अनिल कुंबले ने बेशक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया है लेकिन गेंदबाजी उनके लिए मिशन की तरह रही है. देश के सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज कुंबले से इंडिया टुडे के स्पोर्ट्स एडीटर शारदा उगरा ने बातचीत की, पेश हैं प्रमुख अंशः
आपका कंधा कैसा और क्या महसूस कर रहा है? बेशक उसे गेंदबाजी की कमी खलेगी, लेकिन वास्तव में आपको किस चीज की कमी महसूस हो रही है? इसके बजाए अब आप किस चीज का इंतजार कर रहे हैं? क्या सुबह आपको जिम की कमी खलेगी?
मैं सोचता हूं कि कंधा आराम महसूस कर रहा है! और मेरी उंगली के टांके खुल जाने के बाद संभवतः मैं जिम में वापस लौटूंगा, सिर्फ खुद को फिट रखने के लिए. बेशक, मुझे टीम, ड्रेसिंग रूम, टेस्ट मैच और इसी तरह की तमाम चीजों की कमी खलेगी. लेकिन मुझे आगे की ओर देखना है और इसके लिए यही ठीक समय है. मेरे लिए अब जिंदगी शुरू होगी. मैं कुछ समय आराम करना चाहता हूं और विचार करना चाहता हूं. मैं खुश हूं कि मुझे अब घर पर रहना है और रोजमर्रा की चीजें करनी है, मसलन बच्चों को स्कूल छोड़ना, उन्हें वापस लाना.... मैं फोटोग्राफर की अपनी काबिलियत को निखारना चाहता हूं, अभी तो यह सिर्फ शौक है लेकिन अब मैं इसके बारे में कुछ और सीखना चाहता हूं... देखिए मैं क्या कर पाता हूं. यदि मैं कुछ अच्छी तस्वीरें इकट्ठा कर सका तब मैं संभवतः एक प्रदर्शनी लगाऊंगा ताकि उसके जरिए सामाजिक कार्य के लिए धन इकट्ठा कर सकूं.
अतीत के फिरकी गेंदबाजों -टेस्ट और एकदिवसीय दोनों के मिलाकर-की तुलना में आप पर कहीं ज्यादा दबाव था. आक्रमण के लिए कप्तान पूरी तरह से आप पर निर्भर रहते थे. इस तरह के तमाम कारकों का आपकी गेंदबाजी पर क्या असर पड़ा?
इससे फर्क नहीं पड़ा, मुझे हमेशा विकेट की तलाश रहती थी. फिर चाहे मैं कसावट के लिए गेंदबाजी करता था या जल्दी विकेट लेने के लिए, मेरे दिमाग में सिर्फ एक ही बात होती थी कि मुझे विकेट लेना है. इसमें कुछ भी नहीं बदला, मैंने कभी औसत की ओर नहीं देखा, मैंने कभी यह नहीं सोचा कि आज मैंने एक भी विकेट नहीं लिया या पहले दिन ही मुझे 30 ओवर क्यों करने चाहिए, यह तो तेज गेंदबाजों का काम है... जब कभी कप्तान ने मुझे गेंद थमाई मैंने गेंदबाजी की. मेरे लिए यह विकेट लेने का अवसर होता था. यदि किसी तरह की मुश्किल होती थी तब मैं कप्तान के पास जाता था और उससे कहता था, मुझे गेंद दो ''मैं तुम्हारे लिए विकेट लेने की कोशिश करूंगा.''
क्रिकेट में आपके लिए सबसे मुश्किल वर्ष कौन से थेः टीम में शामिल होना और खुद को साबित करना? वर्ष 2000 में सर्जरी के बाद वापसी का दौर या फिर हाल के कुछ वर्ष जिसमें आपको अपने शरीर को चुस्त रखने का प्रयास करना पड़ा?
दरअसल विभिन्न चरणों में ये सभी. सबसे पहली बार खेलते समय मुझे यकीन था कि मैं भी वहां जा सकता हूं और मैच जीत सकता हूं लेकिन जब लोगों ने पहली बार मुझे देखा तो लगा कि उन्हें मुझ पर भरोसा नहीं है. मैंने तय किया कि मुझे साबित करना पड़ेगा ताकि वे कह सकें कि वे मुझ पर गौर कर सकते हैं. 03-04 की ऑस्ट्रेलिया श्रृंखला से ठीक पहले का दौर भी चुनौतीपूर्ण था. क्योंकि लोग सोच रहे थे कि मेरी पारी खत्म हो चुकी. ऑस्ट्रेलिया दौरे के बाद के छह-सात महीने भी शरीर को चुस्त रखने के लिहाज से काफी मुश्किल थे. मैं अंदाजा लगा सकता हूं कि भाग्य मेरे साथ नहीं है, मुझे किसी तरह का अफसोस नहीं है, संभवतः इसलिए क्योंकि मैं कठोर प्रशिक्षण से गुजरा हूं, जैसी मेहनत मैंने कभी एनसीए में पॉल चैपमैन के साथ की थी. मैंने खुद को मजबूत बनाने के लिए जिम में काफी मेहनत की है.
