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अब पार्टी में क्‍या होगी आडवाणी की भूमिका?

लाल कृष्‍ण आडवाणी इस्तीफा वापस लेने पर राजी हो गए हैं. अब सवाल उनकी भूमिका का है. बीजेपी ने तो अपनी राह चुन ली है. पार्टी को मोदी में अपना लीडर नजर आने लगा है. ऐसे में अब पार्टी के लिए क्या करेंगे आडवाणी? क्या वो पीएम पद का मोह छोड़ मार्ग दर्शक की भूमिका निभाएंगे?

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लाल कृष्‍ण आडवाणी
लाल कृष्‍ण आडवाणी

भारतीय जनता पार्टी के लौहपुरुष का दिल पिघल चुका है. लाल कृष्‍ण आडवाणी इस्तीफा वापस लेने पर राजी हो गए हैं. अब सवाल उनकी भूमिका का है. बीजेपी ने तो अपनी राह चुन ली है. पार्टी को मोदी में अपना लीडर नजर आने लगा है. ऐसे में अब पार्टी के लिए क्या करेंगे आडवाणी? क्या वो पीएम पद का मोह छोड़ मार्गदर्शक की भूमिका निभाएंगे?

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जिस कदर आडवाणी के नरम पड़ने की खबर आई है उससे भी कई सवाल उठे हैं? क्या उन्हें सचमुच पार्टी की छवि की चिंता होने लगी थी? या फिर वो समझ गए थे कि संघ के दबाव के बाद मोदी पर पार्टी के लिए यू टर्न अब मुमकिन नहीं? या फिर उन्हें सियासत में गुमनाम होने का डर सताने लगा था? या फिर पार्टी और आडवाणी के बीच कुछ और बीच का रास्ता निकल आया, जिसमें पद और सम्मान दोनो की गुंजाइश हो.

आडवाणी के नरम पड़ने के संकेत दोपहर में ही मिलने शुरु हो गए थे. पार्टी नेताओं का उत्साह बता रहा था कि अब सब ठीक हो जाएगा. सोमवार को सुबह 11 बजे आडवाणी ने पार्टी के तमाम पदों से अपना इस्तीफा भेजकर बीजेपी में हड़कंप मचा दिया था. इस्तीफा मिलते ही पार्टी अध्यक्ष समेत तमाम कद्दावर चेहरों का आडवाणी की चौखट पर हाजरी लगाने का सिलसिला शुरू हो गया था. सभी नेता पार्टी के आडवाणी विहीन होने की पीड़ा जताने की कोशिश करते नजर आए.

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एक तरफ मान-मनौव्‍वल हो रही थी और दूसरी तरफ पार्टी अपने फैसले से समझौते को तैयार नहीं थी. संघ के दबाव में मोदी के मुद्दे पर यू टर्न की गुंजाइश खत्म हो चुकी थी. पार्टी अध्यक्ष ने भी साफ कर दिया था कि मोदी को तो खुद आडवाणी ने आशीर्वाद दिया है, और उन्हें चुनाव समिति की कमान सबकी सहमति से सौंपा गया है फिर इस फैसले पर वापस जाने की गुंजाइश कहां.

दूसरी तरफ आडवाणी की नाराजगी के केंद्र बने मोदी अपने काम में व्यस्त थे. उन्होंने आडवाणी को मनाने की औपचारिकता सोमवार को फोन पर कर ली थी. मंगलवार दिन में किसानों की सभा को संबोधित करते हुए वो अपने नैशनल एजेंडे में जुटे रहे. वहां जब आडवाणी से जुड़े सवाल भी दागे गए तो उन्होंने अनसुना कर दिया. शायद पार्टी की ओर से मिल रहे ये तमाम संकेत काफी थे आडवाणी को ये समझाने के लिए कि अब बीजेपी का सियासी युग बदल रहा है.

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