माता मिलकर उर्वरकों के लिए बाजार की कीमत सुनिश्चित करते हैं जो कि आम किसानों की पहुंच के बाहर होती है. यूपीए 2 के दौर में उर्वरक सब्‍ि‍सडी बिल में 10 गुणा वृद्धि देखी गई. लेकिन उर्वरक को किसानों को बेचे जाने की कीमतों को बहुत अधिक बढ़ाया गया. महंगा होने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में अब उर्वरक का संकट उत्‍पन्‍न हो गया है.

जूनियर मंत्री की आपत्तियां
उर्वरक क्षेत्र में चल रही गड़बडि़यों को एम के अलागिरी तक एक जूनियर मंत्री श्रीकांत जेना ने पहुंचाई. यही नहीं श्रीकांत ने अलागिरी तक ये बात लिखित रूप से भेजी. मार्च से अगस्‍त 2012 के बीच ऐसे ही एक लिखित पत्र में कहा गया, 'कंपनी ने बहुत अधिक मुनाफा कमाया है और इसका नेतृत्‍व मंत्रालय के अंदर से हुआ है.' जेना लगातार अपने पत्रों से अलगिरी को इन गड़बडि़यों से अवगत कराते रहे लेकिन अलगिरी लगातार इन्‍हें नजरअंदाज करते गए. अलागिरी ने कभी इन घोटालों को रोकने के लिए कोई महत्‍वपूर्ण कदम नहीं उठाए.

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17 जुलाई 2012 में जेना ने लिखा, 'सरकार किसानों के हित के लिए सब्सिडी पास करती है जिससे खुदरा कीमत उचित स्‍तर पर बनी रहे. लेकिन निजी कंपनी अपने मुताबिक किसानों के लिए कीमतें तय कर रही हैं और अनुचित लाभ उठा रही है. ऐसे में सब्सिडी का कोई अर्थ नहीं रह जाता है. इसी नोट में जेना ने यह जानकारी दी कि उर्वरक कंपनी किसनों के लिए जारी होने वाले कुल सब्सिडी का एक तिहाई हिस्‍सा अपने पास रखती है. जेना ने अपने इस बात के पुख्‍ता सबूत भी पेश्‍ा किए.

3 अगस्‍त 2012 जेना ने फिर एक पत्र लिखा, 'कंपनियां उर्वरकों को उच्‍च कीमतों में बेचकर बहुत अधिक मुनाफा कमा रही है.' उन्‍होंने फिर वही जानकारी दी कि डीएपी के प्रति मेट्रिक टोन में चार से पांच हजार रुपयों का सब्‍िसडी और कॉम्‍प्‍लेक्‍स उर्वरक पर छह हजार रुपयों की सब्सिडी निजी कंपनियों के पास जा रहा है. जेना ने इन कंपनियों के अकाउंट के जांच की भी मांग की. जेना ने बताया कि विभाग को तत्‍काल सुधारात्‍मक कार्रवाई करनी चाहिए थी लेकिन अलगिरी की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया.

अब सवाल यह उठता है कि डीएमके नेता को इन कं‍पनियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए कौन सी बात रोक रही थी? क्‍या मंत्रालय के बिना मदद के कंपनियों का यह मुनाफा कमाने का काम चल पाता? जेना के पत्रों की श्रृंखला का अलागिरी पर कोई असर नहीं हुआ और इस मुद्दे पर उन्‍होंने कोई उचित कार्रवाई नहीं की. जहां आम लोगों के टैक्‍स के पैसे से हाईवे और किसानों बांध बनाए जाते हैं, वहीं कुछ किसान उर्वरकों की बढ़ती कीमतों के कारण आत्‍महत्‍या भी कर लेते हैं. जेना ने वर्ष 2012 की शुरुआत में अधिकारियों द्वारा पारित कुछ ऑर्डर का खुलासा भी अलगिरी के सामने किया था. इसमें मंत्रालय की निजी कंपनियों के साथ सांठ-गांठ साफ उजागर हो रही थी लेकिन इसके बावजूद अलागिरी ने चुप्‍पी साधे रखी.

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कई कंपनी अधिक सब्सिडी लेने के लिए उर्वरक को बाजार में बेवक्‍त उतार देती थी. एक बार उर्वरक बाजार में आ जाता तो कंपनी दोबारा सब्सिडी लेने के लिए तैयार हो जाती. जेना ने इस बात की जानकारी भी विभाग को दी कि कंपनी इस योजना के तहत अधिक सब्सिडी लेने का जुगाड़ कर रही है जिसे अनुमति नहीं मिलनी चाहिए. लेकिन इसका विभाग पर कोई असर नहीं हुआ और दोबार ऑर्डर पारित कर दिए गए.

19 मार्च के लिखे पत्र में जेना ने जानकारी दी कि 'उर्वरक इंडस्‍ट्री खेती के सही समय पर किसानों को उर्वरक उपलब्‍ध नहीं करवा पा रही है. समय से पहले ही उर्वरक की काला बाजारी हो जाती है जिससे किसानों पर बोझ बढ़ रहा है और सरकार का नुकसान हो रहा है.' इस बार भी जेना की कोशिशें बेकार गईं और पूरे मामले पर कोई उचित कार्रवाई नहीं की गई.

जूनियर मंत्री के मुताबिक, वर्ष 2011-12 में जिस समय उर्वरक की जरूरत नहीं है तब उसकी खपत से सरकार ने अधिक सब्सिडी दरों का दावा किया.

विपक्ष वैसे भी अलगिरी को अनुपस्थित मंत्री के रूप में लेती है. अलागिरी पर यह आरोप है कि वह कभी कैबिनेट की बैठकों में भाग नहीं लेते और ना ही मंत्रालय के महत्‍वपूर्ण कार्यों में हिस्‍सा लेते हैं.
हेडलाइंस टुडे की विशेष जांच से यह दिखता है कि अलागिरी मंत्रालय को अपनी जागीर के हिसाब से चला रहे हैं.

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