{mospagebreak}मुझे अपनी चोटों से उबरने के लिए काफी वक्त देना पड़ा, खुद को चुस्त रखने के लिए यह जरूरी है खास तौर से तब जब आपकी उम्र बढ़ रही हो. मेरे संन्यास लेने के पीछे सिर्फ उंगली की चोट ही मुख्य कारण नहीं थी लेकिन यह एक ऐसा कारक था जिसने मेरे फैसले को मजबूती दी. उंगली की वजह से मैं नागपुर में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट के लिए तैयार नहीं था. इसके एक महीने बाद ही इंग्लैंड की टीम एक महीने के दौरे पर आ रही है. मैंने सोचा कि इस पूरे दौर में मुझे चुस्त रहना होगा और खुद को तैयार रखना होगा. मैंने कहा, इसे भूल जाओ. मुझे कोई अफसोस नहीं.
वर्ष 2002 में त्रिनिदाद में अंतिम 11 में आपकी जगह हरभजन सिंह को जगह दी गई थी. क्या वह आपके कॅरिअर का न्यूनतम बिंदु था? आखिर आप इससे कैसे उबरे?
बेशक, मैंने ऐसा सोचा था. क्योंकि टॉस से पहले तक मुझे बताया गया था कि मैं खेल रहा हूं. मैंने पिछला मैच खेला था और हरभजन फिट नहीं थे. त्रिनिदाद के लिए वे फिट हो गए लेकिन मुझे ही खेलाने का फैसला किया गया. जॉन ( राइट, कोच) मेरे पास आए और उन्होंने मुझसे कहा कि तुम खेल रहे हो. इसके बाद सौरव टॉस के लिए चले गए, वहां कुछ बातचीत हुई और फिर मुझे बाहर कर दिया गया. मैं जानता हूं कि कप्तान के रूप में आपको अपनी पसंद तय करनी पड़ती है और अक्सर यह आसान नहीं होता. लेकिन मुझे लगता है कि यह बात मुझे अच्छे तरीके से बताई जा सकती थी. मैंने सौरव से कहा भी कि वे खुद आकर मुझसे यह बात कहते तो यह कहीं अधिक आसान होता. बाद में उन्होंने मुझसे कहा भी कि यह मुश्किल फैसला था.
हमने वह टेस्ट जीता और उसके बाद के मैच में भी मैंने नहीं खेला. इसके बाद एंटीगुआ हुआ और मैं सोचता हूं कि मेरी सारी भावनाएं बाहर निकल आईं. मैंने इसके पहले के मैच नहीं खेले थे और घर वापसी पर मेरे लिए यह मुश्किल दौर साबित होता. व्यक्तिगत तौर पर मैं बुरे दौर से गुजर रहा था, इसलिए जब मेरा जबड़ा टूटा, तब संभवतः मेरी भावनाएं बाहर आ गई. हो सकता है खुद को सही कहने का यह मेरा तरीका था कि मैं अब भी गेंद कर सकता हूं. इसके अलावा हमने पहले बल्लेबाजी की थी और 6,00 से ज्यादा रन बनाए थे और उस समय तक हमने भारत से बाहर अधिक बार इतने रन नहीं बनाए थे. गेंदबाज जब मैदान पर उतरे तो उन्हें पता था कि हमारे पास रन हैं.
अपने 18 वर्ष के कॅरिअर में आपने बल्लेबाजी में किस तरह का बदलाव देखा? क्या तकनीक कमजोर पड़ गई है और बल्लेबाज ज्यादा से ज्यादा जोखिम उठाना चाहते हैं? गेंदबाजों, खास तौर से स्पिनरों के लिए कैसी चुनौती है, छोटी बाउंड्री और भारी बल्ले और अब सीमित ओवरों का खेल?
