देश के दूसरे सबसे बड़े सार्वजनिक बैंक पंजाब नेशनल बैंक में हुए महाघोटाले ने देश में नया सियासी तूफान ला दिया है. 11360 करोड़ रुपये के फ्रॉड में अरबपति नीरव मोदी पर एफआईआर दर्ज कर ली गई है. अरबों रुपये का ये घोटाला सिर्फ एक ब्रांच का है. ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि क्या दूसरे बैंकों की तमाम दूसरी ब्रांचों में ऐसे घोटालों की आशंका से इनकार किया जा सकता है?
घोटालों से इतर देश की तमाम बैंकों का एनपीए भी लगातार बढ़ता जा रहा है. बीते शुक्रवार को ही एसबीआई ने सितंबर तिमाही का नतीजा घोषित किया तो 2,416 करोड़ रुपए का नुकसान दिखाया. इसकी वजह सामने आई एनपीए. गौरतलब है कि बैंकों का एनपीए जिस तेजी से बीते चार बरस में बढ़ा है, उसने बैंकों की खस्ता हालत सतह पर ला दी है.
मार्च 2014 में ही एनपीए जहां 2,04,249 करोड़ रुपये था, वहीं जून 2017 में बढ़कर ये 8,29,338 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. सिर्फ मोदी युग में एनपीए करीब चार गुना बढ़ चुका है. देश के तमाम बैंक किस कदर एनपीए के जाल में उलझे हैं, इसे देश के 25 बैंकों के एनपीए से समझा जा सकता है. हालांकि एनपीए पर पीएम मोदी संसद में कह चुके हैं कि ये ‘पाप’ पुरानी सरकार का है.
बैंक एनपीए (करोड़ रुपए में)
भारतीय स्टेट बैंक 1,88,068
पंजाब नेशनल बैंक 57,721
बैंक ऑफ इंडिया 51,019
आईडीबीआई बैंक 50,173
बैंक ऑफ बड़ौदा 46,173
आईसीआईसीआई बैंक 43,148
केनरा बैंक 37,658
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया 37,286
इंडियन ओवरसीज बैंक 35,453
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया 31,398
यूको बैंक 25,054
ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स 24,409
एक्सिस बैंक लिमिटेड 22,031
कॉरपोरेशन बैंक 21, 713
इलाहाबाद बैंक 21,032
सिंडिकेट बैंक 20,184
आंध्रा बैंक 19,428
बैंक ऑफ महाराष्ट्र 18,049
देना बैंक 12,994
यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया 12,165
इंडियन बैंक 9,653
एचडीएफसी बैंक 7,243
विजया बैंक 6,812
पंजाब और सिंध बैंक 6,693
जम्मू व कश्मीर बैंक 5,641
(स्रोत : एस इक्विटी)
25 बैंकों की ये लिस्ट बताती है कि जनता का पैसा कैसे लोन के तौर पर रईसो में बांटा गया. बैंकों को ये पैसा लौटाया नहीं गया तो एनपीए खाते में डाल दिया गया.
एनपीए की तहें खुलीं तो हजारों करोड़ के ऐसे घोटाले सामने आ सकते हैं जो चुनावी मौसम में सरकार की छवि खराब कर सकते हैं, भले ही घोटाले किसी भी दौर में हुए हों.
रिजर्व बैंक ने फंसे कर्ज को निपटाने के लिए नियमों में बड़ा बदलाव किया है. रिजर्व बैंक ने संशोधित रुपरेखा में दबाव वाली परिसंपत्तियों की ‘जल्द पहचान’ करने, निपटान योजना के समय से पालन करने और उस अवधि में बैंकों के विफल रहने पर उन पर जुर्माना लगाने के लिए खास नियम बनाए हैं, लेकिन सवाल यही है कि क्या चुनावी मौसम में बड़े कॉरपोरेट और घोटालेबाजों पर कार्रवाई हो पाएगी.