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कोई भारत को इस्लामिक देश बनाने की कोशिश न करे: मेघालय HC

मेघालय हाई कोर्ट के जस्टिस एसआर सेन ने कहा कि मेरी नजर में एनआरसी प्रक्रिया में गड़बड़ी है, क्योंकि ज्यादातर विदेशी भारतीय बन गए और मूल भारतीय इससे बाहर रह गए. 

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मेघालय हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
मेघालय हाई कोर्ट (फाइल फोटो)

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मेघालय हाईकोर्ट ने पीआरसी (स्थायी निवासी प्रमाणपत्र) को लेकर एक मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की है. जस्टिस एसआर सेन ने कहा कि वह साफ कर देना चाहते हैं कि किसी को भी भारत को दूसरा इस्लामिक देश बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. वहीं केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने जस्टिस के इस बयान का समर्थन किया और कहा कि वह उनकी बात से पूरी तरह से सहमत हैं.

जस्टिस एसआर सेन ने कहा कि अगर ऐसा होता है तो भारत और दुनिया के लिए यह सबसे खराब दिन होगा. उन्हें विश्वास है कि पीएम मोदी की सरकार इस चीज को समझेगी. जब तक किसी को राज्य में रहने का मन है तब तक उसे पीआरसी के लिए आवेदन करने का हक है. दरअसल जस्टिस एसआर सेन ने यह आदेश अमोन राणा की याचिका पर दिया. बता दें कि अमोन को मूल निवासी प्रमाण पत्र देने से इनकार कर दिया गया था.

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उन्होंने कहा कि जब तक किसी को राज्य में रहने का मन है तब तक उसे पीआरसी के लिए आवेदन करने का हक है. हिंदू, सिख, जैन, बुद्ध, ईसाई, पारसी, खासी, गारो एवं जैन्तिया जो भारत आ चुके हैं और जिनको पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से भारत में आना है. साथ ही भारतीय मूल के लोग जो बाहर रह रहे हैं उनके हित के लिए कानून लाने के लिए केंद्र सरकार जरूरी कदम उठाए. अदालत को उम्मीद है कि सरकार ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में इस आदेश का ध्यान रखते हुए और इस देश और यहां के लोगों की रक्षा करेगी.

'एनआरसी प्रक्रिया में गड़बड़ी'

मेघालय हाई कोर्ट के जस्टिस एसआर सेन ने कहा कि मेरी नजर में एनआरसी प्रक्रिया में गड़बड़ी है, क्योंकि ज्यादातर विदेशी भारतीय बन गए और मूल भारतीय इससे बाहर रह गए.  

उन्होंने कहा कि जब देश का विभाजन हुआ तो नेताओं ने भावी पीढ़ियों और देश के हित के बारे में सोचे बिना सीमा रेखाएं तय कर दीं. इससे आज समस्याएं खड़ी हो गई हैं. मैं बराक घाटी और असम घाटी के हिंदुओं से अपील करता हूं कि वे साथ आएं और मिलकर हल पर पहुंचे क्योंकि हमारी संस्कृति, परंपरा और धर्म समान हैं. हमें केवल भाषा के आधार पर एक-दूसरे से नफरत नहीं करनी चाहिए.

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पाकिस्तान ने अपने आपको इस्लामिक देश घोषित किया था और तब भारत जो धर्म के आधार पर विभाजित हुआ था उसको भी हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए था, लेकिन वह सेक्युलर देश रह गया. उन्होंने कहा कि इस अदालत को उम्मीद है कि भारत सरकार हिंदू, सिख, जैन, बुद्ध पारसी और ईसाई जो पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से आए हैं उनको लेकर सचेत निर्णय लेगी.

हिंदू-सिख लोगों को सबसे ज्यादा तकलीफ

अपने आदेश में उन्होंने कहा कि हिंदू, सिख, जैन, बुद्ध, ईसाई, पारसी धर्म के लोगों का पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान के लोगों का आज भी उत्पीड़न होता है और इनके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं होती है. उन्होंने यह भी कहा कि वह हिंदू जो विभाजन के दौरान भारत में दाखिल हुए उनको भी विदेशी समझा जाता है. जो मेरी नजर में अवैध है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है.

उन्होंने कहा कि भारत ने बहुत मुश्किलों से आजादी हासिल की है. इसका दर्द सबसे ज्यादा हिंदू और सिख धर्म के लोगों को झेलना पड़ा. उन्हें अपने पूर्वजों की संपत्ति, जन्मस्थान को छोड़ना पड़ा. हम इसको नहीं भूल सकते. हालांकि मैं यहां इसका जिक्र करने में गलती नहीं कर सकता कि जब सिख आए, तो उनको पुनर्वास मिला, लेकिन ऐसा हिंदुओं के साथ नहीं हुआ.

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उन्होंने कहा कि हमें पहले यह मानना होगा कि पहले हम भारतीय हैं और फिर एक इंसान और उसके बाद वह समुदाय आता है जिसके हम होते हैं. मुझे उम्मीद है कि सरकार ऐसे वंचित लोगों के लिए एक फैसला लेगी. उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी, कानून मंत्री और संसद से मांग की है वह एक ऐसा कानून लाए जिससे पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, जैन, बुद्ध, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को बिना किसी पूछताछ और कागजात के भारत की नागरिकता मिले.

गिरिराज ने जस्टिस सेन का किया समर्थन

जस्टिस सेन के हिंदू राष्ट्र संबंधी बयान पर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी समर्थन करते हुए कहा, 'मैं उनकी बात से पूरी तरह से सहमत हूं. मैं तो साधुवाद देता हूं, धन्यवाद देता हूं. किसी संवैधानिक पर पद पर बैठे व्यक्ति ने ऐसा टिप्पणी की है जो आज देश के अधिसंख्य नागरिक महसूस कर रहे हैं.'

उन्होंने आगे कहा कि आज 13 दिसंबर है, इस दिन संसद पर हमला हुआ था. कई चीजें ऐसी हैं जो सब एक-दूसरे से जुड़ी हैं. 1947 में जिन्ना ने देश का बंटवारा कराया. धर्म के आधार पर भारत में आज उसके अच्छे परिणाम दिख नहीं रहे. इस समय उन्होंने जो टिप्पणी की है, अगर उस समय की जाती तो आज भारत की यह स्थिति नहीं होती. उनकी टिप्पणी का व्यक्तिगत तौर पर स्वागत करता हूं. इसे सरकार से ना जोड़ कर ना देखें, गिरिराज सिंह से जोड़कर देखें.

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