सारी दुनिया में बल्लेबाजों के लिए विकेट आसान हो गई है. यही रुझान है और गेंदबाज गेंद के जरिए दबदबा कायम करना चाहते हैं. शायद ही कोई ऐसा विकेट बनाया जाता हो जिससे स्पिन या तेज गेंदबाजों को मदद मिले. लिहाजा रन औसत बेहतर हो गया है, यदि आप प्रति विकेट रन या प्रति ओवर रन के आधार पर आंकड़े देखें तो आपको पिछले पांच वर्ष की मेरी गेंदबादी में बदलाव नजर आएगा, विकेट लेना महंगा हो गया है. यही पूरी दुनिया का हाल है. आम तौर पर अब भोजन अवकाश तक स्कोर 100/1 होता है, जबकि पहले 60/4 या 60/2 तक होता था. ऐसे बहुत कम मैच होते हैं जिन पर गेंदबाजों का कब्जा होता है.
आपको कप्तानी देर से मिली. इस जिम्मेदारी के साथ सबसे खराब चीज क्या थी? सिडनी का मामला? श्रीलंका की नाकामी? या फिर आखिरी के कुछ महीने जब सीनियर खिलाड़ियों पर दबाव बढ़ा और आपने गुस्से में कॉलम लिखा?
मैंने जिम्मेदारी का आनंद उठाया. मैंने सोचा कि मुझे कुछ चीजें करने की जरूरत है, मसलन मीडिया से बात करने और खिलाड़ियों के हितों की रक्षा. मैं लोगों को खिलाड़ियों का नजरिया बताना चाहता था. यह अहम है कि मैंने टीम के हित में जो कुछ भी महसूस किया उसे ईमानदारी से व्यक्त किया और क्रिकेट हर लिहाज से टीम स्पोर्ट है. कई बार हताशा हुई क्योंकि मैं नहीं सोचता कि कप्तान और एक टीम के रूप में मुझे लोगों को हर चीज का स्पष्टीकरण देने की जरूरत है. यदि कोई फैसला लिया गया है तब आप उसकी आलोचना कर सकते हैं, विश्लेषण कर सकते हैं लेकिन आपको इसके पीछे के इरादे पर सवाल करने की जरूरत नहीं है. मैं नहीं सोचता कि मुझे दुनिया को यह बताने की जरूरत है कि टीम की बैठकों में क्या बात हुई, बल्लेबाजों को क्या संदेश भेजे गए... खेल में रणनीति होती है और यह उसी का हिस्सा है.
{mospagebreak}मैं सोचता हूं कि सिडनी से निबटना काफी मुश्किल थाः कप्तान के रूप में मुझे मैदान में फैसले लेने पड़ते थे लेकिन यहां तो मुझे मैदान से बाहर भी कुछ फैसले करने पड़े. लेकिन टीम एकजुट थी, बीसीसीआइ ने हमें पूरा समर्थन दिया. मैंने खेल को सबसे ऊपर रखकर ईमानदारी से जिम्मेदारी निभाई.
श्रीलंका की नाकामी वाकई मुश्किल थी. हमारे बल्लेबाज चल नहीं रहे थे और हम ठीक से कैच नहीं लपक रहे थे. हमारा क्षेत्ररक्षण हमेशा औसत रहा है और कैच लपकने के मामले में हम अच्छे और बहुत अच्छे रहे हैं लेकिन श्रीलंका में हम नाकाम हो गए. जहां तक स्तंभ की बात है तो टीम की ओर से बयान जारी करना अहम होता है ताकि पूरी टीम का नजरिया सामने आ सके.
भारत की व्यवस्था और क्रिकेटरों को तराशने के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है. आपके लिहाज से हमारी व्यवस्था की खामियां और ताकत क्या हैं? हर कोई कहता है कि ऑस्ट्रेलिया के पास सफलता का सांचा है; हमें उसका कितना अनुसरण करना चाहिए?
इस बारे में मेरा कुछ भी कहना जरा जल्दबाजी होगी. हमारे पास अपनी ताकत है, जूनियर क्रिकेट का हमारा ढांचा बहुत मजबूत है, अंडर 15, अंडर 19 क्रिकेट रणजी ट्रॉफी के फॉर्मेट में खेला जा रहा है यह अच्छी बात है. मैं मानता हूं कि आप घंटों नेट पर खर्च करने के बजाए ज्यादा से ज्यादा मैच खेल कर ही सीख सकते हैं. राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी अच्छा काम कर रही है, बावजूद इसके कि अभी उनकी यह शुरुआत ही है. क्षेत्रीय अकादमियां भी काम कर रही हैं. मैं सोचता हूं कि हम और ज्यादा पेशेवर हो सकते हैं लेकिन अभी तो यह यात्रा की शुरुआत है. हमें बैठकर यह विचार करने की जरूरत है कि भारत में जितनी भी प्रतिभाएं हैं उन सभी पर कैसे ध्यान जाए.